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नेपाल में फंसता भारत

७ अक्टूबर २०१५

4,000 ट्रक नेपाल में दाखिल होने का इंतजार कर रहे हैं. मधेसियों के प्रदर्शनों की वजह से नेपाल में अतिआवश्कीय सेवाओं की कमी हो रही है और भारत विरोधी गुस्सा उबलने लगा है.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Ram Sarraf

20 सितंबर 2015 को नेपाल में नया संविधान लागू हुआ. संविधान अपनाने से पहले नई दिल्ली ने नेपाल को बार बार अपनी मंशाओं से रूबरू कराया, लेकिन काठमांडू ने अपना रास्ता चुना. भारत ने नए संविधान पर नाराजगी जाहिर की और विरोध भी जताया. इसके कुछ ही दिन बाद उत्तर प्रदेश और बिहार से लगे नेपाल के तराई इलाकों में संविधान के खिलाफ प्रदर्शन होने लगा. तराई में रहने वाले थारू और मधेसियों का आरोप है कि पंथनिरपेक्ष संविधान में उन्हें समुचित अधिकार नहीं दिए गए हैं. मधेसियों की मांग है कि उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए. यह पहला मौका नहीं है जब तराई में रहने वाले मधेसी प्रदर्शन कर रहे हैं.

नेपाल में त्राहिमाम

भारतीय खुफिया विभाग ने भी अपनी सरकार को नेपाल के हालात से अवगत कराया है. इंटेलीजेंस ब्यूरो ने भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजी रिपोर्ट में कहा है कि नेपाल के कई लोगों को लग रहा है कि प्रदर्शन भारत के इशारों पर हो रहे हैं.

वहीं भारत ने मधेसियों के बंद में अपनी भूमिका से इनकार किया है. नेपाल में तैनात भारत की कॉन्सुलेट जनरल अंजु रंजन के मुताबिक बंद भारत ने नहीं बल्कि नेपाल के अपने मधेसी लोगों ने किया है, जो हाल ही में अपनाए गए संविधान में अपनी मांगों को शामिल करवाना चाहते हैं.

नेपाल में करीब 61 लाख मधेसी रहते हैं. नए संविधान के मुताबिक नेपाल की संसद में 165 सदस्य होंगे. इनमें से 100 सीटें पर्वतीय इलाकों को दी गई हैं, जहां 50 फीसदी से भी कम आबादी रहती है. वहीं तराई के इलाके में जहां ज्यादातर आबादी रहती है, वहां सिर्फ 65 संसदीय सीटें हैं. मधेसी इसका भी विरोध कर रहे हैं. वहीं संविधान निर्माताओं का तर्क है कि नेपाल एक पर्वतीय राष्ट्र है, और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए.

भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय पहले ही कह चुके हैं कि भारत नेपाल को चीन की तरफ जाने के लिए मजबूर न करे. काठमांडू बंद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा भी खटखटाया है.

मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली विदेश यात्रा के लिए नेपाल को चुना. करीब ढाई दशक बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने नेपाल का दौरा किया. अप्रैल 2015 में जब नेपाल में जबरदस्त भूकंप से भारी नुकसान हुआ तो भी भारत ने नेपाल की काफी मदद की. लेकिन अब दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध एक बार फिर से जर्जर होते नजर आ रहे हैं. भारत और यूरोपीय संघ ने नेपाल से अपील की है कि वह मधेसियों के साथ आपसी बातचीत के जरिए समाधान खोजे. नेपाल सरकार और मधेसी नेताओं के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है.

ओएसजे/आईबी (पीटीआई, एपी)