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समाज

पाकिस्तान में अब भी होती है नेजाबाजी

६ दिसम्बर २०१७

फूलों से सजे घोड़ों की रंगबिरंगी लगाम पकड़े बांकी चितवन वाले सजीले सवार जमीन में गड़े लकड़े के छोटे टुकड़े को गिद्ध जैसी नजरों से देखते हैं और फिर अपने नेजे की नोक से बाज की तरह झपट्टा मार कर उठा लेते हैं.

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Pakistan Kavalleriesport Tentpegging
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi
Pakistan Kavalleriesport Tentpegging
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

पाकिस्तान में घुड़सवारों के इस खेल को नेजाबाजी कहते हैं जो इसी मौसम में खेला जाता है. राजधानी से दो घंटे से भी कम की दूरी पर मौजूद कोट फतेह खान में नेजाबाजी या फिर टेंटपेगिंग का यह खेल देखने हजारों लोग जमा हुए. सैकड़ों सालों से चला आ रहा है यह खेल अब सालाना जलसे जैसा रह गया है. पाकिस्तान के सबसे बड़ी आबादी वाले पंजाब सूबे में ही अब इसके ज्यादातर आयोजन होते हैं. घुड़सवारों के इस खेल के दीवानों को इसके खत्म होने का डर सता रहा है क्योंकि इसे किसी तरह की सरकारी मदद नहीं मिलती और युवाओं में भी अब इसे लेकर पहले जैसा उत्साह नजर नहीं आता.

Pakistan Kavalleriesport Tentpegging
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

हालांकि उत्तरी पंजाब के कोट फतेह खान में बड़ी संख्या में लोग घुड़सवारों का उत्साह बढ़ाने के लिए जमा होते हैं. सफेद कुर्ते पर रंगीन बंडी और कलफदार पगड़ी पहने ताजा पॉलिश की गई जीन पर बैठे घुड़सवारों की आन बान इस मौके पर देखते ही बनती है. माइक पर आवाज गूंजती है और सवार अपने भालों और घोड़ों के साथ तैयार हो जाते हैं. उनकी कोशिश होती है कि घोड़े की पीठ पर बैठे बैठे ही उनके भाले की नोक लकड़ी के गुटके को बिल्कुल बीचोबीच बिंध दे. लकड़ी का गुटका अपने भाले से भेदने के बाद सवार मालिक अट्टा मुहम्मद खान ने कहा, "यह उत्सव 18वीं सदी से चला आ रहा है." खान दावा करते हैं कि उनके आठ पीढ़ी पहले के दादा ने काबुल पर शासन किया था और तब एक हजार घोड़े एक हफ्ते तक चलने वाले उत्सव में शामिल होते थे.

Pakistan Kavalleriesport Tentpegging
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

इलाके में घोड़ों की कमी अब भी नहीं है लेकिन आज के युवा इस खेल में दिलचस्पी नहीं लेते. घोड़े पालने वाले और सवारों को ट्रेनिंग देने वाले लोगों को इसके लिए पूरे देश में लोग नहीं मिलते. वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीतने वाले हारून बांदियाल बताते हैं, "घोड़े पालने वाले भी अब कुछ परिवारो में सिमट कर रह गये हैं." बांदियाल ने यह भी कहा कि घोड़े पालना एक खर्चीला शौक है और पंजाब में तो यह खेल बहुत होता है लेकिन खैबर पख्तूनख्वाह में तो महज तीन चार परिवार ही हैं जो इससे अब भी जुड़े हुए हैं."

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तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Qureshi

खेल से जुड़े लोग कहते हैं कि घोड़े जब 16 महीने के हो जाते हैं तो उनकी ट्रेनिंग शुरू होती है जिसके पूरा होने में दो साल लग जाते हैं. सवारों को भी इसके लिए करीब तीन साल तक प्रशिक्षण लेना पड़ता है. बीते सालो में कई गांवों और इलाकों में इस खेल के नये आयोजन शुरू भी हुए हैं. 

एनआर/ओएसजे (एएफपी)