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नागा साधुओं की अद्भुत दुनिया के दर्शन

१८ अप्रैल २०१०

कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला माना जाता है. भारत में चार अलग अलग जगहों पर हर 12 साल में होने वाले कुंभ में इस बार ढाई लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. शिव के भक्त नागा साधु मेले का एक अभिन्न हिस्सा माने जाते हैं.

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टिम बाबा का संबंध तो इंग्लैंड से है लेकिन अब वह नागा साधु हैंतस्वीर: DW

हरिद्वार में चल रहे कुंभ के मेले में अपनी जटाओं को चेहरे के सामने से हटाकर गुरु दत्तात्रेय विजयते अपनी चिलम में एक जोरदार दम लगाते हैं. और फिर शंख फूंकते हैं. राख में लिपटे विजयते एक नागा साधु हैं जो केवल कुंभ के दौरान ही सार्वजनिक तौर पर दिखाई देते हैं. नागा साधुओं के बाल जटाजूट होते हैं. वे गांजे का सेवन करते हैं और सन्यास में जीवन व्यतीत करते हैं. प्रार्थना, तपस्या और योग ही उनका जीवन है.

गुरु दत्तात्रेय विजयते का कहना है कि गांजा उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. वे जूना अखाड़े के सदस्य हैं जो नागा साधुओं के 13 पंथों में सबसे बड़ा पंथ है. नागा साधुओं का कुंभ मेले में हिस्सा लेने का एक और मकसद है. वह है पंथ में नए लोगों को भर्ती करना. विजयते कहते हैं, "नागा साधु बनने में 12 साल लगते हैं जिसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है. हम दत्तात्रेय संत हैं और हम यात्रा करते हैं. हम गांजा पीते हैं ताकि हम खुद को आध्यात्मिक रूप से आत्मिक और धार्मिक शक्तियों में बदल सकें. हम गर्मियां हिमालय में बिताते हैं. हमें गांजे के लिए पैसों की ज़रूरत है क्योंकि हमें तपस्या करनी होती है."

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स्नान की तैयारी करते नागा साधुतस्वीर: DW

नागा साधुओं ने कभी भी अपने आध्यात्मिक विश्वासों और रीति रिवाज़ों पर समझौता नहीं किया है और इनमें सदियों से कोई बदलाव भी नहीं आया है. नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं. वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं. नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं. त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं.

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कुंभ में लगता है लोगों का तांतातस्वीर: DW

टिम बाबा इंग्लैंड से हैं और जूना अखाड़े के सदस्य हैं. उनका असली नाम मैथ्यू राउल बैस है. 18 साल पहले वे भारत आए थे जहां उन्हें 'भगवान' मिले. उन्हें अहसास हुआ कि भगवान एक हैं और सारे धर्म एक ही भगवान की ओर जाते हैं. उनके मुताबिक कुंभ एक ऐसी जगह है जहां कई लोग भगवान के लिए आते हैं.

कई नागा साधु अपने परिवारों को बचपन में ही छोड़ देते हैं. वे सारी सांसारिक खुशियों को त्यागकर लोगों और मीडिया की नज़र से दूर रहते हैं. लोगों के बीच नाग साधु काफी हिंसक माने जाते हैं जिससे आम जनता भी उनसे दूर रहना पसंद करती है.

नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने के लिए ज़रूरी जानकारी हासिल करने में छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं.

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गांजे के बिना नहीं चलता नागा साधुओं का कामतस्वीर: DW

निर्मल बाबा पिछले पांच वर्षों से पंथ के सदस्य हैं. वह बचपन से नागा साधु बनने के लिए बलिदान कर रहे हैं. वह कहते हैं कि गुरू की सेवा के बाद ही वह आज साधु बन पाए हैं. उनके मुताबिक, "मेरी आत्मा साफ है जो मेरे लिए बहुत ज़रूरी है."

भारत में साधुओं के जीवन अलग अलग तरह के होते हैं. कई साधु शहरों के बीचोंबीच आश्रमों और मंदिरों में रहते हैं जबकि कई गांवों के बाहर झोपड़ियों में या फिर ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं. भारत में तकनीकी प्रगति के बाद भी नाग साधु अपने तौर तरीकों से खुश हैं.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/ एम गोपालकृष्णन

संपादनः ए कुमार