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'बर्बादी के कगार पर है अमेरिकी अर्थव्यवस्था'

१३ सितम्बर २०१०

दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी बज रही है. घंटी कई अर्थशास्त्री बहुत जोर से बजा रहे हैं. उनका कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भरभरा कर गिर जाने के कगार पर है क्योंकि बेरोजगारी और घाटा बढ़ता जा रहा है.

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निराश हैं अमेरिकी!तस्वीर: AP

अमेरिकी अर्थव्यवस्था के काले अध्याय का एलान करने वालों में अर्थशास्त्री नोरिएल रॉबिनी भी हैं. रॉबिनी घरों के कर्ज से जुड़े संकट और रीयल एस्टेट के बुलबुले के फूटने और आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी करने वाले शुरुआती लोगों में से हैं. इसी महीने की शुरुआत में इटली में एक आर्थिक सम्मेलन में उन्होंने कहा, "अमेरिका के पास गोलियां खत्म हो गई हैं. इस वक्त थोड़ा सा भी धक्का उसे दोबारा आर्थिक मंदी की ओर धकेल सकता है."

अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद खतरों की चेतावनी देने वालों में कई ऐसे अर्थशास्त्री भी हैं जो मीडिया की चकचौंध से दूर रहकर काम कर रहे हैं. बॉस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लॉरेंस कॉटलिकॉफ ने 1980 के दशक में सरकारी वित्तीय घाटे की चेतावनी दी थी. पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक प्रकाशन में उन्होंने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के खराब दौर की चेतावनी दी. इसका आधार उन्होंने अमेरिका और चीन के बीच के व्यापार संबंधों को बनाया है, जिसमें 843 अरब डॉलर का अमेरिकी ट्रेजरी फंड भी शामिल है.

आईएमएफ के वित्त और विकास रिव्यू में उन्होंने लिखा, "अमेरिका और चीन के बीच एक छोटा सा व्यापारिक झगड़ा लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि बाकी लोग ट्रेजरी फंड को बेच देंगे. अगर ऐसा कुछ हुआ तो लोग सरकारी बॉन्ड को बेचने लगेंगे. इस वजह से लोग बैंकों से पैसा निकाल लेंगे और खरीदारी कम कर देंगे." कोटलिकॉफ के मुताबिक ऐसे हालात पैदा करने वाले और भी कई तत्व मौजूद हैं.

अमेरिका में भी लोग मंदी को लेकर डरे हुए हैं. इसी हफ्ते स्ट्रैटिजीवन इंस्टिट्यूट ने एक सर्वे कराया जिसमें 65 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें लगता है देश में एक और बार आर्थिक मंदी आएगी. वॉल स्ट्रीट जनरल और एनबीसी के एक सर्वे में 65 फीसदी लोगों ने कहा कि अमेरिका गिरावट की ओर है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने एक संपादकीय लेख में लिखा है, "यह सच है. आज की आर्थिक समस्याएं चक्रीय नहीं, ढांचागत हैं." लेख में डेविड ब्रूक्स लिखते हैं कि अमेरिका दुनिया में अपना आधार खो रहा है और यह कुछ वैसा ही है जैसे एक सदी पहले ब्रिटिश साम्राज्य के साथ हुआ था.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एस गौड़