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पिघले ग्लेशियर से ओबामा का एलान

३ सितम्बर २०१५

बराक ओबामा यूएस आर्कटिक सर्कल जाने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने. ओबामा जलवायु परिवर्तन नीति के लिए समर्थन जुटाने के लिए वहां गए. विपक्ष को इसमें भी राजनीति ही दिख रही है.

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अलास्का में ओबामातस्वीर: Reuters/J. Ernst

उत्तर आर्कटिक सर्कल पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति ने डिलिनघाम के स्थानीय समुदाय से बातचीत की. बर्फीली वादियों में रहने वाले वहां के ज्यादातर लोग पेशे से मछुआरे हैं. तीन दिवसीय अलास्का यात्रा के दौरान बराक ओबामा वहां के स्कूल भी गए. इसके बाद राष्ट्रपति कोत्सेबू पहुंचे. आर्कटिक के इस कस्बे में 3,100 लोग रहते हैं, उनका कस्बा लगातार डूब रहा है. समुद्री लहरें तटों को निगलती जा रही हैं.

USA Barack Obama in Alaska
अलास्का में ओबामातस्वीर: Reuters/J. Ernst

अमेरिकी राष्ट्रपति की तीन दिवसीय अलास्का यात्रा को उनकी आगामी पर्यावरण नीतियों से जोड़कर देखा जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ओबामा एक ठोस नीति बनाना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अमेरिका दुनिया का नेतृत्व करे. लेकिन विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं का आरोप है कि राष्ट्रपति जलवायु परिवर्तन के खतरों को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहे हैं.

मंगलवार को ओबामा ने अलास्का के तेजी से पिघलते ग्लेशियरों का हवाला देते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन की बात की जाए तो हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं यहां के हालात साफ संकेत हैं." राष्ट्रपति एक ऐसे ग्लेशियर के सामने खड़े थे जो बीते 200 सालों में पिघलकर दो किलोमीटर पीछे जा चुका है.

चीन के बाद अमेरिका ग्रीन हाउस गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करता है. ओबामा के मुताबिक सर्दियों में कम बर्फ और ज्यादा तापमान वाला गर्मियों का मौसम, ध्रुवीय बर्फ को पिघला रहा है और समुद्र का जलस्तर बढ़ा रहा है, "यह ऐसा संदेश है जो हमें बता रहा है कि तुरंत हरकत में आना होगा."

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दौरे से अलास्का के कुछ कारोबारियों के माथे पर शिकन पड़ी है. उत्तरी ध्रुव के करीब बसे इस इलाके में बड़े पैमाने पर तेल खनन होता है. वहां से खनिज भी निकाले जाते हैं. मछलियों के अंधाधुंध शिकार के लिए भी अलास्का बदनाम होता रहा है. अलास्का अमेरिका की ऊर्जा सुरक्षा और कारोबारी हितों से जुड़ा है.

Treibende Eisblöcke vor der kanadischen Küste
लगातार पिघलती ध्रुवीय बर्फतस्वीर: imago/Bluegreen Pictures

फ्रांस की राजधानी पेरिस में दिसंबर 2015 में अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन होगा. हर साल जलवायु को लेकर होने वाले इस महासम्मेलन में अब तक कोई ठोस रास्ता नहीं निकला है. चीन अमेरिका और भारत इस वक्त सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देश हैं. तीनों ही बाध्यकारी समझौते का विरोध करते आए हैं.

इस बीच जलवायु परिवर्तन के खतरे पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा स्पष्ट हो रहे हैं. ओबामा जिस तरह से सक्रिय हो रहे हैं, उसे देखकर इस बार पेरिस में एक स्पष्ट और बाध्यकारी नीति पर सहमति की उम्मीदें बढ़ी हैं.

ओएसजे/एमजे (एपी)