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पाकिस्तान में भी रो रहे हैं रोहिंग्या मुसलमान

२६ सितम्बर २०१७

पाकिस्तान की सरकार म्यांयार की इस बात पर आलोचना करते हैं कि वे रखाइन में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान उन रोहिंग्या मुसलमानों के साथ कैसा बर्ताव कर रहा है, जो वहां दशकों से रह रहे हैं

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Pakistan Rohingyas in Karachi
तस्वीर: DW/S. Meer Baloch/Z. Musyani

"मैं एक रोहिंग्या हूं, लेकिन एक पाकिस्तानी रोहिंग्या. मैं बांग्ला बोलता हूं और इसीलिए हमारे इलाके के ज्यादातर लोग हमें बंगाली कहते हैं. वे हमें पाकिस्तानी के रूप में स्वीकार नहीं करते." ये कहना है मुफीज उर रहमान का जो एक रोहिंग्या मुसलमान हैं और पाकिस्तान के कराची शहर के अराकान इलाके में रहते हैं.

पाकिस्तान में इस वक्त लगभग ढाई लाख रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं और म्यांमार के रखाइन प्रांत में 25 अगस्त को हुई हिंसा के बाद उसने म्यांमार सरकार के खिलाफ विरोध भी दर्ज कराया था. लेकिन इस विरोध पर पाकिस्तान में रह रहे रोहिंग्या मसलमानों ने खुद को छला हुआ महसूस किया क्योंकि वे कहते हैं मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में वे भेदभाव का सामना करते हैं और बहुत ही खराब स्थितियों में जीने को मजबूर हैं.

Pakistan Rohingyas in Karachi
तस्वीर: DW/S. Meer Baloch/Z. Musyani

स्वीकार नहीं किया गया

डीडब्ल्यू से बातचीत में पाकिस्तान के एक रोहिंग्या मुसलमान नासिर अहमद ने कहा, "हम झोपड़ियों में रह रहते हैं. यहां स्थिति बहुत ही भयानक है."

उन्होंने बताया कि उस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी है. अराकान अबाद में कोई अस्पताल नहीं है. रोहिंग्या लोग पुराने और बार्बाद हो चुके घरों में रह रहे हैं. नासिर अहमद अपने अपार्टमेंट में 20 और लोगों के साथ रहते हैं.  रहमान कहते हैं, "मैं कभी म्यांमार नहीं गया. मैं बस इतना जानता हूं कि मेरे पिता म्यांमार से पाकिस्तान आये थे. पर म्यांमार में क्या हुआ मैंने टीवी पर देखा. यह बहुत ही दिल दहला देने वाला है कि हमारे लोगों के साथ अत्याचार हो रहा है और कोई भी उनकी मदद नहीं कर रहा है."

75 वर्षीय रहमत अली 1970 के दशक में म्यांमार से पाकिस्तान आये थे. वो कहते हैं, "म्यांमार ने रोहिंग्या के प्रति अपना दृष्टिकोण नहीं बदला है. यातना और नरसंहार निरंतर जारी है, लेकिन इस समय के आसपास यह बहुत बुरा है. इस बार की हिंसा सबसे भयानक है." वे भी कहते हैं, "मुझे एक पाकिस्तानी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया गया."

रहमत के मुताबिक, "पाकिस्तान में जीवन जीना बहुत मुश्किल है. मैं रखाइन में रहता था. मैं नरसंहार से बच कर बांग्लादेश से होते हुए पाकिस्तान आया, जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान था. मेरी एक बेटी जोरा खातून आज भी बांग्लादेश के ढाका में रहती है. मैं चालीस साल से भी ज्यादा समय से पाकिस्तान में रह रहा हूं पर मुझे कभी भी पाकिस्तानी की तरह स्वीकार नहीं किया गया. पाकिस्तानियों के लिए हम हमेशा बंगाली और शरणार्थी रहे."

नागरिकता का कोई सबूत नहीं

कराची के अराकान में रहे रहे रोहिंग्या ने डीडल्ब्यू को बताया कि वह पाकिस्तान में किसी सरकारी नौकरी में भी आवेदन नहीं कर सकते हैं. एक पाकिस्तानी रोहिंग्या ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे पास देश का राष्ट्रीय पहचान पत्र नहीं है इसीलिए हम किसी भी सरकारी नौकरी में आवेदन करने के लिए योग्य नहीं है."

अबुल हुसैन 1968 में पाकिस्तान आये और अभी भी कराची में एक शरणार्थी की तरह रह रहे हैं. उन्होंने कहा, "पुलिस हमें तंग करती है क्योंकि हमारे पास पहचान पत्र नहीं है. पाकिस्तान के कई रोहिंग्या मछुआरे, भारत की समुद्री सीमाओं में पकड़े गये थे लेकिन वे यह साबित नहीं कर पाये कि वे पाकिस्तानी हैं क्योंकि उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं था. हम देशविहीन लोग हैं. हम म्यांमार में मारे जा रहे हैं और पाकिस्तान में सताए जा रहे हैं.

हालांकि, कई रोहिंग्या और बंगालियों ने पाकिस्तान में अवैध पहचान पत्र बनवा लिये हैं. पाकिस्तान के एक रिक्शाचालक ने कहा, " पाकिस्तान में रोहिंग्या लोगों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. वे भारत के एजेंट हैं. उन्हें देश छोड़ देना चाहिए. "

-शाह मीर बलोच