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पिता का नाम बताना जरूरी नहीं

७ जुलाई २०१५

एक ऐतिहासिक आदेश में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक अविवाहित महिला को अपने बच्चे का कानूनी अभिभावक बनने के लिए बच्चे के पिता के नाम या सहमति की कोई जरूरत नहीं है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अदालत ने यह फैसला एक ईसाई महिला की याचिका पर सुनाया. अपने बच्चे के संरक्षकता के लिए महिला के आवेदन को पहले एक निचली अदालत और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रमजीत सेन और अभय मनोहर सपरे की एक खंडपीठ ने कहा कि एक अविवाहित मां को उसके बच्चे के पिता का नाम बताने पर जोर देना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है. भारत में वर्तमान कानून के अनुसार एक महिला को अपनी संतान को पालने के लिए बच्चे के पिता की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य होता है.

सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का महिला अधिकार के समर्थकों ने स्वागत किया. वकील करुणा नंदी ने ट्वीटर पर लिखा है, "संरक्षकता कानूनों में समानता लाए जाने की शुरूआत करने की जरूरत थी."

भारत में आज भी कई संस्थाओं, स्कूलों और आवेदन पत्रों में पिता का नाम बताना जरूरी होता है. अदालत ने समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि भारत में अविवाहित ईसाई मांए समकक्ष हिंदुओं की तुलना में कमजोर स्थिति में हैं. हिंदू मांओं को केवल जन्म देने के कारण ही शादी के बिना पैदा हुए बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक माना जाता है.

एपी/आईबी