1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बदल रही है पाकिस्तान पर भारत की नीति

कुलदीप कुमार१५ सितम्बर २०१६

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया है और पाकिस्तान पर वहां मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंघन का आरोप लगाया है. कुलदीप कुमार का कहना है कि भारत ने अब तक बरती जा रही झिझक को तोड़ दिया है.

https://p.dw.com/p/1K34S
Pakistan Indischer Ministerpräsident Narendra Modi zu Besuch in Lahore
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Press Information Bureau

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर भारत ने पाकिस्तान को सख्त संदेश भेजा है. भारत ने पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा व्यापक पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाने के साथ ही अपने नियंत्रण वाले कश्मीर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के लिए भी पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिये जाने को जिम्मेदार ठहराया है. यहां यह याद रखना जरूरी है पिछले माह स्वाधीनता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार बलूचिस्तान का जिक्र किया था और इस मामले में अभी तक बरती जा रही झिझक को तोड़ दिया था. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारतीय प्रतिनिधि ने जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक हड़पने की पाकिस्तानी महत्वाकांक्षा और 1989 के बाद से लगातार आतंकवादी भेजने की घटनाओं का भी उल्लेख किया और आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान के विवादास्पद रेकॉर्ड को भी रेखांकित किया. इस सबसे यह स्पष्ट हो गया कि मोदी सरकार पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति में भारी फेरबदल करने का निर्णय कर चुकी है और उसे विश्वास हो चला है कि नरमी से काम लेना व्यर्थ है.

दरअसल बलूचिस्तान का इतिहास भी काफी विवादों से घिरा और पेचीदा है. ब्रिटिश शासन के तहत वह पूरी तरह से ब्रिटिश भारत में अंतर्भुक्त नहीं हुआ था और उसे अनेक ऐसे अधिकार प्राप्त थे जो अन्य रियासतों को प्राप्त नहीं थे. पाकिस्तान बनने के बाद लगभग एक साल तक उसका विलय भी नहीं हुआ था. बलूच नेताओं को हमेशा यह शिकायत रही है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत होने और प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न होने के बावजूद केन्द्रीय सरकार ने हमेशा उसके विकास की अनदेखी की है और उसका पूरा जोर उसके प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर रहा है. अभी भी वहां चीन के सहयोग से एक आर्थिक कॉरीडोर बनाया जा रहा है. समय-समय पर बलूच सशस्त्र विद्रोह करते रहे हैं जिन्हें पाकिस्तानी सेना बहुत निर्ममता के साथ कुचलती रही है और इस काम में उसने हवाई जहाजों और टैंकों तक का इस्तेमाल किया है. अभी भी बलूचिस्तान में विद्रोह भड़कता रहता है और अनेक बलूच नेता विदेश में रहकर बलूचिस्तान की आजादी के पक्ष में प्रचार करते रहते हैं और समर्थन जुटाने की कोशिश करते रहते हैं. जाहिर है कि इस बारे में वे भारत की ओर उम्मीद की निगाह से देखते हैं लेकिन भारत के लिए सक्रिय रूप से कुछ करना बहुत संभव नहीं है, हालांकि पाकिस्तान का हमेशा से यह आरोप रहा है कि ईरान और अफगानिस्तान के रास्ते भारत वहां के विद्रोहियों को हर तरह की मदद देता रहा है.

Baloch Aktivisten in Leipzig NEU
जर्मनी में बलोच प्रदर्शनकारीतस्वीर: Jawad Muhammad

इस संबंध में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के 2013 के एक वीडियो का उल्लेख भी किया जाता है जिसमें एक जगह भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को जता दिया जाना चाहिए कि यदि भारत में मुंबई जैसी एक और आतंकवादी घटना हुई तो बलूचिस्तान उसके हाथ से निकल जाएगा. हालांकि उस समय डोभाल सरकार में नहीं थे, लेकिन इससे उनके विचारों की दिशा का आभास तो मिलता ही है. लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि अब स्थिति 1971 जैसी नहीं है जब बांग्लादेश के उदय में भारत ने भूमिका निभाई थी. इस समय पाकिस्तान परमाणु हथियारों से लैस देश है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी साख में ख़ासी कमी आई है क्योंकि जैसा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारतीय प्रतिनिधि ने भी कहा, अब बड़ी संख्या में दुनिया के देश आतंकवाद के प्रचार-प्रसार में पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकार करने लगे हैं.

अभी तक पाकिस्तान ही कश्मीर के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया करता था. लेकिन अब भारत ने भी बलूचिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू कर दिया है. पाकिस्तान की छवि को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि उसके पक्ष में अंतर्राष्ट्रीय राय तैयार हो पाएगी. भारत के इस कदम का द्विपक्षीय वार्ताओं पर भी असर पड़ेगा. यूं भी अब मोदी सरकार इस मूड में नहीं लगती कि वह आतंकवाद के मुद्दे को वार्ता के केंद्र में रखे बिना सार्थक और समग्र वार्ता के लिए तैयार होगी. हाल ही में इस्लामाबाद में सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन के अवसर पर भी दोनों देशों के बीच ख़ासी कटुता पैदा हो गई थी. इसलिए आने वाले दिनों में दोनों के बीच कश्मीर और बलूचिस्तान के मुद्दों पर प्रचार करने की होड़ बनी रहेगी. जब तक चीन के आर्थिक हितों पर आंच नहीं आती, उसके इस विवाद में उलझने की संभावना बेहद कम है.