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पहली बार बना मलेरिया का टीका

मार्टिन रीबे/आईबी१९ अगस्त २०१५

पोलियो और हैपेटाइटिस की तरह अगर मलेरिया का भी टीका लगाया जाए तो शरीर खुद ही मलेरिया के पैरासाइट से लड़ सकेगा.

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Asiatische Tigermücke
तस्वीर: picture-alliance/dpa/James Gathany/Centers for Disease Control and Prevention's

कैसे फैलता है मलेरिया

हर तीस सेकंड में दुनिया में कहीं ना कहीं एक व्यक्ति की मलेरिया के कारण मौत होती है. मलेरिया लाइलाज नहीं है. अक्सर जान बीमारी के नहीं, गरीबी के कारण जाती है. कहीं लोगों के पास डॉक्टरों के पास जा कर इलाज कराने का पैसा नहीं है, तो कहीं डॉक्टरों का ही अभाव है. मलेरिया का टीका इस समस्या का समाधान हो सकता है.

हर साल 10 लाख मौतें

मादा एनोफिलीस मच्छर का आकार महज दस मिलीमीटर होता है. बेहद पतला और छोटे छोटे बालों से ढका हुआ यह मच्छर जब इंसानी त्वचा पर डंक मारता है, तब इसका पता भी नहीं चलता. एक डंक के साथ यह जानलेवा बीमारी मलेरिया के परजीवी को शरीर में इंजेक्ट कर देता है.

हर साल कम से कम 25 लाख लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं और करीब 10 लाख लोगों की इस कारण जान जाती है. इसका सबसे ज्यादा असर अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों में देखने को मिलता है. खास कर बच्चों में क्योंकि बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर होती है. टीके से मदद मिल सकती है लेकिन अब तक बाजार में ऐसा कोई टीका उपलब्ध ही नहीं है.

ट्यूबिंगन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर पेटर क्रेम्सनर बताते हैं कि मलेरिया का टीका बनाना मुश्किल इसलिए है क्योंकि मलेरिया का परजीवी बेहद पेचीदा होता है, "यह एक बड़ा परजीवी है, इसका जीनोम बहुत बड़ा है और परिवर्तनीय भी." लेकिन ट्यूबिंगन के मेडिकल कॉलेज ने इस चुनौती को स्वीकारा और नए प्रकार का टीका विकसित किया जो मलेरिया का जिंदा परजीवी को इस्तेमाल कर बनाया गया.

तीन खुराख काफी

आज के मानदंडों की तुलना में यह एक अनोखे किस्म का टीका है. पेटर क्रेम्सनर बताते हैं, "इस टीके की विशेष बात यह है कि इसे हमने वैसे ही विकसित किया है जैसे बिलकुल शुरुआती दौर में टीके बना करते थे. जीवित परजीवी को साफ कर के मलेरिया की दवा के साथ इसे इंसानी शरीर में इंजेक्ट किया जा सकता है." मतलब यह हुआ कि व्यक्ति को मलेरिया से संक्रमित किया जाएगा. लेकिन साथ ही शरीर में भेजी गयी दवा परजीवी को मारने के काम में लग जाएगी.

जानवरों पर इस नए टीके का परीक्षण किया जा चुका है. अब इंसानी शरीर पर इसके असर को देखना बाकी है. मेडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला में कड़ी सुरक्षा के बीच हर टेस्ट सब्जेक्ट के लिए अलग से टीका तैयार किया जा रहा है. रिसर्चरों का मानना है कि मलेरिया से बचाने के लिए टीके की तीन खुराख काफी होंगी.

एंटीबॉडी का कमाल

मलेरिया की दवा ठीक तरह काम कर रही है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए नियमित रूप से खून का सैम्पल लिया जाता है और माइक्रोस्कोप के नीचे इसे परखा जाता है. लेकिन इस काम में वक्त लगता है ताकि शरीर धीरे धीरे अपने लिए एक सुरक्षा कवच बना सके. ट्यूबिंगन मेडिकल कॉलेज की बेन्यामिन मॉर्डमुलर बताती हैं, "मलेरिया का परजीवी लिवर में घुस जाता है और शरीर का प्रतिरक्षी तंत्र उसे पहचान लेता है. इसके बाद जब वह लिवर से निकल कर खून में मिल जाता है, तो दवा उस पर हमला करती है और वहीं उसे मार देती है." लिवर में रोगाणुओं पर हमला होता है. शरीर में मौजूद लिंफोसाइट लिवर की संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. इस तरह से शरीर में पैरासाइट के खिलाफ एंटीबॉडी बन जाती हैं और शरीर खुद को संक्रमण से बचाना सीख लेता है. शरीर का रोग प्रतिरोधी तंत्र मलेरिया से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है. इसलिए जिन लोगों को टीका लगाया जा चुका है, अगर उन्हें मलेरिया से संक्रमित करने की कोशिश की जाए, तो भी वे बीमार नहीं हो पाएंगे.

जल्द ही बाजार में

बेन्यामिन मॉर्डमुलर का कहना है कि शुरुआती परीक्षणों में नतीजे 100 फीसदी रहे हैं. हालांकि अभी बहुत कम ही लोगों पर टेस्ट किया गया है. इस वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी तरह का प्रतिरोध पैदा नहीं हो सकता. वैज्ञानिक अब जल्द से जल्द इस टीके को व्यहार में लाना चाहते हैं. डॉक्टर पेटर क्रेम्सनर बताते हैं, "अब अगला कदम यह है कि हम बड़े ग्रुप में इसे टेस्ट करें. और खास कर उन इलाकों में जा कर इसका असर टेस्ट करें जहां मलेरिया सबसे ज्यादा देखने को मिलता है, जैसे अफ्रीका, एशिया और अमेरिका में."

जर्मन वैज्ञानिक जल्द ही इस नए टीके को बाजार में उतारना चाहते हैं. लेकिन तब तक जरूरी है कि लोग खुद को मच्छरों से बचा कर रखें.