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ममता के लिए चुनौती हैं जंगलमहल के चुनाव

प्रभाकर, कोलकाता४ अप्रैल २०१६

पश्चिम बंगाल के माओवाद-प्रभावित जंगलमहल इलाके में पहले चरण के चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की साख दांव पर है. इस चरण का मतदान दो हिस्सों में होना है.

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Mamata Banerjee indische Politikerin
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

पहले हिस्से में सोमवार को 18 सीटों के लिए मतदान हो रहा है, जबकि दूसरे हिस्से में 11 अप्रैल को बाकी 31 सीटों पर वोट पड़ेंगे. यह 18 सीटें राज्य की राजनीति में तो अहम हैं ही, साथ ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पांच साल के कार्यकाल और उनके दावों को परखने की कसौटी साबित हो सकते हैं. बीते विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को इनमें से 10 सीटें मिली थीं. इन 18 सीटों के लिए लगभग पांच हजार मतदान केंद्र खोले गए हैं. यहां 133 उम्मीदवार मैदान में हैं.

क्या है जंगलमहल

राज्य में बांकुड़ा, पुरुलिया और पश्चिम मेदिनीपुर जिले के जंगलवाले इलाकों को आम बोल-चाल की भाषा में जंगलमहल कहा जाता है. यह जगह झारखंड की सीमा से सटी है. आज जिन 18 सीटों पर मतदान हो रहा है, उनमें से 13 माओवादियों के गढ़ में है. यही वजह है कि चुनाव आयोग ने इलाके में सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम किए हैं. सुरक्षा बलों की 260 कंपनियां इलाके में तैनात हैं. इसके अलावा दो हेलीकाप्टरों के जरिये इलाके की निगरानी की जा रही है.

सुरक्षा के लिहाज से इन 13 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान तय समय से दो घंटे पहले यानि शाम चार बजे ही खत्म हो जाएगा. अगले दौर में 11 अप्रैल को जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें से भी ज्यादातर माओवाद प्रभावित इलाके में ही हैं. हालांकि माओवादी नेता किशनजी की सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मौत के बाद इलाके में माओवादी गतिविधयों पर काफी हद तक अंकुश लगा है. लेकिन हाल में माओवादियों के दोबारा संगठित होने की खबरों ने सुरक्षा एजंसियों की चिंता बढ़ा दी है. माओवादियों ने पिछली बार लोगों से लेफ्टफ्रंट उम्मीदवारों को हराने की अपील की थी. उसका फायदा तृणमूल को मिला. लेकिन अबकी संगठन के बचे-खुचे कार्यकर्ता सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ अभियान चला रहे हैं.

आरोप-प्रत्यारोप

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी इन सीटों की अहमियत मालूम है. यही वजह है कि उन्होंने चुनाव प्रचार के पहले दौरे में इलाके में ताबड़तोड़ प्रचार करते हुए एक दर्जन से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया. उन्होंने इलाके में कोई एक दर्जन रैलियां की हैं. ममता ने उन रैलियों में इलाके में माओवादी गतिविधियों पर अंकुश लगा कर शांति बहाल करने का श्रेय लिया है.

ममता अपनी रैलियों में लगातार कहती रही हैं कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने से पहले इलाके में माओवादियों के हाथों 500 लोग मारे गए थे. लेकिन वर्ष 2012 के बाद इलाके में कोई भी हत्या नहीं हुई है. माओवादी हिंसा की याद दिलाते हुए उनका कहना था कि अगर सीपीएम सत्ता में लौटी, तो इलाका एक बार फिर अशांत हो उठेगा. मुख्यमंत्री का दावा है कि सरकार के प्रयासों से इलाके में शांति बहाल हुई है. ममता कहती हैं कि तृणमूल कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद माओवादी हिंसा पर तो अंकुश लगा ही है, इलाके का चौतरफा विकास भी हुआ है.

बेरोजगारी

अपने चुनाव अभियान के दौरान ममता इलाके के विकास के लिए शुरू की गई योजनाएं गिनाती रही हैं. इनमें सबूज साथी, कन्याश्री और युवाश्री जैसी परियोजनाओं के अलावा इलाके के लोगों को दो रुपये प्रति किलो चावल मुहैया कराना शामिल है. इलाके के वोटरों को लुभाने के लिए पार्टी ने स्थानीय आदिवासियों की अलचिकी भाषा में भी अपना चुनाव घोषणापत्र जारी किया है. ऐसे में यह चरण तय करेगा कि उनके दावे में कितना दम है.

दूसरी ओर, विपक्ष ने इलाके के पिछड़ेपन व बेरोजगारी को अहम मुद्दा बनाया है. विपक्ष का कहना है कि ममता का दावा खोखला है. इलाके के ज्यादातर लोगों तक अब भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचा है. विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं कि महज दो-एक इलाकों में कागजों पर शुरू की गई परियोजनाओं से लोगों को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता. जंगलमहल के ज्यादातर इलाके अब भी पिछड़े हैं और वहां बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है.

बीते चुनाव में कांग्रेस के साथ तालमेल के साथ मैदान में उतरी तृणमूल ने इनमें से 10 सीटें जीती थीं. जंगलमहल इलाका राज्य के उन चुनिंदा इलाकों में शामिल है जहां अब भी कांग्रेस का जनाधार है. खुद कांग्रेस को तो दो ही सीटें मिली थी लेकिन उसकी सहायता से तृणमूल को कई सीटें मिल गई थीं. लेकिन कांग्रेस का हाथ अबकी वाममोर्चा के साथ है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ममता व उनकी पार्टी इस चुनौती पर कितनी खरी उतरती हैं.