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नामीबिया में जबरी बंध्याकरण के खिलाफ मुकदमा

९ सितम्बर २०१०

नामीबिया में 16 महिलाओं ने उनकी सहमति के बिना उनका बंध्याकरण करने के लिए सरकार पर 12 लाख नामीबियाई डॉलर का दावा ठोका है. उनका कसूर यह था कि वे एचआईवी पॉजीटिव थीं.

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प्रसव पीड़ा के दौरान एक नर्स ने नामीबियाई महिला को दस्तखत के लिए दस्तावेज दिया और कहा कि यह ऑपरेशन से प्रसूति के कागजात हैं. उस महिला ने एक कोर्ट को पिछले सप्ताह बताया, "मैं सरकारी अस्पताल में भर्ती थी, जब नर्स ने मुझे कागज दिखाया और कहा कि ऑपरेशन की अनुमति के लिए मुझे दस्तखत करना होगा." उस महिला ने कहा कि उसे पता नहीं था कि दस्तखत बंध्याकरण के लिए भी था. अदालत ने उसका नाम गुप्त रखा है.

44 वर्षीया पीड़ित महिला को बाद में दो नर्सों की बातचीत सुनकर पता चला कि उसका बंध्याकरण ऑपरेशन कर दिया गया है. वजह यह थी कि उसे एचआईवी था जिससे नामीबिया के 15 से 49 साल के 15 फीसदी लोग संक्रमित हैं. अदालत पांच साल पहले सातवें बच्चे के जन्म के समय उस महिला की आपबीती सुनकर सन्न रह गई.

16 में से तीन महिलाओं का मुकदमा इस सप्ताह हो रहा है. गवाही शुक्रवार को पूरी हो जाएगी. बाकी 13 महिलाओं का मुकदमा बाद में होगा. अफ्रीका में यह अपनी तरह का पहला मुकदमा है. बताया जाता है कि 40 से अधिक महिलाओं के साथ यही हुआ. कानूनी सहायता ग्रुपों ने उनके मामलों को रिकॉर्ड कर अगस्त 2008 में स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपा था.

बिना सहमति के बंध्याकरण की घटनाएं तीन सरकारी अस्पतालों में हुईं, जिनमें से दो विंडहूक में और एक ओशाकाटी में हैं. अदालती दस्तावेज दिखाते हैं कि पीड़ित महिलाओं को ऑपरेशन के कई सप्ताह बाद पता चला कि वे मां नहीं बन सकतीं. इस समय चल रहे मुकदमों में तीन महिलाओं ने कहा कि उनके जीवन और निजता का अधिकार तथा क्रूर, अमानीय और भेदभावपूर्ण व्यवहार से स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन हुआ है. नामीबिया की महिला स्वास्थ्य नेटवर्क की वेरोनिका कालाम्बी का कहना है कि कानून में सबके साथ समान व्यवहार का प्रावधान है. नामीबिया की सरकार का कहना है कि उसने सारे देश में सरकारी अस्पतालों में जांच कराई है और पाया कि सभी महिलाओं ने बंध्याकरण के लिए हस्ताक्षर किए हैं. इसके विपरीत एड्स प्रोग्राम मैनेजर प्रीति पटेल का कहना है कि महिलाओं को नहीं कहने के अपने अधिकार के बारे में पता नहीं था.

रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा

संपादन: ए जमाल

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