1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ताल और लय के सफर पर आरुषि

५ अप्रैल २०१४

ओडिसी डांसर आरुषि मुद्गल ने अपनी लगन, साधना और सृजनात्मकता के कारण भारतीय नृत्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है.

https://p.dw.com/p/1BcAE
तस्वीर: privat

27 वर्षीया आरुषि का संबंध संगीत एवं नृत्य के क्षेत्र से जुड़े एक प्रसिद्ध परिवार से है और इस पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण छुटपन से ही उन्हें कला के माहौल में रहने और सीखने का मौका मिला. उनके दादा पंडित विनयचन्द्र मौद्गल्य ने दिल्ली में शिक्षित मध्यवर्ग के बीच संगीत एवं नृत्य के प्रचार-प्रसार में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी और 1939 में गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना की थी. उनके पिता पंडित मधुप मुद्गल विख्यात शास्त्रीय गायक हैं और इस समय इस संस्थान के प्रिंसिपल हैं. आरुषि की बुआ प्रसिद्ध ओडिसी कलाकार माधवी मुद्गल हैं और वही उनकी गुरु भी हैं. उनके अलावा आरुषि ने केलुचरण महापात्र, लीला सैमसन, प्रियदर्शिनी गोविंद और सुजाता महापात्र जैसे विख्यात कलाकारों से भी मार्गदर्शन प्राप्त किया है. उन्हें संगीत नाटक अकादेमी के प्रतिष्ठित बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार समेत अनेक सम्मान भी मिल चुके हैं. इस समय वे फ्रांस के दौरे पर हैं. यूरोप के लिए रवाना होने से पहले हुई बातचीत के कुछ अंश:

फ्रांस किस सिलसिले में जा रही हैं?

वहां मैं एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं. इसका नाम है “सम, आई कैन ट्राई”. एक फ्रेंच परकशनिस्ट रोलां ओजे के साथ मिलकर एक कार्यक्रम तैयार करना है. पहली भेंट में ही मैंने बता दिया था कि मैं विशुद्ध रूप से पारंपरिक शास्त्रीय शैली की कलाकार हूं और उन्होंने भी स्पष्ट कर दिया था कि वह पूरी तरह से समकालीन पाश्चात्य कलाकार हैं. (हंसी) अब देखिये क्या नतीजा निकलता है...! ताल और लय हम दोनों के बीच की समान भूमि है और यह बहुत विशाल है. हम दोनों के बीच अच्छी आपसी समझ बन गई है और दोनों के ही दिमाग में कुछ रचनात्मक विचार और कल्पनाएं हैं. फिर इस कार्यक्रम की स्विट्जरलैंड के चार नगरों में प्रस्तुतियां होंगी. अभी तक मैंने जो भी प्रयोग किए, जैसे कथक की कोई चीज लेकर कुछ किया, तो वह मेरे लिए ऐसा नया अनुभव नहीं था जैसा यह होगा.

आपने ओडिसी के अलावा कोई और नृत्य शैली भी सीखी क्या?

चार-पांच साल पहले मैंने कुछ समय मोनिषा नायक जी से कथक जरूर सीखा था. कथक की लयकारी आदि मुझे बहुत आकर्षित करती है. बाद में उनके साथ एक युगल नृत्य भी प्रस्तुत किया था.

क्या अन्य शैलियों के कुछ तत्व ओडिसी में अच्छी तरह शामिल किए जा सकते हैं?

बिलकुल. आज आप देखते हैं कि भरतनाट्यम में मीरा के भजन भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं. इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई कलाकार इसे किस तरह करता है. दूसरी शैलियों के तत्व उसकी शैली में स्वाभाविक रूप से समाविष्ट हो पाये हैं या थोपे हुए लग रहे हैं. करने से पहले तो पता नहीं हो सकता. सभी कलाकार अपने-अपने ढंग से कोशिश करते हैं.

आपके तो घर में ही संगीत और नृत्य था. तो क्या यह बचपन से ही तय था कि आपको कलाकार बनना है और वह भी नृत्य के क्षेत्र में?

तय तो ऐसा कुछ नहीं था लेकिन सभी चीजें अपने आप होती चली गईं. मुझे सब बताते हैं कि जब मैं बहुत-ही छोटी थी तो नृत्य की कक्षा में जाकर मुद्राओं की नकल करने की कोशिश करती थी. जैसा कि आपने कहा, माहौल तो दिन-रात संगीत और नृत्य का ही था. मैंने कुछ समय संगीत भी सीखा, लेकिन फिर माधवी जी से सीखना शुरू किया तो उसी में ध्यान लगाया. ऐसा नहीं हुआ कि किसी एक क्षण या किसी एक दिन मैंने फैसला किया हो कि मुझे यह करना है. सब कुछ अपने आप स्वतः प्रवाह में होता गया. मैं लेडी श्रीराम कॉलेज से समाजशास्त्र में बैचलर कर रही थी, लेकिन क्योंकि माधवी जी के साथ काफी बाहर जाना होता था, देश में भी और देश के बाहर भी, और अक्सर ये टूअर अप्रैल में ही होते थे जब परीक्षाएं होती हैं. सो, तीसरे साल में मैंने यह कोर्स छोड़ दिया. बाद में पत्राचार कार्यक्रम से बी. ए. किया. अनायास ही तय होता गया कि मुझे प्रोफेशनल कलाकार बनना है.

नया क्या करना चाहती हैं? परंपरा की सीमाओं में रहते हुए.

बहुत कुछ नया किया जा सकता है और हर कलाकार करने की कोशिश भी करता है. मैं भी करती हूं. वह सफल होता है या नहीं, असल बात यह है. नृत्य सामाजिक सरोकार के विषयों पर भी किया जा सकता है और पौराणिक विषयों पर भी. मुख्य बात यह है कि प्रस्तुति कला की दृष्टि से कितनी सफल है.

इंटरव्यू: कुलदीप कुमार

संपादन: महेश झा