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प्रदूषण के खिलाफ ईमानदार संघर्ष की जरूरत

४ जून २०१५

पर्यावरण दिवस के मौके पर भारत में दिल्ली के प्रदूषण पर हंगामा मचा है. वह भी न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख के कारण. जिस प्रदूषण को दिल्ली के लोग हर रोज, हर घंटे लगातार झेल रहे हैं, उस पर विदेशी अखबार के लेख से नजर जाती है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार ने भारत से वापस लौटने के बाद अपनी व्यथा कथा लिखी है और पूछा है कि क्या दिल्ली में रहने का फैसला लेकर बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डालना सही है? एक सवाल जो दिल्ली में रहने वाला हर इंसान पूछ सकता है, लेकिन शायद अपने स्वास्थ्य की चिंता किसी को नहीं है. मीडिया भी निवेशकों के स्वास्थ्य पर चिंतित है.

धनी और प्रभावशाली राजनीतिज्ञों को प्रदूषण की समस्या नजर नहीं आती. लेकिन आम लोगों को उसका कहर रोजमर्रा में तो भुगतना ही होता है, उसकी वजह से होनेवाली बीमारियों का दंश भी उन्हें अकेला ही झेलना होता है. दर्पण सिंह ने ट्वीट किया है कि कोई भी राजनीतिक दल प्रदूषण को रोकने के लिए गंभीर नहीं है.

जिन समस्याओं पर राजनीतिज्ञों का सत्ता में रहते कभी ध्यान ही जाता है और उनका समाधान करना वे राजनीतिक जिम्मेदारी के निर्वाचित या मनोनीत पद पर रहते हुए अपनी जिम्मेदारी भी नहीं समझते हैं, सत्ता से हटते ही वे अहम हो जाती हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने दिल्ली में प्रदूषण का मुद्दा उठाने के लिए मीडिया की सराहना की है. 

राजधानी में वायु प्रदूषण की बहस में शामिल होते हुए दिल्ली कांग्रेस ने आप सरकार से सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देने की मांग की है. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय माकन ने एक ट्वीट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पांच जून को पब्लिक ट्रांसपोर्ट दिवस मनाने की अपील की है.

ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख को भारत की आलोचना के रूप में देख रहे हैं. यह बहुत गलत भी नहीं कि पश्चिमी देशों में पहले भारत की गायों के बारे में लेख छपते थे और अब उससे पर्यावरण के क्षेत्र में ज्यादा जिम्मेदारी दिखाने की उम्मीद की जा रही है.

दिल्ली में या भारत के दूसरे हिस्सों में भी प्रदूषण के अनेक कारण हैं लेकिन सड़कों पर हकीकत एक जैसी दिखती है.

दुनिया के दूसरे हिस्सों में स्मॉग से पीछा छुड़ाने की मिसालें मौजूद हैं. भारत भी यही कर सकता है लेकिन उसे कुछ करना होगा. और दिल्ली के मूल निवासी अभिषेक सिंघवी ने पार्टी हितों को भुलाने की सलाह दी है.

अब जरूरत है इस सलाह पर अमल करने की. सरकारों के राजनीतिक प्रतिनिधियों के अलावा अधिकारियों, वैज्ञानिकों और आम लोगों को भी इस समस्या से पार पाने के लिए साथ आना होगा.