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पुराने जमाने की बैडमिंटन चैंपियन

२० अप्रैल २०१०

इलाहाबाद ने भारत को सुरेश गोएल और त्रिलोक नाथ सेठ जैसे मंझे हुए बैडमिंटन खिलाड़ी दिए हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के इसी शहर का नाम रोशन किया है महिला खिलाडी दमयंती ताम्बे ने भी. वह 1960 और 70 के दशक में नेशनल चैंपियन रहीं.

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दमयंती ताम्बेतस्वीर: DW

दमयंती आज दिल्ली की जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स डायरेक्टर हैं और साथ ही भारतीय बैडमिंटन में खेल मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करती है. दमयंती के जीवन की कहानी एक सच्चे और साहसी खिलाडी की गाथा है. अभी उनके विवाह को एक साल से कुछ ही ज्यादा समय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध छिड़ गया. और दमयंती के पति फ्लाइट लेफ्टिनेंट विजय ताम्बे को अंबाला से लाहौर की उड़ान भरनी पड़ी. शायद यह उनके जीवन की आखरी उड़ान थी.

आज 40 साल बाद भी दमयंती इंतज़ार कर रही है विजय के जहाज़ की लैंडिंग का. विजय के जहाज़ को पाकिस्तान के आकाश में एंटी एयरक्राफ्ट गन का शिकार होना पड़ा और और वह बंदी बना लिए गए. हज़ार कोशिशों के बावजूद उनके जेल में होने का ना तो पाकिस्तान सरकार ने कोई जवाब दिया न ही भारत सरकार ने. और दमयंती की आंखें आज भी अपने पति को तलाश रही हैं. वह कहती हैं, "में हमेशा सोचती थी कि मैं सुंदर नहीं हूं लेकिन विजय ने हमेशा मुझे बहुत सुंदर कहा और उनके साथ गुज़ारा डेढ़ साल ही मेरे जीवन का सबसे सुंदर समय है."

Damyanti Tambe
तस्वीर: DW

पुरानी यादों में झांकते हुए दमयंती बताती है, "शादी से पहले मैं दमयंती सूबेदार थी और नेशनल चैंपियन थी. लेकिन विजय ने कहा कि कम से कम एक दफा ताम्बे नाम से भी ख़िताब जीत लो. और मैं लग गई मेहनत करने. लेकिन उनकी पोस्टिंग अंबाला में थी और वहां कोई कोर्ट नहीं था. तो उन्होंने कहा की तुम इलाहाबाद में जाकर रहो और प्रैक्टिस करो. और मैंने ऐसा ही किया और दमयंती ताम्बे के नाम से भी नेशनल चैंपियन बनी."

दमयंती चैंपियन तो बनीं लेकिन विवाह का सुख ना भोग सकीं. उसके बाद उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था, अपने पति को तलाशना. इसके लिए वह तीन बार पाकिस्तान भी गईं और वहां की जेल में विजय की तलाश की. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. वह बताती हैं, "वहां के जेल की हालत बहुत ख़राब है और भारतीय बंदियों की बुरी हालत देख कर लगता है की उससे तो अच्छा है की उन्हें मौत ही मिल जाए."

पति की याद को ताज़ा रखने के साथ दमयंती को बैडमिंटन से आज भी उतना ही लगाव है जितना 40 साल पहले था. दिल्ली में एशियन चैंपियनशिप को उन्होंने बड़े चाव से देखा. खासतौर से साइना नेहवाल के खेल को. वह कहती हैं, "साइना को सेमीफाइनल की हार से सबक लेना चहिए ताकि आने वाले समय में वह और अच्छा कर सकें." दमयंती का मानना है की आज खेल में बहुत बदलाव आ चुका है. उनके शब्दों में, ''खेल काफी तेज़ हो गया है और खिलाडी पहले से कही ज्यादा फिट हैं लेकिन फिर भी अच्छे स्ट्रोक्स देखने को नहीं मिलते.''

रिपोर्टः नोरिस प्रीतम, नई दिल्ली

संपादनः ए कुमार