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नूतन को याद करता सिनेमा

४ जून २०१४

आज के दौर में जहां मिस इंडिया का खिताब जीतने वाली सुंदरियों को फिल्मों में काम करने का मौका आसानी से मिल जाता है, वहीं नूतन को फिल्मों में काम पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था.

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तस्वीर: Getty Images/AFP

हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में सर्वश्रेष्ठ अदाकारा के सबसे ज्यादा फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त करने का रिकॉर्ड नूतन और काजोल के नाम संयुक्त रूप से दर्ज है. नूतन ने अपने सिने करियर में पांच बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. 04 जून 1936 को मुंबई में जन्मी नूतन समर्थ को अभिनय की कला विरासत में मिली. उनकी मां शोभना समर्थ जानी मानी फिल्म अभिनेत्री थीं. घर में फिल्मी माहौल रहने के कारण नूतन अक्सर अपनी मां के साथ शूटिंग देखने जाया करती थीं. इस वजह से उनका भी रुझान फिल्मों की ओर हो गया और वह भी अभिनेत्री बनने के ख्वाब देखने लगीं. नूतन ने बतौर बाल कलाकार फिल्म 'नल दमयंती' से अपने सिने करियर की शुरूआत की.

इस बीच नूतन ने मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और प्रथम चुनी गईं. लेकिन बॉलीवुड के किसी भी निर्माता का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. बाद में अपनी मां और उनके दोस्त मोतीलाल की सिफारिश से नूतन को 1950 में फिल्म 'हमारी बेटी' में अभिनय करने का मौका मिला. इस फिल्म का निर्देशन उनकी मां शोभना समर्थ ने किया. इसके बाद नूतन ने 'हमलोग', 'शीशम', 'नगीना' और 'शवाब' जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय किया. लेकिन इन फिल्मों से वह कुछ खास पहचान नहीं बना सकीं. 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'सीमा' में अपने दमदार अभिनय के लिए नूतन को सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिला.

स्विमिंग सूट में

इस बीच नूतन ने देवानंद के साथ 'पेइंग गेस्ट' और 'तेरे घर के सामने' में हल्के फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया. 1958 में फिल्म 'सोने की चिड़िया' के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में नूतन के नाम का डंका बजने लगा और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गईं.

1958 में प्रदर्शित फिल्म 'दिल्ली का ठग' में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर उस समय के समाज को चौंका दिया. फिल्म 'बारिश' में नूतन ने काफी बोल्ड दृश्य दिए जिसके लिए उनकी बहुत आलोचना भी हुई. लेकिन बाद में विमल राय की फिल्म 'सुजाता' और फिर 'बंदिनी' में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया.

1959 में आई 'सुजाता' नूतन के करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई. फिल्म में उन्होंने एक अछूत कन्या के किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया. इसके साथ ही फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए वह दूसरी बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित की गईं.

'बंदिनी' 1963 में रिलीज हुई. फिल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं, बल्कि हाथ पैर की उंगलिया भी अभिनय कर सकती हैं. इस फिल्म में अपने जीवंत अभिनय के लिए नूतन को एक बार फिर से र्सवश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.

चुप हुए आलोचक

'सुजाता', 'बंदिनी' और 'दिल ने फिर याद किया' जैसी फिल्मों की कामयाबी के बाद नूतन ट्रैजिडी क्वीन कही जाने लगीं. अब उन पर यह आरोप लगने लगा कि वह केवल दर्द भरे अभिनय कर सकती हैं. लेकिन 'छलिया' और 'सूरत' जैसी फिल्मों में अपने कॉमिक अभिनय से नूतन ने आलोचकों का मुंह एक बार फिर से बंद कर दिया. 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निर्माताओं की फिल्मों के लिए काम किया. इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फिल्में थीं. इनमें 'गौरी', 'मेहरबान', 'खानदान', 'मिलन' और 'भाई बहन' जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं.

1968 में रिलीज हुई फिल्म 'सरस्वती चंद्र' की अपार सफलता के बाद नूतन फिल्म इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गईं. 1973 में फिल्म 'सौदागार' में नूतन ने एक बार फिर से अविस्मरणीय अभिनय किया.

सभी अभिनेताओं के साथ

नूतन ने अपने सिने कैरियर में उस दौर के सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया. राजकपूर के साथ फिल्म 'अनाड़ी' में भोला भाला प्यार हो या फिर अशोक कुमार के साथ फिल्म 'बंदिनी' में संजीदा अभिनय या फिर 'पेइंग गेस्ट' में देवानंद के साथ छैल छबीला रोमांस, नूतन हर अभिनेता के साथ उन्हीं के रंग में रंग जाती थीं.

अस्सी के दशक में उन्होंने चरित्र भूमिकांए निभानी शुरू कर दीं और कई फिल्मों में मां का किरदार निभाया. इन फिल्मों मे 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी फिल्में खास तौर पर उल्लेखनीय हैं. फिल्म 'मेरी जंग' के में अपने सशक्त अभिनय के लिए नूतन को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. फिल्म 'कर्मा' में उन्होंने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ काम किया. इस फिल्म में नूतन पर फिल्माया गाना 'दिल दिया है जान भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए' काफी लोकप्रिय हुआ.

नूतन की प्रतिभा केवल अभिनय तक ही नही सीमित थी. वह गीत और गजल लिखने में भी काफी दिलचस्पी रखा करती थीं. लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाली यह महान अभिनेत्री 21 फरवरी 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

आईबी/ओएसजे (वार्ता)