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नागालैंड में नहीं बदली है जमीनी हकीकत

प्रभाकर मणि तिवारी
३१ अक्टूबर २०१७

भारत सरकार और नागा विद्रोहियों के बीच शांति वार्ता के नये दौर से पहले एक और सात दशक बाद शांति समझौते की उम्मीद है तो दूसरी ओर पड़ोसी राज्यों में ग्रेटर नागालैंड के लिए जमीन खोने की चिंता.

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Indien Nagaland Friedensabkommen
तस्वीर: UNI

नागालैंड के छह उग्रवादी संगठनों की कार्यकारी समिति की मांगों पर दिल्ली में केंद्र सरकार के साथ तीसरे दौर की बातचीत एक नवंबर को दिल्ली में होनी है. केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नागा समाज के दबाव में नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड (एनएससीएन) का खापलांग (के) गुट भी शांति प्रक्रिया में शामिल हो जाएगा. लेकिन दूसरी ओर नागालैंड में जमीनी हकीकत जरा भी नहीं बदली है. हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने सरकारी खजाने से करोड़ों की रकम एनएससीएन (के) को देने के आरोप में नागालैंड के चार सरकारी अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. राज्य में अब भी एनएससीएन की समानांतर सरकार चल रही है और जबरन उगाही का सिलसिला जारी है. ऐसे में शांति प्रक्रिया की कामयाबी पर सवाल उठना स्वाभाविक है. एनएससीएन (के) के एक नेता की पत्नी से भी बीते सप्ताह 27 लाख रुपए बरामद किए गए हैं.

बातचीत का ताजा दौर

नागालैंड के छह उग्रवादी संगठनों की कार्यकारी समिति की मांगों पर एक नवंबर को दिल्ली में तीसरे दौर की बातचीत होगी. इस बातचीत के तीन नवंबर तक जारी रहने की संभावना है. इससे पहले दिल्ली और दीमापुर (नागालैंड) में दो दौर की बातचीत हो चुकी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि नागा संगठनों को दो-टूक शब्दों में बता दिया गया है कि उनकी मांगों का समाधान नागालैंड की सीमा के भीतर ही होगा. इसके लिए पड़ोसी राज्यों की सीमाओं को बदलने का कोई सवाल नहीं पैदा होता. उम्मीद है कि नागा समाज के दबाव में एनएससीएन का खापलांग गुट भी इस प्रक्रिया में शामिल हो जाएगा. हालांकि संगठन ने अब तक इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. लेकिन सरकार ने साफ कर दिया है कि नागा समस्या का यह समाधान अंतिम होगा. सरकार की सोच है कि अलग-अलग गुटों के साथ समझौता करने से स्थायी शांति बहाल करना संभव नहीं होगा.

Indien TR Zeliang Premierminister vom Bundesland Nagaland
नुख्यमंत्री जेलियांगतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. Mao

सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच ज्यादातर प्रमुख मुद्दों पर सहमति बन चुकी है और मतभेदों को भी सुलझा लिया गया है. अब कुछ छोटे-मोटे मुद्दों पर सहमति के बाद स्थायी शांति समझौते की राह खुल जाएगी. केंद्र के वार्ताकार रवि और एनएससीएन (आई-एम) के महासचिव टी. मुइवा ने बीते 13 अगस्त को जारी एक साझा बयान में कहा था कि बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है. नागालैंड की समस्या पर जल्दी ही स्थायी समझौते की उम्मीद है. राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र सरकार ने ठीक 20 साल पहले वर्ष 1997 में युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर करने के बाद शांति प्रक्रिया में तेजी आई है. हालांकि इस समझौते के प्रावधानों का अब तक खुलासा नहीं किया गया है. इससे रह-रह कर आशंकाएं भड़क उठती हैं. दो दशकों में पहली बार बीते 23 अक्तूबर को नागालैंड के दीमापुर में केंद्र व राज्य के उग्रवादी गुटों के बीच बैठक हुई थी.

इसबीच, नागालैंड के मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग ने राज्य के लोगों से प्रस्तावित बातचीत और समझौते को लेकर सकारात्मक रवैया अपनाने को कहा है. जेलियांग कहते हैं, "कुछ दिनों में सब कुछ साफ हो जाएगा. लेकिन तब तक अटकलें नहीं लगानी चाहिए."

पड़ोसी राज्यों में आशंका

नागा समस्या पर बातचीत के अंतिम दौर में पहुंचने के साथ ही उसके पड़ोसी राज्यों की चिंताएं बढ़ गई हैं. इसकी वजह यह है कि एनएससीएन(आई-एम) शुरू से ही असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नागा-बहुल इलाकों को मिला कर नागालिम यानी ग्रेटर नागालैंड के गठन की मांग करता रहा है. एनएससीएन (आई-एम) की संचालन समिति के संयोजक आर.एच. रेजिंग के हाल के बयान से आशंका और बढ़ी है. उन्होंने कहा था कि केंद्र ने समझौते के प्रारूप में यह बात कबूल कर ली है कि नागाबहुल क्षेत्रों का एकीकरण नागाओं का वैध अधिकार है. एनएससीएन (आई-एम) की समानांतर सरकार में रेजिंग का ओहदा गृह मंत्री के समकक्ष है. वह कहते हैं, "अगर क्षेत्रीय एकीकरण नहीं हुआ तो पूरी बातचीत पर पानी फिर जाएगा." उनका दावा है कि इस मुद्दे यानी नागा इलाकों के एकीकरण पर बातचीत लगभग पूरी हो चुकी है.

केंद्र सरकार ने हालांकि इसकी संभावना खारिज कर दी है. बावजूद इसके पड़ोसी राज्यों में इसे लेकर आशंका बढ़ रही है. इन आशंकाओं के बीच असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा है, "सरकार किसी भी कीमत पर राज्य का नक्शा नहीं बदलने देगी और हर हाल में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जाएगी." दूसरी ओर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा है कि नागा समस्या के समाधान से राज्य की शांति भंग नहीं होनी चाहिए. उनका कहना है कि पूर्वोत्तर में शांति बहाली के लिए केंद्र और नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड (एनएससीएन)) के इजाक-मुइवा गुट के बीच जारी शांति प्रक्रिया का शीघ्र किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना जरूरी है. सिंह कहते हैं, "नागा मुद्दे पर होने वाले किसी समझौते से अगर मणिपुर के हितों को नुकसान पहुंचा तो हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे." अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भी साफ कर दिया है कि उसे ऐसा कोई समझौता मंजूर नहीं होगा जिससे राज्य की सीमा प्रभावित हो. दिलचस्प बात यह है कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी की ही सरकार है.

जमीनी हकीकत

नागालैंड में एनएससीएन के समानांतर सरकार चलाने की बात कोई नई नहीं है. उग्रवादी राज्य में व्यापारियों से लेकर सरकारी कर्मचारियों और उपक्रमों तक से टैक्स वसूलते रहे हैं. अब हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने चार सरकारी अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. इससे पहले भी कुछ अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई थी. इन चारों अधिकारियों पर बीते चार साल के दौरान सरकारी खजाने से एनएससीएन के खापलांग गुट को 20 करोड़ रुपए से ज्यादा देने का आरोप है. इन लोगों ने एक रजिस्टर में संगठन को दिए गए पैसों का सिलसिलेवार हिसाब भी लिख रखा था. एनआईए के एक अधिकारी का कहना है कि राज्य में उग्रवादी संगठनों की ओर से टैक्स वसूलने के गैरकानूनी धंधे की जड़ें काफी गहरी हैं.

एनआईए ने नागा उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल आफ नागालैंड (एनएससीएन) के खापलांग गुट के नेता निती सुमी की पत्नी शेली सुमी के कब्जे से भी बीते सप्ताह 27 लाख रुपए की नकदी जब्त की है. एनआईए सूत्रों ने बताया कि शेली सुमी और तीन अन्य उग्रवादियों ने सरकारी अधिकारियों से जबरन उगाही कर उक्त रकम जमा की थी. यह रकम म्यांमार स्थिति एनएससीएन (के) के शिविरों में भेजी जानी थी. उसे ऐसे ही एक मामले में पहले भी गिरफ्तार किया गया था. बाद में उसे जमानत मिल गई थी.

एनएससीएन समेत बातचीत में शामिल तमाम संगठनों ने उम्मीद जताई है कि शांति प्रक्रिया जिस तरीके से आगे बढ़ रही है उसे ध्यान में रखते हुए नागा समस्या का समाधान इसी साल के आखिर तक संभव है. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस दावे पर पर्याप्त संदेह है. उका कहना है कि जब तक राज्य की जमीनी हकीकत में बदलाव नहीं आता तब तक इलाके में शांति की बहाली संभव नहीं है. सबसे बड़ा पेंच यह है कि नागाबहुल इलाकों का एकीकरण नहीं हुआ तो नागा संगठन किसी समझौते को कबूल नहीं करेंगे और अगर ऐसा हुआ तो पड़ोसी राज्यों में हिंसा फैलने का अंदेशा है. राजनीतिक विश्लेषक जीवन डेका कहते हैं, "जब तक शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होते और उसे सार्वजनिक नहीं किया जाता, तब तक नागा समस्या के स्थायी समाधान पर अटकलों और अफवाहों का बाजार तेज रहने का अंदेशा है."