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पुतिन के दोस्त को ट्रंप ने बनाया अमेरिकी विदेश मंत्री

१४ दिसम्बर २०१६

राजनीति के नवसिखुआ डॉनल्ड ट्रंप ने एक और नवसिखुआ रेक्स टिलरसन को अमेरिका का विदेशमंत्री बनाने का फैसला किया है. डॉयचे वेले के मियोद्राग सोरिच बता रहे हैं कि क्या एक्स प्रमुख की नियुक्ति सही फैसला है.

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Russland Putin und Tillerson 2011
तस्वीर: picture alliance/dpa/Alexey Druginyn Mandatory Credit/R. Novosti

वे अभी कुर्सी पर बैठे भी नहीं हैं, लेकिन चेहरे पर ठंडी बयार बहने लगी है. 64 वर्षीय रेक्स टिलरसन को सरकार में काम करने का कोई अनुभव नहीं है. विशाल कंपनी एक्सॉन के प्रमुख के रूप में उन्होंने दुनिया भर के शासकों के साथ कारोबार किया है और सौदे किए हैं. यहां तक कि उनसे तमगा भी लिया है. रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रूबियो ने ट्वीट किया, "वे किसी पुतिन-मित्र को स्टेट डिपार्टमेंट में नहीं देखना चाहते." उन्हीं की पार्टी के सीनेटर जॉन मैक्केन ने भी क्रेमलिन के साथ टिलरसन की नजदीकी की आलोचना की है. और सीनेटर बॉब मेनेंडेज इस नियुक्ति को बकवास बताते हैं.

ये सब नियुक्ति के लिए होने वाली सीनेट की सुनवाई से पहले टिलरसन के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं. उनके लिए सीनेट का बहुमत फिलहाल सुरक्षित नहीं दिखता है. इसके बावजूद नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उनके पक्ष में और अपनी रिपब्लिकन पार्टी के साथ एक और पंगा लेने का फैसला किया है. आखिर क्यों?

पूर्व विदेश मंत्री का सुझाव

सच्चाई यह है कि ट्रंप और टिलरसन एक दूसरे को चुनाव से पहले ठीक से जानते भी नहीं थे. टेक्सस के टिलरसन हालांकि रिपब्लिकन हैं लेकिन चुनाव में उन्होंने दूसरे उम्मीदवारों का समर्थन किया था, वित्तीय रूप से भी. इस शख्स पर ठीक से ध्यान देने का सुझाव ट्रंप को बाहर से मिला. जेम्स बेकर और कोंडोलीजा राइस जैसे पूर्व विदेश मंत्रियों ने टिलरसन के पक्ष में बोला. और जब दोनों की बातचीत हुई तो भावी राष्ट्रपति और तेल कंपनी के सीईओ के सुर और ताल दोनों शुरू से ही मिल गए.

Miodrag Soric
तस्वीर: privat

दोनों विदेश नीति को एक तरह का कारोबार मानते हैं. यह कुछ हद तक सच भी है, खासकर अमेरिका के लिए. लेकिन विदेश नीति सिर्फ कारोबार नहीं है. उन मुद्दों का क्या जिनमें अमेरिका को कोई वित्तीय फायदा नहीं होने वाला है, जैसे कि मानवाधिकारों की रक्षा का मुद्दा. जो दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा की मांग करते है, वह दोस्त नहीं बनाता, खासकर तानाशाहों के साथ तो कतई नहीं. अमेरिकी विदेश मंत्रियों ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ सालों से यही किया है. और अगर विश्व में लोकतंत्रों की बढ़ती तादाद देखें तो उन्हें कामयाबी भी मिली है.

तो क्या रेक्स टिलरसन की नियुक्ति के बाद स्थिति बदल जाएगी? क्या अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए खनिजों का दोहन और कारोबारी समझौतों में फायदा मानवाधिकारों से ज्यादा अहम हो जाएगा? क्या नाटो में  और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा में अमेरिका की सक्रियता कम हो जाएगी क्योंकि उस पर खर्च होता है? क्या अमेरिका अपने में सिमट जाएगा, वह वैश्विक व्यवस्था कायम करने वाली सत्ता नहीं रह जाएगा?

पश्चिम का अंत

यह सचमुच अब तक के पश्चिमी व्यवस्था के अंत की शुरुआत होगी. एक व्यवस्था जिसने सिर्फ ट्रांस अटलांटिक समुदाय को ही सुरक्षा और समृद्धि मुहैया नहीं कराई है बल्कि विश्व के कई सारे दूसरे देशों के साथ साथ खुद अमेरिका को भी.

प्रलय की बात करने करने का फिलहाल समय नहीं आया है, हालांकि यूरोपीय लोगों का ऐसा रुझान होता है. अमेरिका के महत्वपूर्ण कारोबारी साझेदार के रूप में उन्हें भविष्य में भी आत्मविश्वास दिखाना होगा. अमेरिका अपने यूरोपीय साथियों और सहयोगियों के साथ मिलकर ही सचमुच की महाशक्ति है.

अरबपतियों और सैनिक जनरलों से भरे ट्रंप कैबिनेट के बारे में यूरोप में भले ही बहुत सारे संशय हों , लेकिन इसके बावजूद एक विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन को भी खुद को साबित करने का उचित मौका मिलना चाहिए.

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