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तालिबान की जीत या अफगानिस्तान की हार

गाब्रिएल डोमिंगेज/आईबी३० सितम्बर २०१५

नाटो के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तालिबान की फिर से वापसी के खतरे पर चर्चा होती रही है. अब कुंदुज पर कब्जे के बाद सवाल उठ रहा है कि चूक कहां हुई.

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Afghanistan
तस्वीर: Reuters

करीब दो साल पहले जर्मन सेना 'बुंडसवेयर' ने अफगानिस्तान छोड़ा था. करीब एक दशक अफगानिस्तान में बिताने के बाद कहा गया कि अब देश सुरक्षित है और अपनी रक्षा खुद कर सकता है. लेकिन अब तालिबान के कब्जे के बाद ऐसी रिपोर्टें भी आ रही हैं कि जर्मन सेना की ओर से चूक हुई.

इसके अलावा अफगान सरकार की ओर से तालिबान को संजीदगी से ना लेने की बात भी उछाली जा रही है.

अफगान मामलों के जानकार माइकल कुगलमन ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "तालिबान अचानक ही कहीं शून्य से निकल कर कुंदुज में नहीं आ गया. उसके लड़ाके काफी समय से वहां हैं और शहर पर छोटे मोटे हमले करते रहे हैं." कुगलमन और कई अन्य जानकार तालिबान के इस कब्जे को तालिबान की जीत कम और अफगान सरकार की हार ज्यादा मान रहे हैं.

कुंदुज में कई इलाके पश्तून बहुल हैं. यहां सरकार से परेशान लोग तालिबान के लिए आसान निशाना हैं. माना जाता है कि ये लोग तालिबान की मदद करते रहे हैं. कुगलमन का भी कहना है कि नागरिकों की मदद के बिना इस तरह से शहर पर कब्जा करना मुमकिन नहीं हो सकता था.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि वह उन रिपोर्टों की पुष्टि कर रहा है जिनके अनुसार कुंदुज में ताजा हिंसा में 110 नागरिकों के मारे जाने की खबर है. संयुक्त राष्ट्र की मानवधिकार संस्था के उच्चायुक्त जाएद अल हुसैन ने कहा, "हमें डर है कि हिंसा के चलते आने वाले दिनों में और भी लोग प्रभावित होंगे." संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस साल पहले भी अप्रैल से जून के बीच कुंदुज में हुई हिंसा में 36 लोग मारे गए और 140 जख्मी हुए थे.

संयुक्त राष्ट्र की ही एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान के कुल 34 प्रांतों में से 25 में इस्लामिक स्टेट के लड़ाके भी प्रवेश कर चुके हैं. इस लिहाज से कुंदुज का संघर्ष अब तीन तरफा हो सकता है. एक ओर तालिबान, दूसरी ओर आईएस और तीसरी ओर सरकार.