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बच्चों को बुद्धू बना सकता है टूथपेस्ट

१८ फ़रवरी २०१४

हर रोज दांत साफ करने वाले टूथपेस्ट में जो फ्लोराइड होता है, उससे बच्चों के दिमाग पर खराब असर हो सकता है. दो रिसर्चरों की टीम का कहना है कि रोजमर्रा की कई चीजों से विकास प्रभावित हो सकता है.

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Symbolbild Zähneputzen
तस्वीर: mma23 - Fotolia.com

हाल ही में फ्रांस में जारी एक रिपोर्ट में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ढेरों औद्योगिक उत्पादों के खतरों से आगाह किया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि टूथपेस्ट में पाया जाने वाले फ्लोराइड का बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के फिलिपे ग्रांजियां और न्यूयॉर्क के आइकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के फिलिप लैंड्रिगन ने पाया कि 2006 में बच्चों के दिमागी विकास में रुकावट डालने वाले रसायनों की संख्या छह थी जो अब दोगुनी हो चुकी है.

साल 2006 की एक जांच में इन्होंने इथेनॉल, पारा और सीसा सहित छह तत्वों का पता लगाया, जिससे बच्चों के मस्तिष्क पर असर पड़ सकता है. अब छह और नुकसानदायक रसायनों का पता चला है. इनमें मैंगनीज और फ्लोराइड भी हैं. इन रसायनों का आम इस्तेमाल होता है. कीटनाशक दवाइयों से लेकर ड्राइक्लीनिंग और आग पर काबू पाने के लिए इस्तेमाल में आने वाले उपकरणों में ये रसायन मिलते हैं. दांतों को भरने या फिर कई देशों में पानी की सफाई में फ्लोराइड का इस्तेमाल होता है.

मस्तिष्क के विकास में रुकावट आने से ऑटिज्म या डिस्लेक्सिया जैसी समस्या हो सकती है. विशेषज्ञों की टीम ने लांसेट न्यूरोलॉजी मेडिकल जर्नल में लिखा है कि इस बात के 'पक्के सबूत' हैं कि रसायनों और मस्तिष्क से जुड़ी इन बीमारियों में गहरा संबंध है. लांसेट में प्रकाशित समीक्षा में कहा गया, "हमारी सबसे बड़ी चिंता है कि दुनिया भर में बच्चे कई खतरनाक अनजाने रसायनों की चपेट में आ रहे हैं. ये बड़ी खामोशी से उनकी बुद्धिमत्ता को घटा रहे हैं, व्यवहार को प्रभावित करते हैं, भविष्य की उपलब्धियों को सीमित करते हैं और इस तरह पूरे समाज को नुकसान पहुंचाते हैं. खास तौर पर विकासशील देशों में असर कहीं ज्यादा है."

Zahnbürste und Zahnpasta
तस्वीर: Fotolia/dkimages

ये विशेषज्ञ अपील कर रहे हैं कि बाजार में मौजूद और नए नए उत्पादों के साथ प्रवेश कर रहे सभी औद्योगिक रसायनों की जांच हो. वहीं कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद नहीं हैं और नतीजों पर अभी पूरा भरोसा ठीक नहीं. उनका मानना है कि इन ढेरों मानसिक बीमारियों का औद्योगिक रसायनों के साथ कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हो सका है. ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की महामारी विज्ञानी जीन गोल्डिंग ने इन दोनों रिसर्चरों पर 'डरावने' बयान देने का आरोप लगाया.

आरआर/एजेए (एएफपी)

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