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प्रकृति से सीखा हल्के मैटेरियल का निर्माण

१४ जून २०१६

बायोनिक्स शब्द बायोलॉजी और टेक्नोलॉजी को मिलाकर बना है. ये प्रकृति की तकनीक को आम जिंदगी में अमल में लाने की विधा है.

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Biene auf Blüte
तस्वीर: picture-alliance/chromorange

बायोनिक्स पर काम करने वाले जीवविज्ञानी, इंजीनियरों, आर्किटेक्ट्स, रसायनशास्त्रियों, भौतिकविज्ञानियों से लेकर धातुविज्ञानियों तक के साथ मिल कर काम करते हैं. जर्मन वैज्ञानिक इस समय बीटल नाम के कीड़े के पंखों से प्रेरणा लेकर बेहद हल्के कंस्ट्रक्शन एलिमेंट बना रहे हैं. प्रकृति अभी भी सबसे अच्छी इंजीनियर है. वह हड्डियों और सींग जैसी हल्की लेकिन ठोस संरचना बना पाती है और भौंरे के पंख भी.

कार्ल्सरूहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में वैज्ञानिक भौंरे के पंख का राज पता करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उससे घर बनाने की तकनीक विकसित की जा सके. इसके लिए वे एक नए 3 डी प्रोसेस एक्सरे माइक्रोटोमोग्राफी का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि रेडिएशन हॉल जितने बड़े पार्टिकल एक्सेलेटर में पैदा किये जा सकें. भौतिकविज्ञानी टॉमी दोस सांतोस रोलो कहते हैं, "ये एक सिंक्रोटोन रेडिएशन सोर्स है जहां इलेक्ट्रॉन विक्षेपण चुंबक के जरिये अत्यंत संकेंद्रित और गहन एक्सरे किरणें पैदा करता है. इनका इस्तेमाल हम हाई डिफिनिशन फोटो तैयार करने के लिए करते हैं."

ये रेडिएशन जीवित प्राणियों के लिए अत्यंत नुकसानदेह होता है, इसलिए सैंपलों को रोबोट की मदद से बीम के सामने डाला जाता है. नतीजे में हमें मिलता है एक्सरे वीडियो. रॉ डाटा से रिसर्चर एक मॉडल बनाते हैं और 3डी हाई डिफीनिशन तस्वीर निकालते हैं जिसमें माइक्रोमीटर जितनी छोटी चीजों को भी पहचाना जा सकता है. टॉमी दोस सांतोस रोलो कहते हैं कि पंख में सख्ती इसलिए है कि ऊपर और नीचे के हिस्से एक दूसरे को सहारा देते हुए जुड़े हैं. पंख के ऊपर लहर जैसी लोच उसे और स्थिरता देती है.

इसकी तुलना कागज से की जा सकती है. जब वह सीधा सपाट होता है तो उसे किसी भी दिशा में मोड़ा जा सकता है. लेकिन जब उसे गोल लपेट दिया जाता है तो उसे किसी एक दिशा में नहीं मोड़ा जा सकता. पंख के ऊपरी और निचले हिस्से के बीच बने सहारे की खासियत यह है कि सहारा, फाइबर के बंडल का होता है और ये ऊपर से नीचे की ओर जाते हैं और संरचना को दृढ़ता देते हैं.

श्टुटगार्ट के कंप्यूटर बेस्ड डिजायनिंग इंस्टीट्यूट के आर्किटेक्टों ने इस सिद्धांत का अध्ययन किया है और ऐसी तकनीकी प्रक्रिया विकसित की है जो इसी जैविक सिद्धांत पर काम करती है. भौंरे का पंख कायटिन का है. ग्लास और कार्बन फाइबर दोनों मिलकर मैटेरियल को हल्कापन और दृढ़ता प्रदान करते हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ कंप्यूटर बेस्ड डिजायनिंग के मोरित्स डोएर्स्टेलमन बताते हैं, "हमारी दिलचस्पी हल्के निर्माण के सिद्धांत की जैविक मिसाल को तकनीकी प्रोडक्ट में पेश करने की है. एक तो फाइवर का ऊपरी से निचले खोल की तरफ जाने का प्रवाह और फिर लोच वाली जियोमेट्री.

रोबोट की मदद से इन पुर्जों का निर्माण स्वचालित तरीके से होता है. फाइबर फ्लो मैटेरियल के इलेक्ट्रिक फ्लक्स के अनुरूप होता है. ये संरचना हवा में तने फाइबरों के आपसी डिफॉर्मेशन से बनता है. रेजिन में डूबोए गए फाइबर बंडल एक दूसरे से जुड़कर जटिल और वक्र ऊपरी ढांचा बनाते हैं. इसे बनाने में बहुत ज्यादा मैटेरियल नहीं लगता क्योंकि फाइबर का इस्तेमाल सिर्फ वहीं होता है जहां दबाव की ताकत पैदा होती है. उसमें बहुत सारा खाली हिस्सा रहता है जिसकी वजह से वह अत्यंत हल्का और ठोस भी होता है. इस मैटेरियल का भविष्य में दूसरे इलाकों में भी इस्तेमाल हो पाएगा.

मार्टिन रीबे/एमजे