1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पोस्टर से पाकिस्तान प्रेम

२८ अप्रैल २०१४

पाकिस्तान की सड़कों पर हाल के दिनों में नए तरह के पोस्टर दिख रहे हैं. इनमें सेना के दो शक्तिशाली जनरलों की तस्वीरें हैं, जो लोगों से सेना और खुफिया एजेंसी से प्यार की अपील कर रहे हैं.

https://p.dw.com/p/1BpKl
तस्वीर: picture-alliance/dpa

बिजले के खंबों, कारों और दूसरी जगहों पर पोस्टर चस्पा है, "पाकिस्तान सेना का गद्दार, देश का गद्दार है" और "हम पाकिस्तान सेना और आईएसआई से प्यार करते हैं". खुफिया एजेंसी आईएसआई पर आरोप है कि मशहूर पत्रकार हामिद मीर पर हमले के पीछे उसका हाथ है. इसके बाद से ही पाकिस्तान की सेना और आईएसआई इल्जाम झेल रही है.

हामिद मीर पर हमले के बाद उनके भाई ने जियो टीवी पर आकर कहा कि हमले में आईएसआई की साजिश है. इसी वक्त टीवी चैनल ने इसके प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जहीरुल इस्लाम की तस्वीर दिखाई. टीवी चैनल ने बार बार यह खबर चलाई. इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने सरकार को सलाह दी कि जियो टीवी के प्रसारण पर पाबंदी लगा दी जाए. संभव है कि मई महीने में ऐसा हो जाए.

Hamid Mir, Pakistan, Journalist, Attentat, Anschlag
हामिद मीर पर हमलातस्वीर: picture-alliance/dpa

चैनल का आरोप है कि पाकिस्तान के कुछ इलाकों में इसके प्रसारण में बाधा आ रही है. इसी बीच सड़कों पर ऐसे पोस्टर नजर आने लगे. इन्हें कौन लगा रहा है, इस पर मतभेद है. कुछ का कहना है कि राजधानी इस्लामाबाद के आम लोग इसे लगा रहे हैं, कुछ का कहना है कि पाकिस्तानी धार्मिक संगठन का हाथ है, जबकि कुछ कहते हैं कि कुछ कारोबारियों का दल ऑल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन इसके पीछे है. आम तौर पर राजधानी में पोस्टर लगाने से पहले लोगों को इजाजत लेनी पड़ती है और इसके लिए फीस भी देनी होती है.

राजधानी विकास प्राधिकरण के अधिकारी ने बताया कि उन्हें किसी तरह का आवेदन नहीं मिला है, जिसमें पोस्टर लगाने की इजाजत मांगी गई हो. हालांकि पाकिस्तान में कई बार लोग बिना बताए भी ऐसा कर देते हैं. इस मामले में सेना ने कोई बयान नहीं दिया है, जबकि आईएसआई का कहना है कि इस अभियान के पीछे उसका हाथ नहीं है.

इस्लामाबाद में इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के प्रमुख रसूल बख्श रईस का कहना है कि ये पोस्टर आम लोगों की भावना दर्शाते हैं. उनके मुताबिक देश में अभी भी "ज्यादातर लोग सेना को इज्जत की नजर से देखते हैं और उन्हें लगता है कि उसकी आलोचना में जियो टीवी ने हद पार" कर दी. वह इसकी तुलना 1958 की उस घटना से करते हैं, जब फील्ड मार्शल अय्यूब खान ने तख्ता पलट किया था.

लेकिन सड़कों पर लोगों का कुछ और कहना है. गुलाम हसन कहते हैं, "मैं ये बैनर नहीं पढ़ता हूं. न टीवी देख पाता हूं और ना रेडियो सुनता हूं. किसी आम आदमी के पास इन चीजों के लिए वक्त नहीं है." वह कहते हैं, "आम आदमी पहले अपने खर्चे जुटाना चाहता है. और जो सत्ता मैं हैं, उनके पास आम लोगों की समस्या हल करने का वक्त नहीं है."

एजेए/आईबी (एपी)