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दस दिन बाद भी पता लगेगा मौत का सही समय

२ जुलाई २०१५

पुलिस के लिए लाश मिलने के बाद मौत के समय का पता लगाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. फोरेंसिक शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके जरिए दस दिन के बाद भी मौत के सटीक समय का पता लगाया जा सकेगा.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Demir

चेक गणतंत्र की राजधानी प्राग में आयोजित एक्सपेरीमेंटल बायोलॉजी के वार्षिक समारोह में इस बारे में जानकारी दी गयी. जाल्सबर्ग विश्वविद्यालय के रिसर्चरों की एक टीम ने मृत सुअर की मांसपेशियों में मौजूद प्रोटीनों के क्षय को मापकर यह तरीका ईजाद किया है. मौजूदा विधि में शरीर के तापमान के आधार पर मौत के समय का पता लगाया जाता है जो मौत के 36 घंटे तक ही कारगर होता है.

बीबीसी न्यूज ने मुख्य शोधकर्ता डॉ. पीटर स्टाइनबाखर के हवाले से बताया कि शव के तापमान के मौसम के तापमान के बराबर ठंडा होने के बाद मौत के सटीक समय का पता लगाना मुश्किल होता है. हम मौत के समय का पता लगाने के लिए नया तरीका विकसित कर रहे हैं. मांसपेशी में मौजूद प्रोटीन के क्षय का तरीका बहुत कारगर है. शोध टीम ने सुअर की मांसपेशी में मौजूद प्रोटीनों का अध्ययन किया क्योंकि सुअर की मांसपेशी इंसानों से मिलती हैं.

मौत के बाद प्रोटीन का क्षय शुरू हो जाता है. यह प्रक्रिया एक नियत समय में होती है. अलग-अलग समय में प्रोटीन अलग-अलग अवयवों में बदलता है. इस तरह नमूने में मौजूद अवयव के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत कब हुई थी. शोधकर्ताओं ने साथ ही 60 से अधिक मानव ऊतक नमूनों का भी अध्ययन किया. इस अध्ययन के शुरुआती परिणामों में उसी तरह के बदलाव देखे गए हैं.

डॉ. स्टाइनबाखर ने कहा कि इस बात का पता लगाने के लिए और अध्ययन की जरूरत है कि मांसपेशियों के क्षय में लिंग, बॉडी मास इंडेक्स, तापमान, आर्द्रता आदि की भी कोई भूमिका होती है या नहीं. डॉ. स्टाइनबाखर और उनके सहयोगियों को उम्मीद है कि अगले तीन साल में यह तकनीक अपराध विज्ञान में अहम सबूत जुटाने में मददगार हो सकती है.

एमजे/एसएफ (वार्ता)