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तीस से कम उम्र में गर्भाशय भ्रंश

२२ मार्च २०१४

अभी बच्चे को जन्म दिए कुछ ही दिन हुए थे कि सीता का गर्भाशय अपनी जगह से खिसककर योनि तक पहुंच गया. इस तरह की परिस्थिति से गुजरने वाली सीता अकेली नहीं हैं, नेपाल में तीस से कम आयु की उनके जैसी सैकड़ों लड़कियां हैं.

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तस्वीर: Sven Bähren/Fotolia

नींद से निढाल हालत में सीता लड़खड़ाती हुई एक लकड़ी का गट्ठर सिर पर उठाए काठमांडू के बाहरी इलाके में चली जा रही थी कि तभी उसे तकलीफ का एहसास हुआ. उसका गर्भाशय खिसक चुका था. 25 साल की उम्र तक चार बच्चों को जन्म दे चुकी सीता ने बताया, "मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. बहुत बुरी तरह दर्द हो रहा था."

गर्भाशय भ्रंश यानि गर्भाशय का अपनी जगह से खिसक कर योनि के बाहरी हिस्से तक पहुंच जाना. ऐसा आमतौर पर महिलाओं में रजोनिवृत्ति यानि मेनोपॉज के बाद होता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार नेपाल में ऐसे 44 फीसदी मामले बीस से तीस साल के बीच की महिलाओं के साथ हो रहे हैं. एम्नेस्टी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट में इसके लिए नेपाली गांवों में महिलाओं और पुरुषों के बीच सामाजिक असमानता को जिम्मेदार ठहराया गया है.

कम उम्र में दबाव

एम्नेस्टी की जाति, लिंग और पहचान कार्यक्रम की निदेशक मधु मलहोत्रा ने बताया, "इस स्थिति को मानवाधिकार मामले के तौर पर देखा जाना चाहिए, न सिर्फ महिला स्वास्थ्य के मामले की तरह." सरकारी स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2011 में किए गए एक सर्वे में गर्भाशय भ्रंश को महिलाओं में खराब स्वास्थ्य का सबसे आम कारण बताया गया था. हर 10 में से एक नेपाली महिला इसकी शिकार है.

सीता नेपाल के दलित परिवार से नाता रखती है. गर्भावस्था के दौरान उसे ज्यादा आराम नहीं मिल पाया. बच्चे की पैदाइश के बाद भी उसे फौरन लकड़ी काटने, पशुओं को चराने और खेतों से लेकर घर तक के भारी भरकम काम काज में जुट जाना पड़ा. बीस साल की होते होते वह तीन बोटियों को जन्म दे चुकी थी. इसके बाद भी उस पर बेटा पैदा करने का दबाव बना रहा. उसने बताया, "मेरा पति शराब के नशे में मुझे मारता और दूसरी शादी करने की धमकी देता था क्योंकि मैं बेटे को जन्म नहीं दे सकी."

पारिवारिक असहयोग

चार साल पहले उसने बेटे को जन्म दिया. लेकिन दो हफ्ते बाद ही उसे भारी रक्तस्राव होने लगा और गर्भाशय लटककर योनि के बाहर आ गया. इसके कारण उसे अक्सर गीलेपन और दूसरी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. ऐसे में पति का गुस्सा भी बढ़ जाता. जब उसने पति को अपनी परेशानी के बारे में बताया तो उसने उसे 'गंदी औरत' कहते हुए और भी मारा. सीता की परेशानी कम होने के बजाय और बढ़ती चली गई.

भारत के कई गांवों की तरह नेपाल के इन गांवों में भी महिलाएं इस तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में बात करने में झिझकती हैं. काठमांडू में सरकारी स्वास्थ्य विभाग में पिछले बीस सालों से गर्भाशय भ्रंश के मरीजों का इलाज कर रही अरुणा उप्रेती कहती हैं, "ऐसा कम उम्र की युवतियों के साथ ज्यादा होता है क्योंकि उनका शरीर कम उम्र में शादी और फिर बच्चा हो जाने का भार नहीं उठा पाता और वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं." साथ ही उन्होंने बताया कि ज्यादातर औरतें घर पर ही बच्चों को जन्म देती हैं जिससे उनके गर्भाशय को और भी खतरा रहता है.

शर्मनाक स्थिति

नेपाल में हजारों महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद आराम करने का पर्याप्त मौका नहीं मिल पाता है और खेतों इत्यादि में काम करना पड़ता है. 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भाशय भ्रंश के बढ़ते मामलों को महिलाओं के बच्चा पैदा करने के अधिकार का हनन बताते हुए सरकार को इस पर जल्द कदम उठाने के आदेश दिए थे. सरकार ने इस बारे में प्रचार किया और सर्जरियों का खर्च भी उठाया.

लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सर्जरी केवल बहुत ही खराब हो चुके मामलों में की जानी चाहिए. उनका यह भी कहना है कि सर्जरी द्वारा गर्भाशय निकाले जाने के कारण कई युवतियां, जो आगे और बच्चे होने की उम्मीद करती हैं वे मदद के लिए आगे नहीं आतीं. डॉक्टर उप्रेती ने बताया कि इसके अलावा गर्भाशय को सहारा देने वाली सिलिकॉन रिंग की तकनीक महंगी है. उन्होंने कहा, "यह नेपाल के लिए शर्म की बात है कि 21वीं सदी में देश में इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं बीमार हैं."

एसएफ/आईबी (एएफपी)