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प्यासा से जगी प्यास बुझाने का जरिया

३१ जनवरी २०११

गुरु दत्त की फिल्म प्यासा को जिसने देखा, उसकी फिल्म देखते रहने की प्यास बढ़ती ही चली गई. हिंदी सिनेमा के उस महान फिल्मकार ने फिल्मकारी को जो बेजोड़ नमूना प्यासा में पेश किया, उसे फिल्म देखने वाले ही जान सकते हैं.

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प्यासा देखने वाले हर बार सोचते हैं, कैसे रचा गया यह शाहकार. इसका जवाब अब पाया जा सकता है. अब लोग जान सकते हैं कि फिल्म प्यासा कैसे बनी. जानीमानी फिल्म लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने इस फिल्म पर एक किताब लिखी है. इस किताब में फिल्म बनने की पूरी कहानी बयान की गई है.

अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की जिंदगियों पर फिल्में बना चुकीं कबीर ने हिंदी सिनेमा पर कई किताबें लिखी हैं. लेकिन गुरु दत्त की मास्टरपीस प्यासा पर उनकी यह किताब अपने आप में अनूठी है.

1957 की इस फिल्म को कल्ट फिल्म कहा जाता है. कबीर ने इस फिल्म की कहानी को नाम दिया है द डायलॉग ऑफ प्यासा. इस किताब में गुरु दत्त और उनके काम को विस्तार से बयान किया गया है. इससे पहले कबीर ने गुरु दत्त पर तीन हिस्सों में एक डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाई थी जो उनकी 25वीं बरसी पर रिलीज की गई थी.

द डायलॉग्स ऑफ प्यासा में बात सिर्फ फिल्म डायलॉग्स की नहीं है. फिल्म की कहानी, गाने और पर्दे के पीछे के कई किस्से इसमें शामिल किए गए हैं.

प्यासा को गुरु दत्त का सबसे अच्छा काम माना जाता है. अबरार अल्वी की लिखी स्क्रिप्ट और विजय के किरदार में गुरु दत्त की अदाकारी ने इसे महान फिल्म बना दिया. अगर कुछ कमी रही होगी तो वह एक सेक्स वर्कर बनीं वहीदा रहमान की खूबसूरती ने पूरी कर दी.

लेकिन फिल्म में चार चांद लगाए साहिर लुधियानवी के गीत और एसडी बर्मन के संगीत ने. ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है जैसा सामाजिक गीत खून में उबाल लाता है तो हम आपकी आंखों में जैसा रोमैंटिक गीत दिल के रेशों को हौले हौले सहलाता है. यानी इस फिल्म में हर वह चीज थी जो देखने वाले के दिल पर मुहर लगा सकती है. इसीलिए कबीर ने इसी फिल्म को किताब का विषय बनाया. किताब हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी, तीनों भाषाओं में उपलब्ध है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादनः वी कुमार

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