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थाई पीएम: सेना विरोध प्रदर्शनों को ख़त्म करेगी

१६ मई २०१०

थाइलैंड के प्रधानमंत्री अभिसीत वेजाजीवा ने कहा है कि सेना बैंकॉक में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को ख़त्म करने के लिए अभियान को आगे बढ़ाएगी. बैंकॉक में सेना और प्रदर्शनकारियों के तीन दिन से हिंसक झड़पों में 24 लोगों की मौत.

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तस्वीर: AP

वेजाजीवा ने कहा है कि सैन्य हस्तक्षेप ही इस समस्या का एकमात्र विकल्प बचा है. सुरक्षा बलों की कोशिश है कि सड़कों की नाकेबंदी के ज़रिए प्रदर्शनकारियों को चारों ओर से घेर लिया जाए. इसके लिए वे बालू की बोरियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन अभी तक उन्हें पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है.

चुलालोंगकोर्न विश्वविद्यालय के राजनीतिविद थिटिनान पोंगसुधिराक का कहना है कि सुरक्षा बलों को शायद नाकेबंदी करने में थोड़ी सी सफलता मिली है, लेकिन इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. अभी तक वे प्रदर्शनकारियों को तितरबितर करने में कामयाब नहीं हुए हैं, जिनमें काफ़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी हैं.

प्रदर्शनकारी अब बैंकॉक के मुख्य कारोबारी इलाके के आस पास पहुंच गए है. हालात बिगड़ते देख बैंकॉक स्थित अमेरिकी दूतावास ने दुनिया भर के पर्यटकों के लिए चेतवानी जारी की है. अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि कोई भी पर्यटक थाइलैंड कतई न आए.

Unruhe und Gewalt in Thailand Flash-Galerie
हिंसक झड़पों में कमी नहींतस्वीर: AP

गोलबारी में मरने वालों की संख्या बढ़ते रहने की वजह से प्रधान मंत्री अभिसिट वेजाजिवा की राजनीतिक स्थिति कमज़ोर होती जा रही है. लाल शर्ट प्रदर्शनकारियों के एक नेता क्वांचाई प्राइपाना का कहना था कि वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे. उन्होंने माना कि दसियों हज़ार प्रदर्शनकारियों के भोजन-पानी लाने वाले ट्रकों को रोका जा रहा है. लेकिन साथ ही उनका कहना था कि प्रदर्शनकारियों के पास अगले दिनों के लिए पर्याप्त खाना पीना है.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने लगातार बढ़ते तनाव और हिंसा पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने अपील की है कि संघर्ष में लिप्त पक्ष फिर से बातचीत शुरू करें.

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हथियारों से लैस हैं प्रदर्शनकारीतस्वीर: AP

सरकार की ओर से कहा गया था कि चंद दिनों के अंदर फिर से कानून व्यवस्था स्थापित कर ली जाएगी. लेकिन अभी तक इसके आसार नज़र नहीं आ रहे हैं. लाल शर्ट प्रदर्शनकारी पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनवात्रा के समर्थक हैं. सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों की मांग है कि देश में तुरंत चुनाव करवाएं जाएं. सरकार का कहना है कि कुछ महीने बाद संसद को भंग कर दिया जाएगा और फिर चुनाव होंगे.

इकोनोमिस्ट इंडलिजेंस यूनिट के एशिया संपादक डेनी रिचार्डस का कहना है कि बहुतों का ख्याल है कि विरोध प्रदर्शन ख़त्म होने का मतलब संकट ख़त्म होना होगा. लेकिन अगर चुनाव भी होता है, और एक पक्ष की विजय होती है, तो दूसरा पक्ष उसे स्वीकार नहीं करेगा. हालात तब भी ख़राब ही बने रहेंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह