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बाढ़, भूकंप और तेल रिसाव से घिरा रहा 2010

२२ दिसम्बर २०१०

ज्वालामुखी की राख हो या तेल का बहाव. कुदरत ने बार बार इनसान को बताया कि उससे ज्यादा छेड़खानी भारी पड़ती है. साल 2010 में पर्यावरण से जुड़े कुछ मुद्दों पर डालते हैं नजर.

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ज्वालामुखी की राखतस्वीर: AP

12 जनवरी 2010

का दिन हैती में शाम के पांच बजने को थे. लोग रोजमर्रा के काम निपटा रहे थे कि 35 सेंकड में 7.0 की तीव्रता वाले एक झटके ने पूरे देश की तस्वीर बदल दी. पहले से ही गरीबी और जिंदगी की मुश्किलों से जूझते कैरेबियाई देश हैती के कई शहर भूकंप के कारण भरभरा कर गिर गए. राजधानी पोर्ट ऑफ प्रिंस से 15 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में भूकंप का केंद्र था. इस भयावह भूकंप के तुरंत बाद 5.0 और 5.9 की तीव्रता वाले झटके महसूस किए गए. भूकंप से 2 लाख 30 हजार लोगों की मौत हो गई. मलबे के ढेर से कभी कभार सुनाई दे जाती धड़कनें जिंदगी का सबूत देती रहीं. जनवरी के बाद पूरा साल बीत गया है लेकिन भूकंप से बेघर हुए सभी लोग अभी तक घरों में नहीं लौट सकें हैं. अभी भी काम जारी है.
Flash-Galerie Erdbeben in Haiti
तस्वीर: AP

अप्रैल

15 अप्रैल

के दिन आइसलैंड का आयाफ्यालायोकूल ज्वालामुखी फटने के कारण आयरलैंड सहित, ब्रिटेन और स्केंडेनेवियाई देशों की उड़ानों को रद्द कर दिया गया. इसके बाद वातावरण में करीब सात आठ दिन राख का कोहराम जारी रहा. यूरोप से दुनिया भर में जाने वाली फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं. एयरलाइन्स को भारी नुकसान हुआ. इसके बाद 9 मई और 17 मई को फिर से इस ज्वालामुखी ने राख उगली लेकिन तब तक एयरलाइन्स इस आपदा से निपटने के लिए लैस हो गई थीं.

20 अप्रैल

के दिन मेक्सिको की खाड़ी में जो विस्फोट हुआ उसने अमेरिका की राजनीति में हलचल मचा दी और दुनिया भर के पर्यावरणवादियों की भौंहें चढ़ी रहीं. एक विस्फोट के बाद डीपवॉटर होरिजन नाम के तेल के कुएं में आग लग गई और दो दिन बाद यह मेक्सिको की खाड़ी में डूब गया.

इसके बाद मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी तेल दुर्घटना का साक्षी बना साल 2010. तेल के कुएं से रिसता तेल बहता जा पहुंचा अमेरिका के लुइजियाना, अलाबामा और मिसीसिपी फ्लोरिडा, टैक्सास के तट पर यानी दुर्घटना स्थल से करीब 160 किलोमीटर दूर. लुइजियाना के तट पर गर्मियों में दुनिया भर से कई तरह के पक्षी आते हैं, अपना घोंसला बनाते हैं. इन तटों पर तेल रिसाव के कारण कई पक्षियों के घरौंदे खत्म हो गए. पर्यावरणवादियों का कहना है कि कई साल तक अब यहां पक्षी नहीं रहेंगे.

मई के आखिर में ब्रिटिश पेट्रोलियम ने टॉप किल अभियान चलाया ताकि तेल का रिसाव रुके लेकिन यह अभियान फेल हो गया. इसके बाद स्टेटिक किल अभियान की शुरुआत की गई. एक रिलीफ वेल बनाया गया. पांच महीने बाद 19 सितंबर में आखिरकार वो दिन आया जब रिलीफ वेल तैयार होने के बाद, पुराने कुएं को पूरी तरह से सील करने का दावा किया गया.

NO FLASH Barack Obama USA Ölpest Golfküste
तस्वीर: AP

पूरी प्रक्रिया के दौरान अमेरिका ब्रिटेन और बीपी कंपनी के बीच आरोप प्रत्यारोपों का दौर चलता रहा. दुर्घटना की जांच में सामने आया कि बीपी की गलती के कारण यह दुर्घटना हुई. 44 लाख बैरल तेल, 10 अरब डॉलर तेल सफाई का खर्च और कई सालों तक नहीं भरी जा सकने वाली पर्यावरण की हानि, सागर की नाजुक पारिस्थितिकी का घोर नुकसान. इतनी साफ सफाई के बावजूद दुर्घटना के आठ महीने बाद भी मछली पकड़ने के जाल में कच्चे तेल के टार बॉल्स आ ही रहे हैं.

जुलाई2010

जुलाई 2010

का महीना रूस के लिए एक सदी के बाद भारी गर्मी ले कर आया. सर्दियों में -20 डिग्री तक गिरने वाला पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा था और लोगों को भीषण गर्मी झेलनी पड़ रही थी. जुलाई के अंतिम सप्ताह में रूस के जंगलों में सूखे के कारण आग लगनी शुरू हुई. देखते देखते यह ऐसी फैली कि तीन दिन के अंदर 2 अगस्त 2010 रूस के 7 जिलों में आपात काल लगा दिया गया. आग का कहर 20 अगस्त तक जारी रहा. रूस में लगी इस आग ने 50 लोगों की जान ली, कई गांव तबाह किए, खड़ी फसलें जला दीं और 20 हजार हेक्टेयर की जमीन काली कर दी.
NO FLASH Waldbrände in Russland
तस्वीर: picture alliance/dpa

इस आग के कारण रूस को पहली बार गेहूं आयात करना पड़ा. साथ ही यह भी चिंता पैदा हुई कि सामान्य तौर पर ठंड में निष्क्रिय रहने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ कहीं गर्मी और आग के कारण हवा के जरिए दूसरे राज्यों में न फैल गए हों. वहीं दो बार ऐसा हुआ कि आग रूस के परमाणु संस्थान के आस पास पहुंच गई. लेकिन हालात समय से पहले काबू में कर लिए गए.

जुलाई का महीना जहां रूस में आग से जल रहा था वहीं पाकिस्तान में मॉनसून की बारिश ने कहर मचा रखा था.

29 जुलाई

को पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी हिस्से में भारी बारिश शुरू हुई. देखते देखते इसने पंजाब प्रांत को भी अपने शिकंजे में ले लिया. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के हिसाब से कम से कम 1,600 लोगों की इसमें मौत हो गई. 7लाख 22 हजार से ज्यादा घर तबाह हो गए. कई परिवारों की रोजी रोटी छिन गई. खेत तबाह हो गए. पहले ही गरीबी और आतंक से जूझ रहे पाकिस्तान के कई शहरों में मूलभूत संरचना पूरी तरह खत्म हो गई.
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तस्वीर: AP

अगस्त2010

8 अगस्त के दिन मुंबई के बंदरगाह के पास एमएससी चित्रा और एमवी खलीजा नाम के दो मालवाहक जहाज टकरा गए जिसके बाद चित्रा जहाज के 2,600 टन तेल में से 500 टन समंदर में रिस गया. गिरे हुए कम से कम 31 कंटेनर ऐसे थे जिनमें खतरनाक रासायनिक पदार्थ थे. इनमें ऑर्गेनो फॉसफोरस पेस्टिसाइड्स, सोडियम हाइड्रोक्लोराइड और पाइरेथ्रोइड पेस्टिसाइड्स शामिल हैं.

प्रदूषित पानी का खतरा इतना बढ़ा कि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के अधिकारियों से कहा गया कि वे मुख्य परमाणु प्रतिष्ठान में कूलिंग के लिए समंदर के पानी का इस्तेमाल न करें.

दुर्घटना के बाद कुछ दिन महाराष्ट्र के तटीय जिलों को हाई अलर्ट पर रखा गया क्योंकि तेल का रिसाव अलीबाग और अन्य शहरी इलाकों तक फैल गया.

अक्तूबर2010

इंडोनेशिया में एक साथ दो प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आने से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इनमें से 272 लोग सुनामी में मारे गए. दो दर्जन से अधिक लोग मेरापी ज्वालामुखी की भेंट चढ़ गए. इंडोनेशिया का सुमात्रा द्वीप एक बार फिर विनाशकारी समुद्री लहरों सुनामी की चपेट में आ गया. देर रात समुद्र में आए जबरदस्त भूकंप के कारण उठी सुनामी ने समुद्र तट से 600 मीटर अंदर तक के इलाके में जमकर कहर बरपाया. लगभग 10 मीटर ऊंची समुद्री लहरों में 272 लोगों की जान चली गई जबकि 412 लोग लापता हुए. इसी समय माउंट मेरापी ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ. अधिकारियों के मुताबिक लावा 18 किलोमीटर तक के दायरे तक फैल गया. इंडोनेशिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी 26 अक्टूबर से लावा उगल रहा था.
Cancun / Klimagipfel / Oxfam / NO-FLASH
तस्वीर: AP

दिसंबर 2010

साल के जाते जाते जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर और जहरीली गैसों में कटौती के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की शिखर वार्ता में सहमति बन ही गई. इसे कानकुन समझौता कहा गया. दो हफ्ते तक चली इस बातचीत में गरीब और अमीर मुल्कों के बीच लगातार खींचतान होती रही लेकिन आखिरकार ग्रीन क्लाइमेट फंड बनाने पर समझौता हो गया. इसके तहत 2020 तक 100 अरब डॉलर जुटाए जाएंगे. उष्ण कटिबंधीय जंगलों को बचाने के लिए मुहिम चलाई जाएगी. साथ ही विभिन्न देशों के बीच स्वच्छ ऊर्जा तकनीक के लेनदेन के नए रास्ते तलाशे जाएंगे.

इस समझौते के होने के साथ ही क्योटो प्रोटोकॉल को आगे बढ़ाने के लिए अमीर और गरीब मुल्कों के बीच जारी विवाद को 2011 तक के लिए टाल दिया गया. इस समझौते में 2012 में खत्म हो रहे क्योटो प्रोटोकॉल को आगे बढ़ाने पर तो बात नहीं हुई है लेकिन इतना तय हो गया है कि 2012 के बाद भी कुछ न कुछ होता रहेगा. अब तक क्योटो प्रोटोकॉल ही एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसमें विकसित देशों पर उत्सर्जन की पाबंदियां लगाई गई हैं और अब कोई देश नहीं चाहता कि इस तरह की पाबंदियां फिर से लगाई जाएं.

संकलनः आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल