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दागी नेताओं पर फैसला साल के अंदर

११ मार्च २०१४

सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भारत में सियासत को अपराध से मुक्त करने की दिशा में एक और अहम पड़ाव है. भविष्य में दागी नेता राजनीति में बने रहने के लिए अदालती कार्यवाही की लेटलतीफी का फायदा नहीं उठा सकेंगे.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि दागी नेताओं के मुकदमे हर हाल में एक साल के भीतर निपटाए जाएं. इस फैसले से अपराधी से नेता बने लोगों का अपील का अधिकार तो सुरक्षित रहेगा लेकिन व्यवस्था को भी इन दीमक नुमा नेताओं से बचाया जा सकेगा. जस्टिस आरएम लोढा और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण पर इसी तरह के एक अन्य मामले में जुलाई 2013 में दिए फैसले को एक कदम और आगे बढ़ाते हुए यह फैसला दिया है.

क्या है मामला

संसद और विधान सभाओं में पैठ बना चुके दागी नेताओं के चंगुल से विधायिका को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष जुलाई में अहम फैसला दिया था. इसमें किसी भी अदालत से आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराया. इतना ही नहीं अदालत ने जनप्रतिनिधित्व कानून की उस धारा को भी असंवैधानिक ठहराया जो उच्च अदालतों में अपील लंबित होने तक निचली अदालत में दोषी पाए गए सांसदों और विधायकों की सदस्यता बने रहने की छूट देती है.

इस फैसले को बेअसर बनाने के लिए दागी नेताओं ने निचली अदालतों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने खिलाफ चल रहे मामलों को लंबित कराने का तरीका अपनाना शुरु कर दिया था. सामाजिक संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फांउडेशन की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि निचली अदालतों को दागी सांसद विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले एक साल में निपटाने होंगे. अदालत ने इसके लिए मामले की रोजाना सुनवाई करने का तरीका सुझाया. मजे की बात यह भी है कि फैसले में अदालत ने दागी सांसद और विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों में भ्रष्टाचार के मामलों को भी शामिल किया है.

अब क्या होगा

सुप्रीम कोर्ट के गत वर्ष जुलाई 2013 और अब के फैसले के बाद ऐसे सांसद और विधायकों की सदस्यता खत्म हो जाएगी जिन्हें भ्रष्टाचार सहित ऐसे आपराधिक मामले में अदालत द्वारा दोषी ठहरा दिया गया हो जिसके लिए दो साल या इससे अधिक सजा का प्रावधान हो. निचली अदालतों को अब ऐसे मामलों में आरोप पत्र दाखिल होने के एक साल के भीतर ही फैसला सुनना होगा. इसके लिए अदालतों को ऐसे मामलों की रोजाना सुनवाई करनी होगी. अदालत ने कहा कि अगर किसी कारणवश सुनवाई में एक साल से अधिक समय लगता है तो संबद्ध जज को इसका लिखित कारण अपने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को बताना होगा.

Lalu Prasad Yadav
नहीं लड़ सकते लोकसभा चुनावतस्वीर: AP

विधि आयोग की रिपोर्ट पर आधारित सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसला स्वागत योग्य है. लेकिन न्यायिक प्रक्रिया को लंबित करने का अभी भी एक दरवाजा संदिग्ध नेताओं लिए बाकी बचा है. यह आरोप पत्र दाखिल होने से जुड़ा है. दरअसल कानूनी प्रक्रिया के तहत अदालत में किसी भी आपराधिक मामले में वादी पुलिस होती है और प्रतिवादी वह पक्षकार होता है जिसके खिलाफ आपराधिक आरोप लगाया गया है. मुकदमा शुरू किए जाने से पहले पुलिस को अदालत में प्रतिवादी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की वैधता साबित करनी होती है. जब आरोपों की वैधता साबित हो जाती है तभी पुलिस द्वारा आरोप पत्र दाखिल किया जाता है और इस आरोप पत्र पर ही मामले की सुनवाई शुरु होती है.

सवाल बरकरार

तकनीकी तौर पर सुनवाई का यह दूसरा चरण ही वास्तविक ट्रायल माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साल की जो समय सीमा तय की गई है वह मूलतः दूसरे चरण के लिए है. जबकि आरोपपत्र तय होने तक की प्रक्रिया के लिए सीआरपीसी में कोई समय सीमा नहीं है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि निचली अदालतों में समूची प्रक्रिया को प्रभावित कर सकने वाले नेता क्या आरोप तय करने वाले पहले चरण को ही लंबित नहीं करेंगे. जबकि चारा घोटाले से लेकर बोफोर्स घोटाले और मुंबई विस्फोट मामले तक में हमने देखा है कि आरोप पत्र दाखिल होने में ही कई साल लग गए. उम्मीद है कि पूर्ण फैसले में अदालत इसकी समय सीमा भी तय कर देगी.

चुनाव सुधार के लिए अदालत की सक्रियता भरे फैसले सिस्टम की सफाई में मददगार तो साबित हो रहे हैं लेकिन इनके असर होने पर सवाल भी कम नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले की कामयाबी को जांचने के लिए यह देखना होगा कि अगले साल मई 2015 तक तमाम दागी सांसद विधायकों की सदस्यता खत्म होती है या नहीं. दरअसल भारत में 162 मौजूदा सांसद और 1460 विधायक दागी हैं और इनमें से 72 सांसदों के खिलाफ हत्या, अपहरण और रंगदारी जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं. देखना होगा कि इस फैसले के एक साल बाद मई 2015 में इनके मुकदमों का फैसला आता है या नहीं. खासकर 72 में से उन 34 सांसदों के खिलाफ अदालती फैसले का इंतजार ज्यादा होगा जो 16वीं लोकसभा के लिए भी ताल ठोंक रहे हैं.

ब्लॉग: निर्मल यादव

संपादन: महेश झा