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नोटबंदी से फीकी पड़ी आभूषण उद्योग की चमक

प्रभाकर मणि तिवारी
३० दिसम्बर २०१६

नोटबंदी की मार से देश का आभूषण उद्योग भी कराह रहा है. इसकी वजह से सोने की कीमतों में गिरावट के बावजूद शादी के इस सीजन में भी इसकी कोई मांग नहीं है. सबसे ज्यादा परेशानी पश्चिम बंगाल में.

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तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

इस उद्योग में गिरावट की सबसे ज्यादा मार पश्चिम बंगाल पर है क्योंकि देश के विभिन्न राज्यों में फैले सोने की कारीगरों में 70 फीसदी इसी राज्य के हैं. यहां अब तक नौ लाख मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं. कारोबार में गिरावट की वजह से यह लोग अब दूर-दराज के शहरों से बंगाल लौटने लगे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लाखों बंगाली कारीगरों के बेरोजगार होने का मुद्दा उठा कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं.

कारोबार में गिरावट

विभिन्न वजहों से देश में बीते डेढ़ साल के दौरान सोने की कीमत अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर है. ऐसे में शादी के सीजन में इसकी मांग में भारी तेजी की उम्मीद थी. लेकिन हुआ है इसका ठीक उल्टा. इस कीमती धातु की बिक्री बढ़ने के बजाय इसके कारोबार में 80 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट आई है. आभूषण उद्योग के सूत्रों का कहना है कि नोटबंदी के चलते अब तक इस उद्योग को 18 हजार करोड़ रुपए की चोट लग चुकी है. अब आभूषण व्यापारियों को पहला वैशाख और अक्षय तृतीया से पहले इस बाजार के मजबूत होने की कोई उम्मीद नहीं है.

वैसे तो नोटबंदी की वजह से पूरे देश में आभूषण उद्योग प्रभावित है. लेकिन पश्चिम बंगाल पर इसकी मार सबसे ज्यादा है. इसकी वजह यह है कि आभूषण बनाने वाले ज्यादातर कारीगर (लगभग 70 फीसदी) बंगाल के ही हैं. बाजार में गिरावट के चलते नौ लाख से ज्यादा बंगाली कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. स्वर्ण शिल्प बचाओ समिति के संयोजक बाबलू दे कहते हैं, "देश के विभिन्न राज्यों में 10 लाख से भी ज्यादा बंगाली कारीगर काम करते थे. लेकिन कारोबार में भारी गिरावट से इनमें से 95 फीसदी लोग घर लौट चुके हैं. इससे संबधित इलाकों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा रही है."

गिरती मांग

वैसे तो इस साल की शुरुआत से ही ऊंची कीमतों, कालेधन पर सरकार के कड़े रुख और दो महीने तक चली हड़ताल की वजह से सोने की मांग में गिरावट आई थी. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल के पहले छह महीनों के दौरान भारत में सोने की मांग 247.4 टन थी जो बीते साल की इसी अवधि के मुकाबले 30 फीसदी कम है. दुर्गापूजा व दीवाली के त्योहारी सीजन में बिक्री में 20 फीसदी इजाफा हुआ था. लेकिन उसके तुरंत बाद नोटबंदी की मार ने इस उद्योग की कमर तोड़ दी है. आल इंडिया जेम्स एंड जूलरी असोसिएशन के अध्यक्ष श्रीधर जीवी कहते हैं, "नोटबंदी की वजह से इस कारोबार में 80 फीसदी गिरावट आई है. इसकी वजह यह है कि इस उद्योग का महज 22 फीसदी संगठित क्षेत्र में है." वह कहते हैं कि नोटबंदी के बाद कीमतों में गिरावट भले आई है लेकिन नकदी के अभाव में लोग इससे मुंह फेर रहे हैं.

लेकिन आखिर सोने की कीमत में गिरावट क्यों आई है? इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने की वजह से पैदा होने वाली अनिश्चितता, डॉलर की कीमत बढ़ने, यूरोप और पश्चिम एशिया समेत कई बाजार में गिरावट जैसी कई वजहें इसके लिए जिम्मेदार हैं. एक आभूषण विक्रेता शुभंकर सेन बताते हैं कि फिलहाल सोने की कीमत बीते 17 महीने के दौरान सबसे न्यूनतम स्तर पर है. शादी की सीजन में बिक्री में 50 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद थी. लेकिन इसके बजाय इसमें 60 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है.

आभूषण उद्योग के केंद्र मुंबई के झावेरी बाजार की हालत तो और खराब है. मुंबई जूलर्स असोसिएशन ने कारोबार में 90 फीसदी गिरावट का अंदेशा जताया है. असोसिएशन के प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार जैन कहते हैं, "पहले शादी के मौजूदा सीजन में जहां रोजाना 125 करोड़ रुपये का कारोबार होता था वहीं अब यह घट कर औसतन 10-12 करोड़ रह गया है." वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने भी भारत में सोने की मांग में इस साल कम से कम 24 फीसदी कमी का अंदेशा जताया है.

बंगाल पर असर

पश्चिम मेदिनीपुर का घाटाल इलाका आभूषण बनाने वाले कारीगरों का गढ़ है. यहां हर घर से दो-चार लोग दूसरे शहरों में काम करते थे. लेकिन नोटबंदी के बाद से ही ऐसे ज्यादातर कारीगर लौट आए हैं. दिल्ली के स्वर्णकार सेवासंघ के संयोजक कार्तिक भौमिक कहते हैं, "यहां हजारों बंगाली कारीगर काम करते थे. लेकिन काम नहीं होने की वजह से वह घरों को लौट रहे हैं." मुंबई में 20 साल से काम कर रहे एक कारीगर विमल दास कहते हैं, "वहां काम की कोई कमी नहीं थी. लेकिन नोटबंदी के बाद अचानक काम मिलना बंद हो गया. ऐसे में परिवार के साथ वहां रहना असंभव हो गया था." अब विमल और उनके जैसे हजारों कारीगर घर लौट कर खेतों में या फिर राजमिस्त्री का काम करने पर मजबूर हैं.

जेम्स एंड जूलरी ट्रेड फेडरेशन के रूपक साहा कहते हैं, "सोने की कीमत में इतनी गिरावट पहले नहीं आई थी. नोटबंदी के दिन भी यह 30 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव बिक रहा था. लेकिन उसके बाद इसमें लगातार गिरावट आई है." वह कहते हैं कि कीमत कम होने के बावजूद सोने की मांग बढ़ने के बजाय घटी है. इसकी वजह यह है कि लोगों के पास खरीद-फरोख्त के लिए नकदी नहीं है. इस उद्योग का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में होने की वजह से डिजिटल लेन-देन का कोई चलन नहीं है. जेम एंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के पूर्व उपाध्यक्ष पंकज पारेख कहते हैं, "सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव की कई वजहें हैं. लेकिन नोटबंदी ने इस उद्योग की कमर लगभग तोड़ दी है. अब देखना यह है कि शादी-ब्याह का सीजन खत्म होने के बाद इसमें सुधार आता है या नहीं?"