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नन्हीं सी उम्र और सांड का सामना

९ सितम्बर २०१०

स्पेन दुनिया भर में अपनी खतरनाक बुल फाइटिंग के लिए मशहूर है. लेकिन मेक्सिको इस मामले में उससे भी एक कदम आगे हैं. वहां बच्चे भी भारी भरकम सांड से भिड़ सकते हैं. 12 साल के एक बच्चे ने इसकी तैयारी भी कर ली है.

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तस्वीर: AP

मिशेल लुईस कार्लोस लाग्रावेरे पेनिशे नन्हीं सी उम्र में ही खासा मशहूर हो गया है और सब लोग उसे मिशेलीतो पुकारते हैं. 400 किलो से सांड का सामना करने के लिए उसने खूब तैयारी भी की है. उसने कई खतरों का सामना किया है.

हाल ही में उसे हवा में उछाला गया और जमीन पर आया तो रेत पर उसका सामना एक तगड़े सांड से हुआ. मंगुएरो नाम के इस सांड के लंबे और तेज सींगों से मिशेलीतो बाल बाल बचा. तभी सांड घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गर्दन से गाढ़ा खून बह रहा था. मेक्सिको सिटी के मेक्सिको प्लाजा में जैसे ही मिशेलीतो पल्टा तो उसका मुंह खून में सन गया.

Pamplona Stierkampf Stier Hatz Flash-Galerie
स्पेन में मशहूर है बुल फाइटिंगतस्वीर: AP

मिशेलीतो की मां डायना पेनिशे सांसें थामकर इस लड़ाई को देख रही थीं. 40 हजार दर्शकों से भरे मेक्सिको प्लाजा की पहली कतार में मिशेलीतो की मां के अलावा उसके तमाम दोस्त भी इस लड़ाई पर नजरें गड़ाए थे. लेकिन सब कुछ ठीक रहा. वहां गूंज रही तालियों की गड़गड़ाहट इस बात का सबूत थी कि सुनहरी किनारी वाली हल्की नीली ड्रेस पहने मिशेलीतो ने शानदार प्रदर्शन किया. लेकिन इस खतरनाक खेल ने मां को तो डरा दिया था. वह कहती हैं, "मैं बहुत ज्यादा डरी हुई थी. मैं चाहती थी कि दीवार फांद कर अपने बेटे को गोद में भर लूं." लेकिन यह इस तरह का कोई पहला मौका नहीं है. जब जब मिशेलीतो मैदान में उतरता है, तब तब उसकी मां की यही हालत होती है.

वैसे खुद पेनीशे का संबंध भी ऐसे ही परिवार से है जहां सांड से लड़ने की परंपरा रही है. उनके पति भी बुल फाइटर है. इसीलिए मिशेलीतो का छोटा भाई भी उन्हीं के कदमों पर चलना चाहता है. मिशेलीतो और आंद्रे लाग्रावेरे तीन या चार साल की उम्र से ही सांड की आंखों के सामने लाल कपड़ा लेकर खड़े होना शुरू हो गए. उनकी मां कहती हैं, "वे इसी जुनून के साथ पैदा हुए हैं. और अगर उन्हें यह तोहफा मिला है तो हमें इसमें उनकी मदद करना चाहिए."

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तस्वीर: AP

वैसे पेनिशे यह काम बखूबी कर भी सकती हैं. वह मेक्सिको के युकातान राज्य की राजधानी मेरिडा में बुलरिंग की मैनेजर और मालिक हैं. जाहिर है इससे मिशेलीतो को काफी मदद मिलती है. वह कहता है, "मैं लगभग हर रोज घर पर बुलरिंग में प्रैक्टिस करता हूं. वहां बुल फाइटिंग स्कूल के मेरे दूसरे साथी भी होते हैं. कभी कभी दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलने और समंदर में मछली पकड़ने भी चला जाता हूं."

मिशेलीतो का कहना है, "मुझे सांड से डर नहीं लगता. बड़ी बात यह है कि देखने वाले हमारी अच्छी छवि लेकर घर जाएं."

रिपोर्टः डीपीए/ए कुमार

संपादनः आभा एम