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नए मोड़ पर है तमिलनाडु की राजनीति

मारिया जॉन सांचेज
१४ फ़रवरी २०१७

एआईएडीएमके नेता शशिकला को दो दशक पुराने भ्रष्टाचार मामले में जेल भेजने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तमिलनाडु की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है और अनेक तरह की संभावनाएं पैदा हो गयी हैं.

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Indien Sasikala Natarajan
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Sankar

सत्तारूढ़ एआईएडीएमके की सर्वोच्च नेता जे. जयललिता के निधन के बाद पार्टी की महासचिव बनीं वी. के. शशिकला का राज्य की मुख्यमंत्री बनने का सपना चूर-चूर हो गया है क्योंकि आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए चार साल कैद की सजा सुनायी है और सजा समाप्त होने के बाद भी छह साल तक वह कोई चुनाव नहीं लड़ सकेंगी. जेल जाने से पहले शशिकला ने राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर दी. पन्नीरसेल्वम अपने पद पर बने रहने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं और उनके पार्टी से निष्कासन के बाद एआईएडीएमके में विभाजन सुनिश्चित हो गया है.

शशिकला ने ई. पलनीसामी को विधायक दल का नेता नियुक्त कर दिया है. अब देखना यह है कि पन्नीरसेल्वम अपने पक्ष में विधायकों का बहुमत जुटा पाते हैं या पलनीसामी. हालांकि दोनों ही गुट जयललिता के नाम का जाप कर रहे हैं और उनके सपनों को पूरा करने एवं उनके ‘स्वर्णिम शासन' को जारी रखने का वादा कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए इस तथ्य को दबाना बहुत मुश्किल होगा कि जिस मामले में शशिकला को जेल हुई है, उसमें जयललिता मुख्य अभियुक्त थीं और उनको दोषी पाया गया है. शशिकला तो केवल सह-अभियुक्त ही थीं. शशिकला अभी भी अपने निर्दोष होने और अंततः ‘धर्म की विजय' होने की बात कर रही हैं, लेकिन जयललिता के दोषी पाये जाने के कारण एआईएडीएमके पार्टी पर से यह दाग आसानी से नहीं छूट पाएगा.

तमिल राजनीति में बदलाव

हालांकि तमिलनाडु की राजनीति में पीएमके और एमडीएमके जैसी छोटी क्षेत्रीय पार्टियां भी सक्रिय रही हैं, लेकिन उसकी राजनीति मुख्यतः दो-ध्रुवीय ही रही है और सत्ता कभी डीएमके और कभी एआईएडीएमके के हाथ में रही है. 1967 में डीएमके ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया था और तब से लेकर अब तक पांच दशकों में कांग्रेस समेत कोई भी राष्ट्रीय पार्टी राज्य में जड़ नहीं जमा पायी है. लेकिन एआईएडीएमके में संभावित विभाजन के मद्देनजर यकीन के साथ कहा जा सकता है अब राज्य की राजनीति बहु-ध्रुवीय होने की ओर बढ़ रही है.

डीएमके के सर्वोच्च नेता एम. करुणानिधि भी बहुत वृद्ध हो चुके हैं और बहुत दिनों तक पार्टी को नेतृत्व देने की स्थिति में नहीं हैं. उनके बाद पार्टी उनके दो पुत्रों एम. के. स्टालिन और एम. के. अड़ागिरि के बीच नेतृत्व की लड़ाई के कारण बंट सकती है. ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में किसी एक पार्टी का अकेले बहुमत लेकर उभरना संदिग्ध हो जाएगा. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसे राष्ट्रीय दल इस स्थिति का लाभ उठाकर राज्य में अपने पैर जमाने की कोशिश कर सकते हैं.

राष्ट्रीय दलों के लिए अवसर

माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे से भाजपा पन्नीरसेल्वम को समर्थन दे रही है. अभी यह सपष्ट नहीं है कि तमिलनाडु में स्थिर सरकार बन पाएगी या नहीं. भाजपा की कोशिश होगी कि राज्य में अगले विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ-साथ हों. यूं भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस राय के हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही होने चाहिए. फिलहाल तमिलनाडु में भाजपा के पास तीन प्रतिशत से भी कम वोट हैं लेकिन वह अपने जनाधार को बढ़ाने की कोशिश करेगी.

एआईएडीएमके के सामने अपने सामाजिक आधार को बनाए रखने की चुनौती है. उसने थेवर समुदाय को अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) नहीं बल्कि सर्वाधिक पिछड़ी जाति (एमबीसी) का दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन अगर अब उसी समुदाय के पन्नीरसेल्वम पार्टी से अलग हो गए तो फिर थेवरों का समर्थन पक्का नहीं रह पाएगा. अन्य जातियों के बीच के राजनीतिक समीकरण भी बदल सकते हैं. फिलहाल इतना तो कहा ही जा सकता है कि तमिलनाडु की राजनीति में बुनियादी बदलाव आने का संयोग बन रहा है और इसका राष्ट्रीय राजनीति पर भी अवश्य असर पड़ेगा.