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बलात्कार पीड़ित के गर्भपात की मांग खारिज

आईबी/एमजे१७ अप्रैल २०१५

गुजरात हाई कोर्ट ने एक बलात्कार पीड़ित महिला की गर्भपात की मांग खारिज करते हुए कहा है कि कानून 20वें हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति नहीं देता.

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तस्वीर: picture-alliance/PIXSELL/Puklavec

24 साल की इस युवती ने हाल ही में अदालत से गर्भपात की अनुमति मांगी थी. महिला का कहना है कि उसका अपहरण कर छह महीने तक उसे बंदी बना कर रखा गया और उसके साथ बलात्कार किया गया. जब तक वह अपहरणकर्ताओं की आंखों में धूल झोंक कर भाग निकलने में कामयाब हो पायी, वह कई महीने गर्भवती हो चुकी थी. इस कारण वह समय रहते गर्भपात नहीं करा सकी. सूरत की रहने वाली महिला विवाहित है और दो बच्चों की मां है.

अदालत ने महिला के स्वास्थ्य और कानून को ध्यान में रखते हुए 28वें हफ्ते में गर्भपात कराने की मांग को खारिज कर दिया है और महिला की सेहत का ध्यान रखे जाने और बच्चे के सुरक्षित जन्म को सुनिश्चित किए जाने के आदेश दिए हैं. अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस जेपी पर्दीवाला ने कहा, "उन्हें (महिला को) साहस दिखाते हुए अपनी गर्भावस्था को जारी रखना होगा और जब वक्त आएगा, तब बच्चे को जन्म भी देना होगा. मैं इस बात को अच्छी तरह समझता हूं कि एक जज के लिए अपने फैसले में ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन आखिरकार याचिकाकर्ता को आने वाले मुश्किल दिनों का सामना करना होगा. आपको भले ही यह कानून जितना भी सख्त लगे, यह कानून है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए." जज ने कहा कि पीड़िता को यह समझना होगा कि इस समय गर्भपात करने से वह खुद अपने जीवन को भी खतरे में डाल देगी.

भ्रूण को जीने का हक

फैसले के बाद महिला ने कहा, "मैं और मेरे दोनों बच्चे, मेरे पति और उनके परिवार के साथ रहते हैं. मेरे परिवार में कोई भी यह बच्चा नहीं चाहता था, इसीलिए हम अदालत के पास आए. लेकिन अगर अदालत को लगता है कि गर्भपात नहीं हो सकता तो हम कानून का पालन करेंगे." अपनी याचिका में महिला ने कहा था कि उसके पति को यह बच्चा मंजूर नहीं है और अगर वह उसे जन्म देती है, तो पति उसे घर से निकाल देगा.

बलात्कार के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए जस्टिस पर्दीवाला ने कहा, "मैं यह बात समझता हूं कि एक महिला के लिए अपनी कोख में उस बच्चे को रखना, जो कि बलात्कार का नतीजा है, ना ही केवल बहुत दुखद है, बल्कि अपमानजनक, भयावह और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से खौफनाक है. खास कर भारतीय समाज में आप तिरस्कार और घृणा का मुद्दा बन जाते हैं. यह दुर्भाग्यवश है." जज ने कहा कि इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए भी वे इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि यदि 28वें हफ्ते में गर्भपात होता है, तो एक जीवित बच्चे का जन्म होगा. उन्होंने कहा कि कानूनी दृष्टि से भ्रूण को जीने का हक है और वह छीना नहीं जा सकता.

महिला के बलात्कार के मुद्दे में सात में से तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. अदालत ने पुलिस को आदेश दिए हैं कि बाकी चार आरोपियों को जल्द से जल्द हिरासत में लिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि महिला के साथ, उसके परिवार की ओर से भी, किसी तरह का उत्पीड़न ना हो.