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दिलीप कुमार से बने अल्लाह रखा रहमान

६ जनवरी २०१५

एआर रहमान भारतीय सिनेमा जगत के प्रयोगवादी और प्रतिभाशाली संगीतकारों में शामिल हैं. उन्होंने भारतीय सिनेमा संगीत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई है. आज वे अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं.

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तस्वीर: AP

छह जनवरी 1967 को तमिलनाडु में जन्मे रहमान का रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था. उनके पिता आरके शेखर मलयालम फिल्मों के लिए संगीत दिया करते थे. रहमान भी अपने पिता की तरह ही संगीतकार बनना चाहते थे. संगीत के प्रति उनके बढ़ते रूझान को देख उनके पिता ने उन्हें संगीत सिखाना शुरू किया. सिंथेसाइजर और हारमोनियम पर संगीत का रियाज करने वाले रहमान की कीबोर्ड पर उंगलियां ऐसा कमाल करतीं कि सुनने वाले मुग्ध रह जाते.

कुछ दिनों बाद रहमान ने एक बैंड की नींव रखी जिसका नाम था नेमेसीस एवेन्यू. वह इस बैंड में सिंथेनाइजर, पियानो, गिटार और हारमोनियम बजाते थे. अपने संगीत के शुरूआती दौर से ही रहमान को सिंथेनाइजर ज्यादा अच्छा लगता था. उनका मानना था कि वह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसमें संगीत और तकनीक का बेजोड़ मेल देखने को मिलता है.

बहन के कारण कबूला इस्लाम

रहमान अभी संगीत सीख ही रहे थे कि उनके सर से पिता का साया उठ गया, लेकिन रहमान ने हिम्मत नहीं हारी और संगीत सीखना जारी रखा. 1989 में रहमान की छोटी बहन काफी बीमार पड़ गयी और सभी चिकित्सकों ने कह दिया कि उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है. रहमान ने अपनी छोटी बहन के जीवन की खातिर दुआएं मांगी. जल्द ही उनकी दुआ रंग लाई और उनकी बहन चमत्कारिक रूप से एकदम स्वस्थ हो गईं. इस चमत्कार को देख रहमान ने इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम एएस दिलीप कुमार से अल्लाह रखा रहमान यानि एआर रहमान रख लिया.

इस बीच रहमान ने मास्टर धनराज से संगीत की शिक्षा हासिल की और दक्षिण फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार इल्लया राजा के समूह के लिए कीबोर्ड बजाना शुरू कर दिया. उस समय रहमान की उम्र महज 11 वर्ष थी. इस दौरान रहमान ने कई बड़े एवं नामी संगीतकारों के साथ काम किया. इसके बाद उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक में स्कॉलरशिप मिली, जहां से उन्होंने वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की डिग्री भी हासिल की.

रोजा से खुली किस्मत

स्नातक की डिग्री लेने के बाद रहमान वापस भारत लौट आए और लगभग एक साल तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे और टीवी के लिए छोटा मोटा संगीत देने और रेडियो जिंगल बनाने का काम करते रहे. 1992 रहमान के सिने करियर का महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ जब उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक मणि रत्नम से हुई. मणि उन दिनों फिल्म रोजा बना रहे थे और अपनी फिल्म के लिए संगीतकार की तलाश में थे. उन्होंने रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने की पेशकश की.

कश्मीर आतंकवाद के विषय पर आधारित इस फिल्म में रहमान ने अपने सुपरहिट संगीत से श्रोताओं का दिल जीत लिया और इसके साथ ही वह सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गये. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिल्मों में एक से बढ़कर एक और बेमिसाल संगीत दिया. रहमान ने तिरूड़ा तिरूड़ा, बॉम्बे, जेंटलमैन, इंडियन और कादलन आदि फिल्मों में भी सुपरहिट संगीत दिया और संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बनाई. उन्होंने कर्नाटक संगीत, शास्त्रीय संगीत और आधुनिक संगीत को मिलाकर अलग तरह का संगीत देने का प्रयास किया. इसके बाद रहमान निर्माता-निर्देशकों की पहली पसंद बन गए.

फिल्म फेयर से ऑस्कर तक

रहमान ने 1999 में कॉरियोग्राफर शोभना प्रभुदेवा और उनके डांसिंग समूह के साथ मिलकर माइकल जैक्सन के 'माइकल जैक्सन एंड फ्रैंडस टूर' के लिए जर्मनी के म्यूनिख शहर में कार्यक्रम पेश किया. इसके बाद रहमान को म्यूजिक कंसर्ट में भाग लेने के लिए विदेशों से भी प्रस्ताव आने लगे. उन्होंने पश्चिमी संगीत के साथ साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के मिश्रण को लोगों के सामने रखना शुरू कर दिया.

एआर रहमान को बतौर संगीतकार अब तक दस बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इन सबके साथ ही अपने उत्कृठ संगीत के लिए उन्हें चार बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है. साथ ही विश्व संगीत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 2006 में उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सम्मानित किया गया. एआर रहमान के सिने करियर में एक नया अध्याय उस समय जुड़ गया जब उन्हें फिल्म 'स्लमडॉग मिलिनेयर' के लिए दो ऑस्कर पुरस्कार मिले. वे ऑस्कर पाने वाले पहले भारतीय हैं.

एमजे/आईबी (वार्ता)