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तेल के रिसाव से जीवन को ख़तरा

५ मई २०१०

पेट्रोलियम पदार्थों के लगातार बढ़ते उपयोग के कारण पर्यावरण को कई दशकों से भारी नुकसान पहुंच रहा है. पिछले कई सालों में तेल के रिसाव जैसी घटनाओं के कारण विश्व को जल प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है.

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तस्वीर: AP

पेट्रोलियम पदार्थों का हवा और पानी के साथ मिल जाना मनुष्यों ही नहीं, सभी जीवों के अस्तित्व के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. वर्ष में शायद ही ऐसा कोई माह निकलता हो जब विश्व के किसी न किसी क्षेत्र से समुद्र में तेल के फैलने की घटना सामने न आती हो. मैक्सिको की खाड़ी में हो रहा तेल का भारी रिसाव अमेरिका की सबसे बड़ी पर्यावरण आपदाओं की शक्ल लेने के कगार पर है. यह रिसाव लुइज़ियाना के तट के 14 किलोमीटर क्षेत्र तक फैल चुका है.

तेल के रिसाव को संभालना इतना मुश्किल हो गया है कि लुइज़ियाना के अलावा तेल तीन और राज्यों - मिसिसीपी, अलाबामा और फ्लोरिडा के तटवर्ती इलाके़ भी इसकी चपेट में आ गए हैं. तेल के इस भारी रिसाव को रोकने के लिए दुनिया की तमाम तेल और पेट्रोलियम कंपनियों की नींद उड़ी हुई है. साथ ही साथ इस क्षेत्र के आसपास के निवासी यानी समुद्री जीव और पक्षियों का जीवन भी जोखिम में पड़ गया है. मैरीलैंड के सिनेटर बेन्जामिन कार्डिन कहते हैं कि, "ये बेहद ख़तरनाक है. हमेशा तेल बह निकलने का जोखिम बना रहता है और ये मछुआरों, मछलियों और यहां रहने वालों के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है."

समुद्री और वन्यजीवों के लिए ख़तरनाक

ओयस्टर, लुइज़ियाना की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाते हैं. लोगों का कहना है कि ये हमारे लिए सिर्फ खाने की चीज़ ही नहीं, हमारा आर्थिक संसाधन भी है. मिसिसीपी नदी के पूर्व में लुइज़ियाना तट के पास आयस्टर के शिकार पर तेल रिसाव के कारण रोक लगा दी गयी है. केकड़ों, झींगों और कई प्रकार की मछलियों का भी जीवन ओयस्टर की तरह खतरे में बताया गया है. यहां के मछुआरों को डर है कि आने वाले दिनों में स्थिति और बिगड़ सकती है.

कैलिफोर्निया के ओयल्ड वायल्डलाइफ केयर नेटवर्क के निदेशक ज़िकार्डी बताते हैं कि, "मिसिसीपी का फ्लाइवे प्रवासी पक्षियों अड्डा माना जाता है. ये समय इन पक्षियों के घोंसले बनाने और अंडे देने का सही समय है. इनमें से कुछ पक्षी ज़मीन के करीब भी रहते हैं, जिस कारण से इन्हें ज़्यादा नुकसान हो रहा है."

ज़िकार्डी ने बताया कि पक्षियों के डैनों पर तेल चिपक जाने से उनके परों का वह इन्सुलेटिंग गुण प्रभावित होता है, जो उन्हें पानी में भीगने से बचाता है. भीगने पर उन्हें ठंड लगती है और तब तैरने और उड़ने में भी परेशानी होती है. तेल में मौजूद रासायनिक पदा्रथों से इनकी त्वचा और आंखों में जलन भी होती है.

वातावरण को भारी नुकसान

लेकिन ख़तरा सिर्फ समुद्री जीवों और वन्यजीवों तक सीमित नहीं है. तेल के रिसाव से तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों का आवास और जनजीवन भी ख़तरे में पड़ गया है. समुद्र का पानी बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो रहा है. तेल से छुटकारा पाने के लिए जब पानी पर तैर रहे तेल के कुछ हिस्सों को आग लगाई गई, तो ज़ाहिर सी बात है कि इससे वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोआक्साइड जैसी गैसें भी शामिल हो रही हैं. तेल से लथपथ समुद्री जीवों का अगर कोई दूसरा जीव सेवन कर ले तो उसका शरीर बीमारियों का घर बन सकता है.

पेट्रोलियम पदार्थों ने जहां एक तरफ हमारे जीवन की गाड़ी आगे बढ़ाने में इतनी मदद की है वहीं दूसरी ओर यही पदार्थ आज एक अभिशाप भी साबित हो रहे हैं जिससे इस धरती पर जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया है. इससे पहले की हमारी धरती ये सब सहन करने में असमर्थ हो जाए, हमें इसे संभालना होगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/श्रेया कथूरिया

संपादन: महेश झा