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कान से कोलकाता

१२ अक्टूबर २०१३

पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा के आयोजन की भव्यता किसी से छिपी नहीं है. कोलकाता में बनने वाले दर्जनों पूजा पंडाल दर्शनार्थियों को स्वप्नलोक की सैर पर ले जाते हैं. लेकिन इस बार एक पंडाल लोगों को अतीत के सफर पर ले जाएगा.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों के इतिहास की सैर कराने वाले इस पंडाल की थीम है कान से कोलकाता. दो देशों की कला और संस्कृतियों के बेहतर मिश्रण की झलक दिखाने वाले इस पंडाल को फ्रांस के दो कलाकारों ने स्थानीय कलाकारों के साथ मिल कर बनाया है.

सिनेमा हॉल जैसा पंडाल

दक्षिण कोलकाता के जोधपुर पार्क की पल्लीमंगल पूजा समिति का यह पंडाल किसी पुराने सिनेमा हॉल की शक्ल में बना है. इसका गेट भी सिनेमा हॉल के गेट की तरह है. इसके करीब पहुंचते ही दर्शकों का फिल्मी सफर शुरू हो जाता है. पंडाल में एंथोनी फिरिंगी, जय बाबा फेलूनाथ और कहानी जैसी उन बांग्ला और हिंदी फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है, जिनमें दुर्गापूजा का चित्रण किया गया है. इसके अलावा वहां कान फिल्मोत्सव में अवार्ड जीतने वाली फिल्मों का प्रदर्शन भी हो रहा है. आयोजन समिति के सचिव नारायण राय बताते हैं, "पंडाल के भीतर एक परदे पर भारत और फ्रांसीसी सिनेमा के इतिहास में बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्में दिखाई जाती हैं." यही नहीं, पंडाल का एक हिस्सा किसी स्टूडियो की शक्ल में बना है. वहां कैमरे से लेकर प्रकाश और ध्वनि यानी शूटिंग में काम आने वाले तमाम उपकरण रखे हैं. इससे दर्शकों को फिल्म निर्माण की प्रक्रिया समझने में सहूलियत होती है. लोगों को यह भी बताया जाता है कि किस तरह 24 फ्रेमों की सहायता से एक सेकेंड की फिल्म तैयार होती है.

Durga Puja 110 Jahre Kino in Indien
दुर्गापूजा में सिनेमा के सौ सालतस्वीर: DW/Prabhakar

करीब लाने का प्रयास

इस आयोजन के जरिए फिल्मों के प्रति दीवाने दो देशों को करीब लाने की पहल करने वाले जयदीप मुखर्जी बताते हैं, "इस साल मई में कान फिल्मोत्सव के बाद भारतीय सिनेमा के सौ साल की थीम पर पंडाल बनाने का विचार आया. इस पहल से बांग्ला और फ्रांस के फिल्मोद्योग में सहयोग और संभावना के नए दरवाजे खुल सकते हैं."

फ्रांस से आए दो कलाकारों, जां-जाविये रेनो और गेल फोरे ने स्थानीय कलाकारों के साथ मिल कर पंडाल की साज-सज्जा और उसे रंगने का काम किया है. रेनो कहते हैं, "हमने साज-सज्जा और पेंटिंग के जरिए इस पंडाल को फ्रांसीसी रूप देने का प्रयास किया है. भारत-फ्रांस सांस्कृतिक संघ अलियांस फ्रांसेस ने इस परियोजना का समर्थन करते हुए इसे 40 लाख रुपए की सहायता दी है. संघ के स्थानीय निदेशक स्टेफान आमालिर कहते हैं, "भारत और फ्रांस दोनों देशों में फिल्में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय माध्यम हैं. इसलिए इस मुद्दे पर पंडाल की डिजाइन बनाने का फैसला किया गया." वह कहते हैं कि यह आयोजन भारतीय और फ्रेंच सिनेमा के आपसी संबंधों को और मजबूत करेगा. भारत में साल 1896 में पहली फिल्म का प्रदर्शन फ्रांस के लुमियर बंधुओं ने ही किया था. आखिर फ्रांस ने इस आयोजन में सहयोग का फैसला क्यों किया? इस सवाल पर स्टीफान कहते हैं, "हमारा मकसद एक ऐसा आयोजन करना है जिसे भारत से बाहर भी ले जाया जा सके. दुर्गापूजा को अपनी कला, भव्यता, और थीम के लिए वैश्विक स्तर पर पहचान मिलनी चाहिए."

Durga Puja 110 Jahre Kino in Indien
भारतीय फिल्मों का इतिहासतस्वीर: DW/Prabhakar

इस आयोजन को देखने के लिए फ्रांस से बड़े पैमाने पर पर्यटकों के यहां पहुंचने की उम्मीद है. कनाडा से भी पर्यटकों का एक दल यहां आने वाला है. कहीं पाकिस्तान की ट्रक कला तो कहीं फ्रांसीसी कूची का कमाल, यानी इस साल बंगाल की पूजा की महक पूरब से पश्चिम तक फैलते हुए अब सही मायने में वैश्विक स्वरूप लेने लगी है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: आभा मोंढे

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