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समाज

प्राणघातक दवाएं खरीद सकेंगे गंभीर और लाइलाइज बीमारी के मरीज

१० मार्च २०१७

10 साल से भी ज्यादा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 74 साल के शख्स ने इच्छा मृत्यु के लिए प्राणघातक दवा खरीदने का मुकदमा जीता. यह कानूनी जीत उनकी पत्नी को श्रद्धाजंलि जैसी ही है.

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Symbolbild Sterbehilfe Medikamente
तस्वीर: Imago/S.Spiegl

जर्मनी की संघीय प्रशासनिक अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में लोगों को आत्महत्या के लिए जरूरी दवाएं खरीदने का अधिकार है. लाइपजिष में संघीय प्रशासनिक अदालत "लाइलाज बीमारी से पीड़ित रोगी को अपना जीवन खत्म करने का अधिकार" देने के हक में फैसला सुनाया है. इसके तहत लाइलाइज बीमारी से जूझ रहा मरीज यह भी तय कर सकेगा कि वह कैसे दम तोड़ना चाहता है. अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में मरीज को "खुलकर अपनी इच्छा जाहिर करने और उस पर अमल करने" का हक भी है. जर्मनी में फिलहाल प्राणघातक दवाओं की खरीद पर प्रतिबंध है.

अदालत ने साफ किया कि केवल अति गंभीर मामलों में ही मरीज को ऐसी दवाएं खरीदने के अधिकार मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा, "यदि अपनी असहनीय जीवन दशा के कारण, वे स्वतंत्र होकर और गंभीरता से जीवन खत्म करने का फैसला करते हैं" और इसके लिए कोई आरामदायक चिकित्सकीय विकल्प नहीं है तो ऐसे रोगी प्राणघातक दवाओं तक पहुंच मिलनी चाहिए.​​​​​​​

(कैसे घटित होती है मृत्यु)

अदालत ने यह फैसला एक बुर्जुग पति की याचिका पर सुनाया. असल में याचिकाकर्ता की पत्नी लंबे समय से बीमार थी. 2004 में पति ने फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर ड्रग्स एंड मेडिकल डिवाइसेज में आवेदन किया. आवेदन के जरिये वो अपनी लकवाग्रस्त और बुरी तरह बीमार पत्नी के लिए जानलेवा दवा खरीदना चाहते थे. पति ने कहा कि उनकी पत्नी खुद अपनी मर्जी से मौत को गले लगाना चाहती है, उसकी तकलीफ इतनी बढ़ चुकी हैं कि एक एक पल भारी पड़ रहा है. लेकिन ऐसी दवा खरीदने की इजाजत नहीं दी गई. फिर यह दंपत्ति स्विट्जरलैंड गया और वहां इच्छामृत्यु के कानूनी अधिकार के तहत 2005 में पत्नी ने जिंदगी को अलविदा कहा. 

पत्नी के निधन के बाद वह व्यक्ति संघीय प्रशासनिक अदालत पहुंचा. लेकिन अदालत ने केस स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि वह खुद पीड़ित नहीं है, लिहाजा उसकी याचिका नहीं स्वीकारी जाएगी. फिर वह शख्स मामले को यूरोपीय मानाधिकार अदालत ले गया. यूरोपीय अदालत ने फैसला उसके हक में सुनाते हुए कहा कि उसे जर्मनी में फैसला पाने का अधिकार है. इस तरह केस फिर लौटकर जर्मनी की संघीय अदालत में पहुंचा. फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में आत्महत्या के लिए दवा देने से इनकार करना गैरकानूनी है. 74 साल के उस बुजुर्ग व्यक्ति के वकील ने फैसले को उनके जैसे कई लोगों के लिए बड़ी राहत बताया है.

(दिल पिघला देते हैं शोक में डूबे जानवर​​​​​​​).

ओएसजे/आरपी (डीपीए,एएफपी,केएनए)