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प्रतीकों वाला नाटो शिखर सम्मेलन

७ जुलाई २०१६

यूक्रेन संकट के बाद से पश्चिमी देशों और रूस के संबंध तेजी से बिगड़े हैं. क्या शुक्रवार को पोलैंड में हो रहा नाटो शिखर सम्मेलन इस और बिगाड़ेगा? नाटो के देश रूस के साथ दोहरी नीति पर चल रहे हैं.

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Belgien Jens Stoltenberg bei der Pressekonferenz der NATO
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Hoslet

शुक्रवार को वारसा में नाटो शिखर भेंट शुरू होने के तुरंत बाद नेशनल स्टेडियम के ऊपर 30 लड़ाकू विमान 200 से 400 मीटर की ऊंचाई पर कलाबाजियां दिखाएंगे. पोलैंड, तुर्की, रोमानिया और जर्मनी के लड़ाकू विमान 5 मिनट चलने वाले इस शो में हिस्सा लेंगे. नाटो की वायु सेना सदस्य देशों के नेताओं को यह दिखाएगी कि वह क्या करने में सक्षम है. शिखर भेंट के प्रमुख मुद्दे के अनुरूप ही मकसद है रूस को अपनी ताकत दिखाना.

प्रतीकों भरा सम्मेलन

पश्चिमी देशों के सैनिक सहबंध का वारसा में हो रहा सम्मेलन प्रतीकों से भरा सम्मेलन है. जानबूझकर सम्मेलन को रूस के उस पड़ोसी देश में रखा गया है जो क्रीमिया के अधिग्रहण के बाद से डरा हुआ महसूस कर रहे हैं. पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रे डूडा ने तो टिप्पणी भी की है, "पहले पोलैंड नाटो में था अब नाटो पोलैंड के पास आ रहा है." अपनी टिप्पणी में वे सिर्फ शिखर सम्मेलन की बात नहीं कर रहे थे बल्कि शिखर सम्मेलन के दौरान होने वाले फैसलों की भी. नाटो पोलैंड और रूस के पड़ोसी तीन बाल्टिक देशों में हर कहीं 1000 सैनिकों की टुकड़ी तैनात करेगा. जर्मनी लिथुएनिया में के बटालियन का नेतृत्व करेगा.

Frankreich Klimagipfel in Paris Merkel und Putin
तस्वीर: Reuters/S. Mahe

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने शिखर सम्मेलन से पहले जर्मन संसद बुंडेसटाग में इसके लिए दलील दी. उन्होंने कहा कि रूस के कदमों ने पूरब में नाटो के सदस्यों को अत्यंत परेशान कर दिया है. इसलिए उन्हें नाटो की तरफ से स्पष्ट समर्थन की जरूरत है. इस समय नाटो और रूस के बीच जो हो रहा है, उसके लिए मैर्केल ने शीतयुद्ध के दौरान इस्तेमाल होने वाला शब्द इस्तेमाल किया है, भयादोहन. भयादोहन का मतलब है कि विरोधी काबू में रखने के लिए ताकत का भय दिखाना. साथ ही मैर्केल मॉस्को के साथ संवाद की वकालत की है. उन्होंने कहा, "हम इस पर एकमत हैं कि यूरोप में स्थायी शांति सिर्फ रूस के साथ, उसके खिलाफ हासिल नहीं हो सकती."

दोहरी रणनीति

एक ओर डर दिखाना और दूसरी ओर बातचीत का हाथ बढ़ाना, सैद्धांतिक रूप से नाटो रूस के प्रति अपनी रणनीति पर एकमत है. विवाद इस पर है कि मुख्य जोर बलप्रयोग पर होना चाहिए या बातचीत पर. पोलैंड जैसे सदस्य पूर्वी सीमा पर स्थित देशों में ताकत बढ़ाने के पक्ष में हैं, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश बातचीत को नजरअंदाज नहीं करना चाहते. जर्मन सरकार इस बात पूरी तरह सहमत नहीं दिखती. विदेश मंत्री फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर की नाटो की तलवार भांजने की नीति पर टिप्पणी की मैर्केल की पार्टी में बड़ी आलोचना हुई थी. चांसलर ने अपने भाषण में भयादोहन की नाटो की नीति का समर्थन किया है. साथ ही उन्होंने रूस और नाटो के बीच विदेश मंत्री श्टाइनमायर की बातचीत कराने की कोशिशों की सराहना की.

ये भी दोहरी रणनीति है. रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने भी हाल में ऐसा ही रवैया अपनाया है. एक ओर वे सहयोग के लिए खुलापन दिखा रहे हैं, खासकर अमेरिका के साथ. दूसरी ओर सैनिक तौर पर वे भी ताकत दिखाने से नहीं चूक रहे. पुतिन के नाटो राजदूत अलेक्जांडर ग्रुश्को ने कहा है कि हर किसी को समझना चाहिए कि अतिरिक्त नाटो सैनिकों की तैनाती का रूस सिर्फ सैनिक जवाब दे सकता है. उनका कहना है कि नाटो सिर्फ टकराव का एजेंडा पेश कर रहा है.

Infografik Russische Anti-Nato-Truppen englisch

जर्मनी में बंटी है राय

जर्मन विदेश मंत्री श्टाइनमायर ने शिखर सम्मेलन से पहले चेतावनी दी है कि पश्चिमी देशों और रूस के संबंधों को पुराने समय के ढर्रे पर नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मौजूदा समस्याओं के बावजूद नाटो को बातचीत के लिए तैयार रहना चाहिए. "यह हमारा साधा लक्ष्य होना चाहिए कि ढाई मुश्किल सालों के बाद यूरोप में सबके लिए फिर से ज्यादा सुरक्षा हासिल की जाए. हमें एक पुराने टकराव की स्थिति में वापसी की इजाजत नहीं देनी चाहिए."

जनमत सर्वेक्षकों का कहना है कि जर्मनी के ज्यादा लोग नाटो और रूस के बीच नए शीतकाल की शीघ्र समाप्ति चाहते हैं. यूगव पर हुए एक सर्वे के अनुसार दो तिहाई से ज्यादा भागीदार तलवारबाजी की श्टाइनमायर की आलोचना से सहमत हैं. पोलैंड और बाल्टिक देशों में तैनात की जा रही टुकड़ी में जर्मनी की भागीदारी का दस प्रतिशत लोग भी समर्थन नहीं कर रहे हैं. जर्मनों का बड़ा बहुमत यह भी नहीं चाहता कि जर्मनी के सैनिक नाटो के पूर्वी देशों में सैनिक अभ्यास में भाग लें.