दिल्ली की हवा खराब
५ अप्रैल २०१५चीन भी भारत की ही तरह बिगड़ती हवा से परेशान है. प्रदूषित वायु के कारण शहरों को लीलते स्मॉग यानि प्रदूषित धुएं और धुंध से निपटने के लिए चीन ने ड्रोनों का सहारा लिया है. यह ड्रोन आकाश में घूमते हुए पर्यावरण को गंदा करने वाले अवैध कारकों पर गुप्त रूप से नजर रखने का काम करते हैं. इस मामले में ऐसा कोई कदम उठाने के बजाए भारतीय प्रशासन ने मार्च में बताया कि वह वायु प्रदूषण के कच्चे आंकड़े जारी करना ही बंद कर देंगे. इस कदम का पर्यावरण कार्यकर्ताओं के काफी विरोध किया. अब तक तीन अलग अलग सरकारी एजेंसियां राजधानी में कई जगहों पर लगे वायु निगरानी केन्द्रों से मिले डाटा को एकत्र कर सीधे उन्हें प्रकाशित किया करती थीं. अब सरकार ने कह दिया कि इन आंकड़ों का प्रकाशन ना करके भविष्य में इन्हें केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजा जाए. बोर्ड पहले इसका विश्लेषण करेगा और उसके बाद ही "विश्वसनीय वायु गुणवत्ता जानकारी को दिल्ली की जनता तक पहुंचाया जाएगा."
पर्यावरण कार्यकर्ताओं को 6 अप्रैल से लागू होने जा रहे इस नए सिस्टम पर संदेह है. उनका मानना है कि सरकार बुरी खबर को छुपाने के लिए ऐसा कदम उठा रही है. अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ग्रीनपीस इंडिया की ओर से वायु प्रदूषण पर अभियान चलाने वाली ऐश्वर्या मादिनेनी ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "यह कदम मुझे बहुत चिंताजनक लगता है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि प्रकाशन के पहले प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा इन आंकड़ों को संपादित करने का क्या अर्थ होगा." मादिनेनी कहती हैं कि लोगों को यह जानने का हक है क्योंकि "इसका उनकी सेहत पर सीधा असर पड़ता है." काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर ने साथ जुड़े रिसर्च एसोसिएट हेम ढोलकिया का मानना है कि यह कदम पारदर्शिता बरतने के खिलाफ जाता दिखता है. वे कहते हैं, "कहीं भी रियल-टाइम मॉनिटर्स हैं, तो वहां के डाटा को किसी तरह की पुष्टि की जरूरत नहीं होती."
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक विस्तृत स्टडी के सामने आने के बाद से ही भारत सरकार पर वायु प्रदूषण पर नियंत्रण करने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. पिछले साल जारी हुई इस स्टडी में दुनिया के 1,600 शहरों में दिल्ली को दुनिया भर में प्रदूषित पीएम2.5 कणों की सांद्रता के मामले में सबसे अधिक वार्षिक औसत वाला शहर बताया गया था. 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम व्यास वाले ये बेहद छोटे कण आसानी से शरीर में घुस कर खून में मिल जाते हैं. यही कारण है कि हवा में इनकी अधिक मात्रा से फेफड़ों की गंभीर बीमारी ब्रॉन्काइटिस, कैंसर और हृदय रोगों को बढ़ावा मिलता है.
यह कण ना केवल दिल्ली में बल्कि दुनिया के कई विकासशील शहरों में चल रहे निर्माण कार्यों की साइट से उठ रही धूल में मिले होते हैं, या फिर डीजल इंजिनों और औद्योगिक उत्सर्जनों से आते हैं. भारत ने डब्ल्यूएचओ के निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी लेकिन इतना माना था कि राजधानी दिल्ली के प्रदूषण की तुलना चीनी राजधानी बीजिंग से की जा सकती है. अभी भी भारत सरकार की ओर से किसी ठोस नीतिगत कदम की घोषणा नहीं हुई है. हालांकि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राज्य सरकारों से वायु की गुणवत्ता सुधारने के बारे में जल्द ही जरूरी उपाय करने को कहा है.
आरआर/एमजे (एएफपी, पीटीआई)