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बजट कारों का हब बन सकता है भारत

१४ मार्च २०१७

भारत के टाटा मोटर्स और जर्मनी की फोक्सवागेन कंपनियों ने सहयोग की पुष्टि की है. जर्मन ऑटोमोबिल एक्सपर्ट फर्डिनांड डूडेनहोएफर का कहना है कि भारत दुनिया भर की कार कंपनियों के लिए हॉट स्पॉट बनने वाला है.

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Karl Slym Tata Motors Archiv 2013
तस्वीर: picture-alliance/dpa

एक ओर टाटा मोटर्स और फोक्सवागेन ने इन खबरों की पुष्टि की है कि वे विकास के क्षेत्र में सहयोग करेंगे तो जापान की टोयोटा और सुजूकी कंपनियों के प्रमुखों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी साझा योजनाओं पर चर्चा की है. दोनों कंपनी प्रमुखों ने प्रधानमंत्री के साथ अपनी साझेदारी और भावी तकनीकी विकासों की चर्चा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक योजना में मेक इन इंडिया का अहम स्थान है.

दुनिया की तीन प्रमुख कार कंपनियों और भारत के टाटा मोटर्स की योजनाओं से भारत में कार उद्योग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. फोक्सवागेन और टाटा मोटर्स ने सामरिक साझेदारी की संभावना का पता लगाने के लिए सहमति पत्र पर दस्तखत के बाद कहा है कि दोनों कंपनियां गाड़ी के पुर्जे और भारतीय तथा ओवरसीज बाजार के लिए गाड़ियों के मॉडल विकसित करना चाहती हैं. फोक्सवागेन की ओर से इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व श्कोडा कंपनी करेगी. चीन में बिक्री के हिसाब से पहले नंबर पर चल रहा फोक्सवागेन डीजल कांड से उबरने के लिए नए बाजारों की तलाश में है और इलेक्ट्रिक कारों की मदद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना दबदबा बनाये रखना चाहता है.

Deutschland Automobilexperte  Ferdinand Dudenhöffer
प्रो. डूडेनहोएफरतस्वीर: picture alliance/dpa/B. Thissen

पिछले 17 सालों में भारत में ऑटोमोबाइल बाजार 10 प्रतिशत के औसत से बढ़ा है. जर्मनी की डुइसबर्ग एसेन यूनिवर्सिटी में ऑटोमोटिव रिसर्च सेंटर के प्रमुख प्रो. फर्डिनांड डूडेनहोएफर का कहना है कि भारत और भारत के ऑटोमोबाइल बाजार की तुलना पड़ोसी चीन की आर्थिक गत्यात्मकता के साथ नहीं की जा सकती, लेकिन वह तेजी से विकसित हो रहा है. भारत का कार बाजार न सिर्फ अपने आकार में बल्कि ग्राहकों की मांगों के लिहाज से भी अलग है. वे कहते हैं, "भारत के ग्राहक चीन की तुलना में कम आय के कारण भी बजट कार को प्राथमिकता देते हैं, जबकि चीनी ग्राहकों की मांग ज्यादा है, इंटरनेट एप्लिकेशन और नेटवर्किंग सुविधाओं के मामले में भी."

Volkswagen SEDRIC
फोक्सवागेन सेड्रिकतस्वीर: Volkswagen AG

साल 2000 में भारत में सिर्फ 7 लाख कारें बिकीं, जबकि 2004 तक यह आंकड़ा 10 लाख को पार कर गया. पिछले साल करीब 30 लाख कारों की बिक्री के साथ भारत का कार बाजार जर्मनी के कार बाजार के बराबर हो गया है. अगले तीन साल में वह जर्मन बाजार को पीछे छोड़ देगा. अनुमान है कि भारत 2025 में 47 लाख कारों की बिक्री के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार होगा. जर्मन बाजार के साथ भारत के कार बाजार का अंतर यह है कि भारत में बिकी दो तिहाई कारें लो बजट कारों की श्रेणी में आती हैं जिसका मतलब 3 लाख रुपये से कम की कारें हैं. प्रो. डूडेनहोएफर कहते हैं कि जो भारत में कामयाब होना चाहता है उसे बजट कार चाहिए. वे कहते हैं, "यही वजह है कि मारुति सूजुकी 47 फीसदी हिस्से के साथ बाजार का बेताज बादशाह है."

भारत में टाटा नैनो की विफलता ने दिखाया है कि ग्राहकों के लिए बजट कार का मतलब सस्ती कार नहीं है. दूसरी ओर सरकार जहरीली गैसों की निकासी और सुरक्षा के नियमों को सख्त बना रही है. इसका आर्थिक बोझ कार कंपनियों को उठाना पड़ रहा है. ऑटोमोबाइल विशेषज्ञों का मानना है कि खासकर बजट कारों के लिए बिक्री की संख्या बहुत बड़ी भूमिका निभाती है. सालाना 300,000 कारों के उत्पादन की क्षमता के बिना बजट कारों का औद्योगिकरण संभव नहीं है. लेकिन कई कंपनियों के बीच सहयोग और ज्वाइंट वेंचर की मदद से इस बाधा को दूर किया जा सकता है. जापानी कंपनी टोयोटा, फ्रांस की पीजो और सिट्रोएन का 2002 में ज्वाइंट वेंचर टीपीसीए की मदद से चेक गणतंत्र के कोलिन में छोटी कारों का प्रोजेक्ट कामयाब रहा था. प्रोफेसर डूडेनहोएफर का कहना है कि भारतीय बाजार में इस तरह का ज्वाइंट वेंचर कामयाबी ला सकता है.