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फिर करीब आते फ्रांस और जर्मनी

१ फ़रवरी २०१४

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद की सुधार नीतियों का समर्थन करती है लेकिन क्या इसका मतलब है कि यूरोप की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक हो जाएंगी.

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EU-Gipfel Francois Hollande und Angela Merke
तस्वीर: Lionel Bonaventure/AFP/Getty Images

फ्रांस और जर्मनी, दोनों ने इस वक्त कुछ ऐसी रणनीतियां लागू की हैं, जिससे वित्तीय संकट के बाद संबंधों में आई कड़वाहट को खत्म किया जा सके. 2008 में शुरू हुए आर्थिक संकट के बाद दोनों देशों की आर्थिक नीतियों में अंतर का पता चला. जर्मनी ने आर्थिक अनुशासन की बात की जबकि फ्रांस के लिए सार्वजनिक खर्चे पर रोक लगाना असंभव था. विश्लेषकों का मानना है कि दोनों देशों के बीच दूसरे विश्व युद्ध के बाद से रिश्ते कुछ ठंडे रहे हैं लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे दोनों सरकारें एक दूसरे के करीब आ रही हैं.

मेर्कोजी नहीं रहा

ब्रसेल्स में यूरोपीय नीति केंद्र में विश्लेषक यानिस एमानूदोलिस ने कहा, "हो सकता है कि दोनों देशों के संबंध सामान्य हो रहे हों. दोनों पक्षों को पता है कि अगले कई सालों तक उन्हें एक दूसरे से मिलना जुलना होगा." 2012 में राष्ट्रपति ओलांद ने देश की कमान संभाली और वादा किया कि वह फ्रांस को आर्थिक परेशानी से मुक्त कराएंगे. इसके बाद से जर्मनी के साथ यूरो संकट को लेकर कोई सहमति नहीं हो पाई. दोनों देशों के नेताओं के बीच संपर्क भी कम हो गया. जब निकोला सार्कोजी फ्रांस के राष्ट्रपति थे, तो जर्मनी की मैर्केल के साथ उनके कूटनीतिक रिश्तों को मेर्कोजी का नाम दिया गया. फिर ओलांद राष्ट्रपति बने और मैर्केल अपने देश में चुनाव और फिर समाजवादी एसपीडी के साथ गठबंधन बनाने में लग गईं.

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सार्कोजी और मैर्केल में अच्छी तालमेल थीतस्वीर: picture-alliance/dpa

मेर्कोलांद की शुरुआत

लेकिन अब जर्मनी दोबारा अपने पड़ोसी के साथ रिश्ते बहाल करना चाह रहा है. ओलांद ने हाल ही में फ्रेंच अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की बात कही है. वह सार्वजनिक खर्चे में 50 अरब यूरो और कॉर्पोरेट वेतनों में 30 अरब यूरो घटाना चाहते हैं. इस नए रवैये का बर्लिन ने स्वागत किया है और कांगो गणराज्य में फ्रांसीसी सैनिकों की कार्रवाई का सहयोग करने का प्रस्ताव रखा है.

जर्मन अंतरराष्ट्रीय संबंध परिषद की क्लेयर देमेस्मे कहती हैं कि ऐसा तो होना ही था, क्योंकि दोनों देश सामाजिक असमानता को कम करना चाहते हैं. ब्रसेल्स के यानिस एमानूदोलिस कहते हैं कि जर्मनी और फ्रांस को यूरो क्षेत्र में आर्थिक प्रशासन को बेहतर करने के लिए साथ आना ही होगा लेकिन इसके लिए दोनों देशों को काफी लेनदेन करनी होगी. बैंकों का एकीकरण, वित्तीय ट्रैंसैक्शन टैक्स के अलावा दोनों देशों के अपने अंदरूनी हालात भी अलग हैं.

फ्रांस में युवा बेरोजगार है, वहां की अर्थव्यवस्था प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं और सरकारी ढांचा बहुत फैला हुआ है. जर्मनी में अंदरूनी ग्राहकों की मांग को लेकर चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. फ्रांस और जर्मनी के बीच रिश्ता अहम हो सकता है, खास कर ऐसे वक्त में जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ के साथ अपने रिश्तों के बारे में गंभीरता से सोच रहा है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपने देश में ईयू विरोधियों के दबाव में हैं जो यूरोपीय संघ के संधियों में बदलाव चाहता है. फ्रांस ने इन बदलावों को प्राथमिकता देने से इनकार किया है जिस वजह से कैमरन अब जर्मनी से समर्थन लेने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में फ्रांस और जर्मनी का साथ आना ब्रिटेन के लिए फायदेमंद हो सकता है.

एमजी/एजेए (एफपी, डीपीए)

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