1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"पाकिस्तान में जिहादी पत्रकारों से ज्यादा सुरक्षित हैं"

बीनिश जावेद
१३ अक्टूबर २०१६

पाकिस्तान में पत्रकार सिरील अलमेइदा की एक रिपोर्ट से खलबली मची है. एक तरफ सरकार और सेना, दोनों परेशान हैं, वहीं इससे पाकिस्तान में पत्रकारों की सुरक्षा पर भी बहस तेज हो रही है.

https://p.dw.com/p/2RBAi
Journalisten protestieren in Pakistan Pressefreiheit Zensur
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A.Arbab

अलमेइदा "डॉन" अखबार के लिए काम करते हैं. छह अक्टूबर को प्रकाशित उनकी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान की सरकार और सेना के बीच आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के मुद्दे पर मतभेद हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने सख्त लफ्जों में सेना को कार्रवाई करने की हिदायत दी है. वहीं पाकिस्तान सरकार इस रिपोर्ट को खारिज कर चुकी है और इसके साथ ही अलमेइदा के पाकिस्तान से बाहर जाने पर रोक लगाए जाने की खबरें भी आईं. उधर जियो एक सैनिक सूत्र के हवाले से खबर दी है कि सेना का डॉन या अलमेइदा मामले से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन उस शख्स की पहचान होनी चाहिए जिसने गोपनीय जानकारी मीडिया को लीक की है. 

"डॉन" के संपादक जहीर अब्बास ने अपने अखबार में ‘रिएक्शन टू डॉन स्टोरी' शीर्षक से लिखा, "कोई भी मीडिया संस्थान गलती कर सकता है और ये गलती डॉन से भी हो सकती है, लेकिन हमें इस बात पर यकीन है कि डॉन ने इस रिपोर्ट को बेहद पेशेवराना अंदाज में पेश किया है और विभिन्न स्रोतों से पुष्टि के बाद ही इस रिपोर्ट को छापा गया है.”

पाकिस्तान के एक सुरक्षा विशेषज्ञ मोहम्मद आमिर राना ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को उस व्यक्ति की तलाश है जिसने इस स्टोरी के लिए जानकारी लीक की. सरकार ने सारा जोर इस संदेशवाहक पर डाल दिया है.” आमिर राना कहते हैं कि एक हकीकत ये है कि सत्ता प्रतिष्ठान कुछ पत्रकारों और मीडिया संस्थानों से खुश नहीं है. उनके मुताबिक, "अगर सेना ने अलमेइदा का नाम एक्जिट कंट्रोल लिस्ट में डालने को नहीं कहा है तो सेना का जनसंपर्क विभाग इस बारे में बयान जारी क्यों नहीं करता?”

पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार और सिरील अलमेइदा के दोस्त ताहा सिद्दीकी ने डीडब्ल्यू से कहा, "सिरील अलमेइदा का नाम एग्जिट कंट्रोल लिस्ट से निकाला जाना चाहिए. ये सिर्फ एक पत्रकार पर नहीं बल्कि सभी पत्रकारों पर हमला है. हमें जानकारी मिली है कि सरकार अलमेइदा के खिलाफ और कार्रवाई करने के बारे में सोच रही है. वहीं नॉन स्टेट एक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कोई नहीं कर रहा है. इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में जिहादी गुट पत्रकारों से ज्यादा सुरक्षित हैं.”

जहीर अब्बास ने अपने संपादकीय में अलमेइदा का नाम एग्जिट कंट्रोल लिस्ट से निकालने की मांग की है. आमिर राना कहते हैं कि सरकार अलमेइदा का नाम लिस्ट से हटा भी सकती है, लेकिन इससे सेना और सरकार के मतभेद साफ तौर पर दिखाई दिए हैं. वहीं ताहा सिद्दीकी की राय है कि सेना के दबाव में ही देश के गृह मंत्रालय ने अलमेइदा का नाम एग्जिट कंट्रोल लिस्ट में डाला है.