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दो खेमों में बंटा जेएनयू विवाद

रोहित जोशी१५ फ़रवरी २०१६

जेएनयू में लगे कथित भारत विरोधी नारों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. एक तरफ छात्रसंघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी का भारी विरोध हो रहा है, तो दूसरी ओर नारों की कड़ी आलोचना भी हो रही है.

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Indien Studentenproteste in Neu Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाए जाने के बाद से मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. जहां एक ओर इन नारों को लेकर जेएनयू की आलोचना हो रही है, वहीं दूसरी ओर इस मामले में ​जेएनयू अध्यक्ष कन्हैय्या कुमार की देशद्रोह के आरोप में हुई गिरफ्तारी का भी तीखा विरोध हो रहा है. जेएनयू में हजारों छात्रों और जेएनयू के शिक्षक संगठन ने मानव श्रृंखला बनाकर ​इसका विरोध किया है. वहीं दिल्ली के जंतरमंतर में भी इसे लेकर प्रदर्शन हुए हैं.

सोमवार सुबह दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैय्या कुमार की पेशी के दौरान कुछ वकीलों और भाजपा समर्थकों ने जेएनयू छात्रों और मीडिया के लोगों की पिटाई कर दी. कुछ पत्रकारों ने आरोप लगाया है कि इन लोगों ने उनके फोन छीनकर उन्हें पीटने की धमकी भी दी.

जेएनयू छात्र संगठन अपने नेता की बिना शर्त रिहाई की मांग को लेकर हड़ताल पर चला गया है और उसने यूनिवर्सिटी में कोई भी कामकाज न होने देने की बात कही है. इस पर सोमवार को विश्वविद्यालय के कुलपति जगदीश कुमार ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर छात्रों से हड़ताल खत्म कर कक्षाओं में लौटने की अपील की. हालांकि कुलपति ने जेएनयू के शिक्षकों की ओर से किए जा रहे प्रदर्शन के बारे में कहा है, ''विचारों और अभिव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है, अगर यह शांतिपूर्वक ढ़ग से की जाए तो यह ठीक है.'' कुलपति ने यह भी बताया है कि जेएनयू में 9 फरवरी को आयोजित हुए इस विवादित कार्यक्रम की जांच के लिए एक विशेष टीम बनाई गई है जो कि 25 फरवरी तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

इससे पहले शनिवार को जेएनयू अध्यक्ष की गिरफ्तारी के विरोध में कैंपस में हुए एक कार्यक्रम में सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, सीपीआई एमएल की कविता कृष्णन समेत भाजपा के विरोधी कई राष्ट्रीय दलों के नेता पहुंचे और उन्होंने जेएनयू अध्यक्ष की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया. उधर जेएनयू के समर्थन में उतरे राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को घेरते हुए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने एक ब्लॉग लिखा है. अपने ब्लॉग में अमित शाह ने लिखा, ''मैं उनसे पूंछना चाहता हूं कि इन नारों का समर्थन करके क्या उन्होंने देश की अलगाववादी शक्तियों से हाथ मिला लिया है? क्या वह स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की आड़ में देश में अलगाववादियों को छूट देकर देश का एक और बंटवारा करवाना चाहते हैं?''

इस मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान की भी आलोचना हो रही है. रविवार को इलाहाबाद में पत्रकारों से बात करते हुए गृह मंत्री ने कहा, ''मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं जेएनयू की घटना को लश्कर—ए—तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद का समर्थन है.'' गृहमंत्री का यह बयान हाफिज सईद के नाम से एक ट्विटर हैंडल के हवाले से दिया गया था, जिसे बाद में फर्जी पाया गया. दिल्ली पुलिस ने भी अपनी ओर से एक चेतावनी के बतौर इसे ट्वीट किया था.

इस मामले में बिना सत्यता की जांच किए बयानबाजी में जल्दबाजी को लेकर गृहमंत्री की आलोचना हो रही है. उधर राजनाथ सिंह ने अपने एक ट्वीट में लिखा है, ''जो भी भारत विरोधी ​गतिविधियों या प्रोपेगेंडा में शामिल रहे हैं, उन्हें नहीं बक्शा जाएगा और जो निर्दोष हैं उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा.''

जेएनयू में खड़े हुए इस विवाद के बाद से देशभर के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की हड़ताल का समर्थन किया है. वहीं दूसरी ओर ट्वीटर में #CleanUpJNU ट्रेंड कर रहा है, जिसमें जेएनयू में लगे कथित राष्ट्र विरोधी नारों की कड़ी आलोचना हो रही है.