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दक्षिण अफ्रीका को मेज़बान का बोनस?

२१ अप्रैल २०१०

11 जून से दक्षिण अफ्रीका में शुरू होने वाले फुटबॉल वर्ल्ड कप में अब बस कुछ ही हफ्ते बचे हुए हैं. क्या मेज़बान देश को अपने मैदान में खेलने का फ़ायदा मिलने वाला है?

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मेज़बान नगर केप टाउन की हवाई तस्वीरतस्वीर: AP

1930 में यूरूग्वे, 1934 में इटली, 1950 में ब्राज़ील, 1954 में स्वीडन और 1966 में इंग्लैंड. फिर 1974 में जर्मनी, 1978 में अर्जेंटीना और आखिरी बार 1998 में फ्रांस. 1930 से लेकर अब तक 21 बार फुटबॉल वर्ल्ड कप कप खेला गया. और इनमे सें 8 बार मेज़बान देश ही वर्ल्ड चैंपियन बना. दिलचस्प बात यह है कि ऐसी मेज़बान टीमें भी विश्व कप जीत पाईं जो दूसरों के मुकाबले उस वक्त कमज़ोर आंकी जा रही थीं.

क्या इसके पीछे यही वजह है कि मेज़बान देश होने के नाते वे टीमें फायदे में थी. साफ है कि किसी भी खेल में मेज़बान देश की टीम अपने यहां की जलवायु को बखूबी जानती है. ग्राउंड्स और स्टेडियम सबसे वह परिचित होती है. साथ ही घरेलू प्रशंसक भी अपनी टीम का जोश बढ़ाने की भरपूर कोशिश करते आए हैं. जर्मन फुटबॉल टीम के मैनेजर ओलिवर बीरहोफ भी कहते हैं कि इन सब वजहों को कम नहीं आंकना चाहिए.

सबसे पहले सभी अफ्रीकी गर्व करते हैं कि दक्षिण अफ्रिका में वर्ल्ड कप खेला जाएगा. तो यह उनके लिए फायदेमंद भावना है. फिर उन्हे पता है कि पूरा महाद्वीप यानी एक अरब से भी ज़्यादा लोग उनके साथ हैं. - ओलिवर बीरहोफ़

Oliver Bierhoff während der Pressekonferenz zum Tod von Robert Enke
ओलिवर बीरहोफ़तस्वीर: AP

तो क्या घरेलू मैदान पर खेलने का मिथक सच है? बोलिविया की फुटबॉल टीम को देखने से तो ऐसा जरूर कहा जा सकता है. जब वह बोलिविया की राजधानी ला पाज़ के स्टेडियम में खेली है, तो वह अर्जेंटीना या ब्राज़ील जैसी ताकतवर टीमों को भी हरा चुकी हैं. इसका एक कारण यह माना जाता है कि ला पाज़ का स्टेडियम 3600 मीटर की उंचाई पर है. आम तौर पर फीफा फुटबॉल फेडेरेशन के नियमों के मुताबिक कोई भी स्टेडियम समुद्र के तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर ही होना चाहिए. लेकिन बोलिविया को अपवाद मानते हुए वहां खेलने की अनुमति दी गई.

ब्रिटेन के निक नीव जैसे वैज्ञानिकों ने भी साबित किया कि घरेलू मैदान पर खेलने के साथ मेज़बान टीम के खिलाड़ियों के रक्त में पुरुष हॉर्मन टेस्टोस्टरोन की मात्रा दूसरे मैदान पर खेलने की तुलना में कई गुना ज़्यादा बढ़ती है. टेस्टोस्टेरोन अपने प्रभाव क्षेत्र को बनाए रखने की भावना को बढाता है और साथ ही यह भी माना जाता है कि यह हार्मोन तेज़ी से प्रतिक्रिया दिखाने और थ्रीडी कल्पना शक्ति को बढावा देता है जो खेल के मामले में बहुत फाय्देमंद साबित होता है. तो क्या विश्व कप 2010 में दक्षिण अफ्रीका की टीम सफलता प्राप्त कर पाएगी. दक्षिण अफ्रीका के खेल पत्रकार मार्क ग्लीसन कहते हैं कि यह एक बहुत बड़ा विरोधाभास है, लेकिन जून में दक्षिण अफ्रीका में सर्दियां होंगी. और यह यूरोपीय टीमों के हित में जाएगा.

हो सकता है कि ऐसे में अफ्रीकी टीमें अपने खिलाडियों की तकनीक में कुछ बदलाव करें, पर इससे बात बन पाएगी, यह कहना जरा मुश्किल है. लेकिन फिर भी सभी अफ्रीकी देश उम्मीद कर रहे हैं कि जब पहली बार दक्षिण अफ्रिका में वर्ल्ड कप हो ही रहा है, तो न जाने उसी वक्त एक चमत्कार और हो जाए और एक अफ्रीकी टीम भी वर्ल्ड चैंपियन बन जाए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/प्रिया एसेलबोर्न

संपादन: अशोक कुमार