1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

'नक्सलबाड़ी जैसा है छात्रों का यह उबाल': उमर खालिद

२३ मार्च २०१६

लंबे समय बाद छात्र राजनीति फिर भारतीय राजनीति के केंद्र में नज़र आई है. इस सबके बीच रोहित वेमुला, कन्हैया, उमर और अनिर्बान के नाम सबसे ज्यादा सुनाई दिए हैं. डॉयचे वेले के रोहित जोशी ने उमर खालिद से पूरे मसले पर बात की.

https://p.dw.com/p/1IHzF
Indien Umar Khalid und Anirban Bhattacharya
तस्वीर: Getty Images/AFP

'सरकार को छात्रों से मिल रहा है विपक्ष'

डॉयचे वेले: पिछले डेढ़ म​हीने में जेएनयू भारतीय राजनीति के केंद्र में आ गया है और उसके केंद्र में आप लोग हैं, क्या कुछ समझ में आया है डेढ़ म​हीने में?

उमर खालिद: अगर मैं इस बात से शुरूआत करूं कि 'दीज वैर दि वर्स्ट ऑफ टाइम बट दीज वैर ऑल्सो दि बेस्ट ऑफ दि टाइम.' मतलब एक तरफ देखा जाए तो ये सबसे बुरा समय था लेकिन दूसरे नजरिए से देखा जाए तो बहुत अच्छा वक्त भी था. क्योंकि पिछले डेढ़ महिने में जिस तरह​ से जेएनयू पर ये हमला रहा और जेएनयू को नेशनल लाइम लाइट में लाकर पूरी तरह बदनाम करने की जो ​कोशिशें की गई, ये एक सिलसिले के बतौर हुआ है. पहले एफटीआईआई में फिर यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद में और उसके बाद ये हमला जेएनयू पर था.

देखा जाए तो छात्र आंदोलन देश की राजनीति के केंद्र में सिर्फ जेएनयू से नहीं बल्कि पिछले दो साल से आ ही चुका है. जिस तरह का उभार छात्र राजनीति में पिछले दिनों आया है, 60 के दशक के नक्सलबाड़ी आंदोलन के दौरान उभरे छात्र आंदोलन के बाद से आज छात्र आंदोलन में फिर वो ऊंचाई दिखाई दे रही है. और इस सरकार को छात्रों की ओर से बहुत ही बड़ा विपक्ष मिल रहा है.

Indien New Delhi Neu Delhi Studenten Proteste
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Gupta

​क्योंकि सरकार का जो एजेंडा है हिंदुत्व का, विश्वविद्यालय के भगवाकरण का, ​इतिहास के पुनर्लेखन का, भगवा लोगों की भर्तियों का और लोकतांत्रिक और विरोध की जगहों को खत्म करने का है. इसलिए ये हर जगह चल रहा है. न सिर्फ जेएनयू में बल्कि इलाहाबाद और बनारस के साथ ही अलग-अलग विश्वविद्यालयों में ये चला आ रहा है. सरकार को लगा कि जेएनयू पर हमला करके वो खासतौर से रोहित वेमुला के मुद्दे को भटका देंगे. लेकिन जो एकता छात्रों और अध्यापकों ने दिखाई और ​जो लड़ाई लड़ी गई, उससे 'स्टेंड विद जेएनयू' और 'जस्टिस फॉर रोहित' एक दूसरे का पर्याय बन गए. दोनो एक ही आंदोलन बन गए, और ये हमारी बहुत बड़ी जीत है.

9 फरवरी का जो कार्यक्रम था, उसमें कहा गया कि भारत विरोधी नारे लगाए गए. तो वो क्या कार्यक्रम था और उसका मकसद क्या था?

देखिए जहां तक 9 फरवरी की बात है तो मैं उस पर इस वक्त बहुत कुछ बोल नहीं पाउंगा क्योंकि मामला अभी कोर्ट के विचाराधीन है. मेरी अभी सिर्फ जमानत हुई है जांच अभी चल रही है. लेकिन एक बात जो हम समझ रहे हैं कि ये हमला सिर्फ 9 फरवरी के नारों की वजह से नहीं हुआ है. इसका अगर कोई कारण है तो पिछले 2 साल में जो-जो छात्र आंदोलन हुए हैं उनका सरकार के खिलाफ एक प्रतिरोध रहा है. उसकी ही प्रतिक्रिया में छात्र आंदोलन में दहशत पैदा करने के​ लिए ये किया गया था. इन सभी आंदोलन में जेएनयू की बहुत अहम भूमिका रही है. दिल्ली में होने वाले किसी भी कार्यक्रम में जेएनयू छात्रसंगठन और छात्र बहुत अहम भूमिका अदा करते थे. इसीलिए जेएनयू को सबक सिखाने के लिए ये सब किया गया. इसका 9 फरवरी से कुछ लेना देना नहीं है. ये छात्रों को दबाने-कुचलने के लिए किया गया लेकिन हम और अच्छी तरह उभर कर सामने आए हैं. जिन लोगों ने कभी आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था वे बाहर निकल कर आए और ​उनकी भी यहां शुरूआत हुई.

Indien India Mashal Jadavpur University Students Studenten Protest Banner bei Nacht
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Chakraborty

जिन नारों पर विवाद हुआ है उनमें से कुछ में तो वाकई दिक्कत थी, हालांकि ये जांच का विषय है कि वो लगे कि नहीं. लेकिन कश्मीर की आजादी के नारे तो जेएनयू के लिए नए नहीं हैं, पर अब ऐसी भी आवाजें आ रही हैं कि जैसे वहां ये नारे लगते ही नहीं हैं. इस पर क्या कहेंगे आप?

देखिए जेएनयू हो या कोई भी यूनिवर्सिटी हो, एक यूनिवर्सिटी स्पेस कोई आरएसएस की शाखा नहीं है, किसी राजनीतिक दल का दफ्तर नहीं है. हमारा मानना है कि एक विश्वविद्यालय में हर किस्म के राजनीतिक दृष्किोणों को रखने की पूरी जगह होनी चाहिए. चाहे वो कश्मीर के ऊपर हो मणिपुर के ऊपर हो फिलिस्तीन के ऊपर हो और या किसी भी देश के किसी भी मसले के ऊपर हो. और संवैधानिक रूप से भी इसमें कुछ गलत नहीं है. विश्वविद्यालय ज्ञान निर्माण की जगह है. अगर यहां आप असहमति को स्वीकार नहीं करेंगे, अलग-अलग बातों पर वाद-विवाद और संवाद करने का मौका नहीं देंगे, चाहे वो कितने ही विवादास्पद विषय हों, तो ज्ञान निर्माण आगे नहीं बढ़ सकता.

जेएनयू कैंपस में सारा वाम साथ नजर आ रहा है, कितना लंबा साथ है ये?

देखिए आज के दौर में ये काफी जरूरी है कि न केवल सारी वामपंथी पार्टियां बल्कि सारे लोकतांत्रिक और अंबेडकरवादी संगठन साथ आ कर लड़ें, ना केवल जेएनयू में बल्कि पूरे देश भर में. कई बार जो एकता हम खुद नहीं बना पाते, हमारा शत्रु ऐसा माहौल बना देता है कि हम एक साथ आ खड़े होते हैं. जेएनयू में जो हुआ वो अभी खत्म नहीं हुआ है. हाई लेवल कमेटी की जो सिफारिशें आई हैं उनके खिलाफ भी लड़ना है, राजद्रोह के मामले वापस लिए जाएं, इसके लिए भी लड़ना है. और इसके परे समाज में ​जो अलग-अलग किस्म का दमन उत्पीड़न है उसके खिलाफ भी छात्रों की अहम भू​मिका है. उसके लिए भी यही एकता बरकरार रखनी है.

Indien Proteste JNU Campus Neu Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Mukherjee