दुनिया भर में शेक्सपीयर
विलियम शेक्सपीयर ऐसे लेखक हैं जो दुनिया भर में लोकप्रिय हैं. उनके नाटकों का हर देश में मंचन होता है और फिल्में भी बनाई जाती हैं. इस लोकप्रियता के पीछे उनका ब्रिटिश होना है या उनकी रचनाओं का वैश्विक विषय.
शाश्वत लोकप्रियता
शेक्सपीयर की रचनाओं का हर संस्कृति और हर भाषा में रूपांतर संभव है. इसकी वजह उसके विषयों का शाश्वत होना है, प्यार, ईर्ष्या और साजिश से लेकर बदला, हमला और हत्या तक.
तगड़ी भावनाएं
शेक्सपीयर अपने पात्रों के मानवीय पहलू को उभारते हैं जिसमें दर्शक या पाठक अपनी परछाईं देखता है, या उनसे परहेज करता है. मैकबेथ सत्ता की लालसा की कहानी है (यहां तेहरान में एक प्रदर्शन).
मैकबोत्स्वाना
वही कथानक पर नतीजा एकदम अलग. अफ्रीकी मिथकों के लिए शेक्सपीयर जगह छोड़ते हैं. 2009 में ओकावांगो मैकबेथ बोत्स्वाना का पहला ऑपेरा था. अलेक्जेंडर मैककॉल ने उसे अपने देश की राजनीतिक हालात के अनुरूप ढाला.
समुराई शेक्सपीयर
अकीरा कुरोसोवा ने अपनी फिल्म कुमोनोसू जो में मैकबेथ को जापान के समुराई काल में भेज दिया. जापान के महान फिल्मकार की यह कालजयी फिल्म भय का अहसास कराती सुंदर तस्वीरों में त्रासदी दिखाती है.
प्रतिबंधित प्रेम
समुराई से पॉप संस्कृति तक. 1996 में शेक्सपीयर की विख्यात रचना रोमियो और जूलियट को बैज लुरमन ने लियोनार्दो दे कैप्रियो और क्लेयर डेन्स के रूप में पर्दे पर पेश किया. उनका भी मकसद लोगों का मनोरंजन था.
रॉकिंग रोमियो
रास्टा थोमस और ऐड्रिएन कांतेर्ना ने सोचा रोमानी प्रेम गाथा के चरित्र नाच क्यों नहीं सकते? और उन्होंने रोमियो और जूलियट को रॉक बैले के रूप में मंच पर उतार दिया. (यहां 2013 में हैम्बर्ग में प्रदर्शन).
सुन्नी शिया प्यार
इराकी थियेटर कंपनी ने अपने प्रदर्शन रोमियो और जूलियट के लिए बगदाद में रोमियो को शिया और जूलियट को सुन्नी बना दिया. इस प्रस्तुति ने विवाद के आयाम को व्यक्तिगत दायरे से निकाल कर पूरे समाज में फैला दिया.
दक्षिण कोरियाई सपना
एशियाई थिएटर में भी शेक्सपीयर लोकप्रिय हैं. कोरियाई थिएटर कंपनी योहांग्जा ने 2010 में अपनी प्रस्तुति "गर्मी की रातों का सपना" से तहलका मचा दिया. संगीत और लय का पटाखा छोड़ती यह प्रस्तुति मिथक और अभिनय का मिश्रण है.
सीरियाई राजा
शेक्सपीयर के प्रभाव से जॉर्डन की मरुभूमि में जतारी शरणार्थी शिविर भी अछूता नहीं. 13 साल की उम्र में सीरिया के गृह युद्ध के कारण घर छोड़ने को मजबूर मजीद अमारी इस प्रस्तुति में किंग लीयर की भूमिका निभा रहे हैं.
तालिबान का तूफान
1960 के दशक को अफगान थियेटर का स्वर्ण काल कहा जाता है. लेकिन उसके बाद तालिबान ने सभी नाटक केंद्रों को बंद कर दिया. काबुल में 2012 में शेक्सपीयर के नाटक तूफान का प्रदर्शन एक तरह का संकेत भी था.
एक और रिकॉर्ड
पंजाबी में लिखने वाले सुरजीत हंस पहले भारतीय लेखक हैं जिन्होंने किसी भारतीय भाषा में शेक्सपीयर के सभी 37 नाटकों का अनुवाद किया है.