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वसीयत का विवाद

५ फ़रवरी २०१४

एक पोप, उनके सहायक और पोप की वसीयत. तीनों मिलाकर अच्छा मसाला बनाते हैं. पोलैंड के पोप जॉन पॉल द्वितीय के सचिव ने उनकी वसीयत के खिलाफ उनकी टिप्पणियां प्रकाशित कर दी हैं. पोलैंडवासियों ने की कड़ी आलोचना.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

जॉन पॉल विभिन्न मुद्दों पर नोट लिखा करते थे. उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि इन नोट्स को उनकी मौत के बाद जला दिया जाए. उन्होंने इसका जिम्मा दिया अपने विश्वस्त रे स्टानिस्वाफ जीविश को. अब कार्डिनाल बन गए जीविश ने सबको सकते में डालते हुए हाल ही में घोषणा की कि उनमें पूर्व पोप के नोट जलाने की हिम्मत नहीं थी और वे उन्हें प्रकाशित करा रहे हैं. उनके विचार में ये नोट्स अप्रैल में संत घोषित होने वाले लोकप्रिय पोप की अंदरूनी जिंदगी के बारे में गहरा राज बताते हैं.

बुधवार को प्रकाशित हो रही किताब का नाम है, वेरी मच इन गॉड्स हैंड्स - पर्सनल नोट्स 1962-2003. कार्डिनल जीविश के फैसले का कम से कम पोलैंड में तारीफ से ज्यादा विरोध हो रहा है. पोलैंड की राजधानी वॉरसा में जेवियर चर्च से निकलते हुए एवेलिना ग्नीनिक कहती हैं, "मैं नहीं समझती कि कि चर्च के सदस्य के लिए पोप की इच्छा और इख्तियार के खिलाफ जाना ठीक है, चाहे जो भी वजह हो." वे कहती हैं, "मैं नहीं जानती कि कार्डिनल जीविश को पता है कि वे क्या कर रहे हैं."

पोलिश भाषा में छप रही किताब में जुलाई 1962 से मार्च 2003 तक रिकॉर्ड किए हुए कारोल वोयतिला के धार्मिक चिंतन हैं. इस अवधि में वे पोलैंड के बिशप से लेकर दुनिया भर में लोकप्रिय पोप रहे. इस किताब को अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं में भी प्रकाशित करने की योजना है. इस किताब को प्रकाशित करने का फैसला पोप के गलत न होने के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है, जो आम धारणा के विपरीत सिर्फ चर्च के सिद्धांतों पर लागू होता है.

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वैटिकन में स्विस गार्डतस्वीर: Filippo Monteforte/AFP/Getty Images

इसके बावजूद कुछ लोग इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि एक भरोसेमंद सहकर्मी ने पोप के आदेशों की अवहेलना की है, खासकर वसीयत जैसे पवित्र मामले में. इंटरनेट जीविश के खिलाफ रोषपूर्ण टिप्पणियों से पटा है. इन सारे विवादों के विपरीत 640 पेजों वाली किताब में कुछ भी विवादास्पद नहीं है. सामान्य पाठकों के लिए वह आसान भी नहीं होगी क्योंकि वह अत्यंत धार्मिक और सघन विचारों से भरी पड़ी है, जो बाइबिल की पंक्तियों से प्रभावित हैं. इससे पादरियों, धर्मशास्त्रियों और दर्शनशास्त्रियों को प्रेरणा मिलेगी, लेकिन आम जन को यह खोखली लगेगी.

हालांकि पोप जॉन पॉल की मार्च 1981 में लिखी गई एक टिप्पणी रोम कैथोलिक गिरजे में पादरियों के खिलाफ सामने आ रहे बाल यौन शोषण के मौजूदा माहौल में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. उन्होंने लिखा है, "पाप का सामाजिक पहलू, यह समुदाय के रूप में चर्च को चोट पहुंचाता है. खासकर पादरी द्वारा किया गया पाप."

अतीत में ऐसे मामले पहले भी हुए हैं, जब वसीयत पर अमल करने वालों ने प्रसिद्ध व्यक्तियों की रचना को नष्ट करने की बात नहीं मानी है. रूसी उपन्यासकार व्लादीमिर नोबोकोव के बेटे दिमित्री ने अपने पिता की अपूर्ण रचना, द ओरिजिनल ऑफ लॉरा का प्रकाशन किया, हालांकि नोबोकोव ने उसे जलाने को कहा था. अपना बचाव करते हुए दिमित्री ने कहा था कि वे इतिहास के पन्नों में साहित्यिक आगजनी करने वाले के रूप में नहीं पहचाने जाना चाहते हैं.

जीविश विश्वासघात के आरोपों का सामना करने के लिए तैयार थे. वे पोलैंड और वैटिकन में 40 साल से ज्यादा तक जॉन पॉल के निजी सचिव थे. वैटिकन विशेषज्ञों का कहना है कि पोप के अंतिम समय में उन्होंने अहम फैसले लिए. 2005 में 84 साल की उम्र में पोप की मौत के बाद जीविश को क्राकोव का आर्चबिशप बनाया गया, जहां वे पोप की याद में एक स्मारक बनवा रहे हैं. किताब से होने वाली आमदनी इस स्मारक पर खर्च होगी.

हाल ही में उन्होंने कहा था, "मुझे कोई शक नहीं कि ये नोट्स अत्यंत अहम हैं, वे महान पोप के आध्यात्मिक पहलू के बारे में इतना कुछ कहते हैं कि उसे नष्ट करना अपराध होता." उन्होंने पोप पिउस बारहवें की चिट्ठियों को जलाए जाने पर इतिहासकारों की निराशा का भी जिक्र किया. चर्च मामलों पर टिप्पणी करने वाले लोकप्रिय समीक्षक आदम बोनिएत्स्की ने कहा है कि पहले उन्हें आश्चर्य हुआ, लेकिन किताब को पढ़ने के बाद "मैं उनका आभारी हूं कि उन्होंने अंतरात्मा की आवाज सुनने का जोखिम उठाया."

पोलैंड के वकीलों में इस पर स्पष्ट राय नहीं है कि जीविश ने वसीयत को पूरा नहीं कर कानून तोड़ा है या नहीं. पोलैंड में वसीयत को तामील करने की लंबी परंपरा नहीं है, इसलिए कानून भी स्पष्ट नहीं हैं. याचेक स्तोकोलोसा कहते हैं कि पूरी वसीयत पढ़े बिना वह यह भी नहीं बता सकते कि पोलैंड के कानून के तहत जीविश वसीयत के एक्जीक्यूटर थे भी या नहीं.

किताब को लेकर सबसे बड़ा आश्चर्य यह नहीं है कि उसमें क्या लिखा गया है बल्कि वह जो उसमें नहीं लिखा गया है. उसमें दुनिया की महत्वपूर्ण घटनाओं की कोई चर्चा नहीं है, पोप के अपने देश पोलैंड में साम्यवाद के पतन की भी नहीं, जिसमें उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.

एमजे/एएम (एपी)

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