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पूरी दुनिया में औरतों का अपमान

२२ जुलाई २०१४

लंदन की लॉरा बेट्स जब एक रात घर जा रही थीं, तो गौर किया कि बस से उतर कर एक शख्स उनके पीछे पीछे उनके घर तक गया. उन्होंने नजरअंदाज कर दिया कि ऐसा तो होता रहता है. लेकिन...

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

इसके बाद इस तरह की घटनाएं लगातार होने लगीं. एक अनजाने शख्स ने कार की खिड़की खोल कर उन्हें भद्दी बातें कह दीं. एक शख्स ने कैफे में उन्हें जान बूझ कर धक्का दे दिया. एक ने तो बस में उन्हें पकड़ ही लिया और दूसरे मुसाफिरों ने मुंह फेर लिया.

उन्हें समझ नहीं आया कि क्या अब रुकना है या कुछ करना है, "मैं दूसरी औरतों के बारे में सोचने लगी. मुझे यकीन नहीं हुआ कि उनके पास कितनी कहानियां हैं. मैं समझती हूं कि हममें से ज्यादातर यही सोचती हैं कि हम अभागी हैं." 27 साल की लेखिका बेट्स कहती हैं कि उनकी ही तरह ज्यादातर महिलाओं का यही कहना था कि जब तक उनसे किसी ने इस बारे में नहीं पूछा, तब तक उन्होंने अपनी बात नहीं कही.

ऑनलाइन जागरूकता

इन बातचीत के बाद एक वेबसाइट बनाने की तैयारी चल पड़ी, जो यौन उत्पीड़न से जुड़ी है. यहां औरतें रोजमर्रा के अपने अनुभव साझा कर सकती हैं. चाहे वह सड़कों पर हो, स्कूलों में, ट्रेनों में या दफ्तरों में. दो साल पहले यह एक सामान्य मुद्दे के तौर पर शुरू हुआ था और आज यह एक अभियान बन चुका है. इसे ब्रिटेन के नेताओं, पुलिस और हजारों दूसरी महिलाओं का समर्थन हासिल है.

Symbolbild Depression
दुनिया भर में औरतों पर अत्याचारतस्वीर: Irna

इस प्रोजेक्ट के लिए 20 देशों से 70,000 लोगों ने खत लिखे. इन खतों में औरतों ने बताया है कि उनके साथ किस तरह का बुरा बर्ताव किया गया. बताया गया कि किस तरह रेप के मामलों में भी दफ्तर के साथी हल्के फुल्के बयान दे देते हैं. कुछ मामले तो बहुत युवा लड़कियों ने उजागर किए. 12 साल की एक लड़की ने बताया कि साथ पढ़ने वाले एक लड़के ने उसके साथ बदतमीजी की. जब वह इस मामले को सामने लाना चाह रही थी, तो किसी ने कहा कि वह किचन में जाए. कई लड़कियों ने बताया है कि स्कूल जाते वक्त कई लोग उन पर फब्तियां कसते हैं या उन्हें छूने का प्रयास करते हैं.

बेट्स की वेबसाइट कामयाब रही है और इसकी वजह से उन्हें संयुक्त राष्ट्र और दूसरी जगहों पर अपनी बात कहने का मौका भी मिला है. वे ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस और नेताओं के साथ मिल कर काम कर रही हैं. इंस्पेक्टर रिकी ट्वाइफोर्ड का कहना है, "सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस मामले की बहुत कम रिपोर्टिंग होती है." हालांकि पिछले कुछ साल में इसमें बदलाव आया है और लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

यह कैसी बराबरी

ब्रिटिश लेखिका को इस बात पर ताज्जुब होता है कि कहने को तो ब्रिटेन में महिलाओं को बराबरी का अधिकार है लेकिन दफ्तरों में उनके साथ भेदभाव साफ दिखता है, "उस ऑफिस में कुछ लोग थे, जो महिला आवेदनकर्मियों की तस्वीरें प्रिंट कर रहे थे और उन्हें नंबर दे रहे थे."

सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से इस तरह के अभियानों की चर्चा बढ़ी है. पिछले दिनों औरतों से नफरत करने वाले एक युवक ने जब अमेरिका के कैलिफोर्निया में अंधाधुंध फायरिंग की, तो सोशल मीडिया पर हजारों महिलाओं ने उसकी निंदा की. बेट्स का मानना है कि ऑनलाइन समुदाय ने औरतों में जागरूकता बढ़ाई है, "ऐसा कहीं और नहीं हो सकता क्योंकि अचानक 50,000 लोग एक ही बात कहने लगते हैं. सोशल मीडिया के युग ने लोगों को साहसी बना दिया है."

उनकी योजना है कि वह अपना अभियान मेक्सिको, सर्बिया और भारत तक बढ़ाएं. उनका कहना है कि लोगों को घर पर भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.

एजेए/एएम (एपी)