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भारत: फेसबुक पर तलाक?

२१ अगस्त २०१५

भारत के मुसलमानों में पति फोन, एसएमएस संदेश यहां तक कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया साइटों तक पर पत्नियों को तलाक देते आए हैं. एक नई रिपोर्ट दिखाती है कि महिलाएं अब इस चलन के खिलाफ आवाज उठाकर उसमें बदलाव लाना चाहती हैं.

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तस्वीर: Reuters/P.Rossignol

एक नई स्टडी दिखाती है कि भारत की 92.1 फीसदी मुसलमान महिलाएं फटाफट होने वाले मौखिक तलाक पर प्रतिबंध लगवाना चाहती हैं. यह तथ्य भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) नाम के एक संगठन ने जारी किए हैं. बीएमएमए का नेतृत्व मुसलमान महिलाएं ही कर रही हैं जो भारतीय मुसलमानों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं.

देश में कई महिलाओं को उनके तलाक का पता टेलिफोन, टेक्स्ट मैसेज या कई बार तो फेसबुक जैसे सोशल मीडिया साइटों से चल रहा है. तलाक की वजह कभी अच्छा खाना ना पकाना तो कभी कपड़ों और गहनों में अच्छी पसंद ना होना बताया जाता है. इस्लामी कानून में महिला को पुरुष जैसे सारे अधिकार नहीं मिलते हैं, जिसके कारण उसकी स्थिति काफी असुरक्षित बनी रहती है.

भारत में मुसलमान महिलाओं के व्यापक समर्थन की मदद से बीएमएमए जैसे संगठन 'ट्रिपल तलाक' कहे जाने वाले इस नियम पर भारत में प्रतिबंध लगाने की कोशिशों में लगे हैं.

ट्रिपल तलाक की परंपरा

मुसलमानों के धर्मग्रंथ कुरान में किसी पुरुष को अपनी पत्नी से अरबी भाषा का शब्द 'तलाक' तीन बार दोहराकर शादी का बंधन तोड़ने का हक बताया गया है. कई धार्मिक स्कॉलरों ने इसकी व्याख्या में बताया है कि महीने में एक बार ही तलाक बोलना चाहिए ताकि अंतिम बार तलाक बोलने तक लगभग तीन महीने फैसले पर सोचने का भरपूर समय मिले.

पाकिस्तान जैसे कई मुस्लिम देशों में फटाफट तलाक को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है क्योंकि इस्लाम में भी नशे, गुस्से या किसी आवेश में आकर तलाक देने की मनाही है. लेकिन इस पर दुनिया के अलग अलग देशों में काफी भिन्न नियम हैं. भारत जैसे हिंदू बहुल राष्ट्र में ट्रिपल तलाक को लेकर दुनिया में कुछ सबसे सख्त कानून हैं. आज दुनिया भर के लोग इसकी निंदा कर रहे हैं.

बैन करवाने का संघर्ष

कई महिला अधिकार संगठन ऐसे तुरत फुरत तलाक पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते आए हैं. वे धार्मिक अदालतों में इन पुरातन नियमों की और उदारवादी व्याख्या के लिए दबाव बना रहे हैं. अपेक्षा के अनुरूप ही इनके प्रस्ताव को मौलवियों और रूढ़िवादी मुसलमानों की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. वे भी मानते हैं कि महिलाओं के ऊपर इन कानूनों का ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है, लेकिन उनके प्रयास इस परंपरा पर प्रतिबंध लगाने के बजाए सुलह कानूनों को अनिवार्य बनाने पर केंद्रित हैं. कई महिला संगठन सोशल मीडिया पर भी इस परंपरा को बैन करवाने के लिए अभियान चला रहे हैं.

एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में भारत में सभी को अपने धर्म का अनुसरण करने की पूरी आजादी मिली हुई है. बीते कई सालों में सभी धर्मों के ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय स्तर पर समान आचार संहिता लागू करने की मांगें उठी हैं. लेकिन कई अल्पसंख्कों को लगता है कि हिंदू बहुल देश होने के कारण संहिता में बाकी सब पर हिंदू परंपराएं थोपी जा सकती हैं. फिलहाल मुसलमानों के हकों के लिए मुस्लिम पर्सलन लॉ काम करता है, जिसमें मौलवी तलाक जैसे सिविल मुद्दों पर भी इस्लामी कानूनों को लागू करते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रिपल तलाक के कानूनों में जरूरी सुधार लाने के लिए इस पूरी प्रक्रिया में खुद महिलाओं को शामिल किया जाना बेहद जरूरी है, जो कि वर्तमान व्यवस्था में बिल्कुल नदारद है.

केट बोलोंगारो/आरआर