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नेपाल के लोगों में नाउम्मीदी और गुस्सा

२९ अप्रैल २०१५

भूकंप के चार दिन बाद भी नेपाल में हालात गंभीर बने हुए हैं. मृतकों की संख्या 5,000 से ज्यादा हो चुकी है. दुनिया भर से राहत सामग्री आने के बावजूद लोगों तक यह नहीं पहुंच पा रही है.

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Nepal
तस्वीर: AFP/Getty Images/P. Lopez

ऐसे में लोगों में प्रशासन के प्रति काफी गुस्सा और नाराजगी देखी जा रही है. राजधानी काठमांडू में करीब 200 लोगों ने सड़कों को घेरा और नारेबाजी की. कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के साथ हाथापाई भी की लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "हम भूखे हैं, हमें पीने को कुछ नहीं मिला है. हम सो नहीं पा रहे हैं. मेरा सात साल का बच्चा है जिसे यहां खुले में सोना पड़ रहा है. मौसम ठंडा हो रहा है और लोगों को निमोनिया होने लगा है." इस बीच देश में महामारी और नए भूकंप की अफवाह भी फैली हुई है. नेपाल पुलिस ने अफवाह फैलाने वालों और प्रभावित घरों में लूटपाट करने वालों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया है. पुलिस अधिकारी बिज्ञान राज शर्मा ने बताया कि लूटपाट के मामलों में अब तक 27 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

काठमांडू में धीरे धीरे जीवन दोबारा पटरी पर आता दिख रहा है. बुधवार को सब्जी की कुछ दुकानें खुली और नगरपालिका ने सड़कों की सफाई का काम भी शुरू किया. सरकार ने काठमांडू से गांवों तक जाने वाली कई बस सेवाएं भी शुरू की हैं, ताकि लोग गांवों तक पहुंच सकें. स्कूल बसों को भी इस काम के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. काठमांडू के बस अड्डे पर लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. कतार में खड़े राजा गुरुंग ने बताया, "मैं उम्मीद कर रहा कि मुझे कोई बस मिलेगी, कोई भी बस जो मुझे काठमांडू से बाहर ले जाए. मुझे काठमांडू में रहने में बहुत डर लग रहा है. मैं जिस किराये की जगह में रह रहा था उसके साथ वाली इमारत ढह गयी. बहुत ही भयानक मंजर था. मैं इतने दिनों से बाहर ही रह रहा हूं. यहां डर डर के जीने की जगह मैं अपने गांव वापस जाना चाहूंगा."

82 घंटे तक लाशों के बीच

मलबे में से लोगों को निकालने का काम भी जारी है. मंगलवार को दिन भर बरसात के कारण राहतकार्य काफी समय के लिए ठप पड़ा रहा. जैसे जैसे वक्त बीत रहा है, मलबे में से लोगों को जिंदा निकाले जाने की उम्मीदें भी कम होती जा रही हैं. लेकिन ऋषि खनाल जैसे भाग्यशाली लोग भी हैं जो तीन दिन बाद भी सुरक्षित निकल आए. 27 साल के ऋषि काठमांडू के एक होटल की दूसरी मंजिल पर थे जब झटके महसूस हुए. पैर मलबे के नीचे दबने के कारण वे खुद को बाहर ना निकाल सके. 82 घंटे तक वे लाशों के बीच फंसे रहे और लगातार मदद के लिए पुकारते रहे. आखिरकार फ्रांस की एक राहत टीम का ध्यान उनकी ओर गया.

बाहर आ कर उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "मुझे थोड़ी उम्मीद तो थी लेकिन कल मैंने हार मान ली थी. मेरे नाखून सफेद हो गए थे, होंठ फट चुके थे, मैंने मान लिया था कि अब कोई नहीं आएगा. मुझे यकीन हो गया था कि अब मेरा मरना निश्चित है." तीन दिन तक ऋषि ने अपना मूत्र पी कर जीवित रहने की कोशिश की, "ना मेरी आवाज बाहर जा रही थी और ना ही बाहर से कोई आवाज आ रही थी. फिर भी मैं मलबे को जोर जोर से पीटता रहा. आखिरकार किसी ने मेरी आवाज सुनी और मदद करने आए. मैंने कुछ खाया नहीं था और ना ही मेरे पास पीने को कुछ था, इसलिए मुझे अपना मूत्र पीना पड़ा."

नेपाल में भूकंप से 80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने कहा है कि सरकार को 10,000 लोगों के मारे जाने की आशंका है. दुनिया भर से राहत सामग्री तो आ रही है लेकिन उसे प्रभावित लोगों तक पहुंचाने में भी प्रशासन को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

आईबी/ओएसजे (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)