1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बिहार चुनाव हारी बीजेपी: वादों पर भारी काम

प्रभाकर८ नवम्बर २०१५

बिहार विधानसभा चुनावों में जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ओर से आजमाए गए तमाम हथकंडे धूल चाट गए. नीतीश कुमार का काम नरेंद्र मोदी के वादों पर भारी पड़ा.

https://p.dw.com/p/1H1pn
Indien Ramzan
तस्वीर: UNI

बीफ और पाकिस्तान में पटाखे फूटने और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयानों ने भी भाजपा की लुटिया डुबोने में अहम भूमिका निभाई. एकता की बात करने के बावजूद आखिर में जीत के लिए भाजपा ने भी जातीय समीकरणों का सहारा लिया था. लेकिन इस मोर्चे पर लालू और नीतीश की जोड़ी उस पर भारी पड़ी.

बिहार के चुनावी नतीजों ने भाजपा के मिशन बंगाल और मिशन असम को करारा झटका दिया है. इन दोनों राज्यों में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं. बिहार में अपनी जीत तय मान कर भाजपा अब इन दोनों राज्यों में भी मजबूती से पांव जमाने के सपने देख रही थी. लेकिन बिहार ने उसके इस सपने को मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की तरह तोड़ दिया है. नतीजों के बाद अब लंबे अरसे तक भाजपा में आत्ममंथन का दौर चलेगा और हार-जीत के संभावित कारणों पर पन्ने रंगे जाएंगे. लेकिन बीते साल दिल्ली में लगे झटके के बाद अब बिहार के इस झटके को पचा पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. इन नतीजों ने मोदी-शाह की जुगलबंदी पर भी सवाल उठा दिया है.

अब सवाल यह है कि तमाम हथकंडे आजमाने और अपनी पूरी मशीनरी बिहार चुनावों में झोंक देने के बावजूद भाजपा को मुंहकी क्यों खानी पड़ी? इसका कोई सीधा जवाब खुद भाजपाइयों के पास भी नहीं है. इसके कई कारण हैं. अरहर दाल की महंगाई, विकास के हवाई दावे और ऐसे ही कई मुद्दों को पार्टी की हार की वजह माना जा रहा है. दाल का मुद्दा ऐसा भारी पड़ा कि यहां भाजपा की दाल सच में नहीं गल पाई. नेताओं के ऊटपटांग बयानों ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया. प्रधानमंत्री ने बिहार के लिए भारी-भरकम पैकेज देकर लोगों को अपने पाले में करने का प्रयास किया. लेकिन नीतीश का कामकाज उन पर भारी पड़ा. भाजपा नेताओं का यह आरोप लोगों के गले नहीं उतरा कि नीतीश ने बिहार में कोई काम नहीं किया है. पार्टी अपने प्रचार अभियान के दौरान बार-बार जंगलराज की वापसी की बात कह कर लोगों को डराती रही. लेकिन लोगों ने लालू प्रसाद की राजद को सबसे ज्यादा सीटें देकर भाजपा के आरोपों का करारा जवाब दिया है.

मोदी और नीतीश कुमार की साख की इस लड़ाई में नीतीश मोदी पर भारी पड़े हैं. इसकी दो प्रमुख वजहें हैं: नीतीश की साफ-सुथरी छवि और राज्य में किए गए विकास कार्य. जमीनी विकास को देखने वाली जनता ने भाजपा के हवाई आरोपों को पूरी तरह नकार दिया. भाजपा ने हिंदुत्व का जो कार्ड खेला, वह भी वोटरों के गले के नीचे नहीं उतरा. महागठंबधन की जीत के लिए नीतीश की लोकप्रियता को भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. उनकी छवि व काम के कारण ही बिहार में कोई सत्ताविरोधी लहर नहीं थी.

भाजपा अपनी जीत के लिए ऐसी लहर तलाश रही थी, लेकिन कोई लहर हो तब तो. नीतीश कुमार ने इस चुनाव में बिहारी बनाम बाहरी का जो नारा दिया था वह भी काफी असरदार साबित हुआ है. भाजपा ने मोदी व शाह की जोड़ी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया. नीतीश के मुकाबले किसी स्थानीय नेता को पहली कतार में नहीं रखा गया. सुशील कुमार मोदी भी दूसरी कतार में ही रहे. स्थानीय नेताओं को तरजीह नहीं मिलना और मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार साफ नहीं होना भी भाजपा की पराजय की वजहों में से एक रहा.

संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान ने महागठबंधन को फायदा ही पहुंचाया. लालू ने उसके तुरंत बाद इस चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा घोषित कर दिया. इसका उनको फायदा मिला. बीते लोकसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों के विभाजन से भाजपा को काफी फायदा हुआ था. लेकिन अबकी बीफ पर विवाद, दादरी में बीफ खाने की अफवाहों के बाद हुई हत्या और पार्टी की हार पर पाकिस्तान में पटाखे फूटने जैसी टिप्पणियों ने मुस्लिम तबके को भाजपा के खिलाफ एजकुट कर दिया. इसका नतीजा सामने है.

सीमांचल इलाके में ओवैसी की पार्टी के मैदान में उतरने को भाजपा के लिए मददगार माना जा रहा था. वह मान कर चल रही थी कि औवैसी मुस्लिम वोटों में जबरदस्त सेंध लगाएंगे और इसका फायदा भाजपा को मिलेगा. लेकिन सीमांचल इलाकों में ओवैसी की पार्टी फुस्स साबित हुई. वह राज्य में अपना खाता तक नहीं खोल सकी. इसके अलावा महंगाई समेत विभिन्न मुद्दों के चलते प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ भी गिरा है. बीते लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार के समय गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनका जबरदस्त रिकार्ड था. लेकिन अब उनमें वह बात नहीं रही. इसलिए लोगों ने उनकी बातों पर भरोसा करने की बजाय नीतीश व लालू की आजमाई जोड़ी पर ज्यादा भरोसा किया.

नीतीश ने अबकी हेलीकाप्टर की बजाय घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करने की रणनीति बनाई थी. और इसका उनको काफी फायदा भी मिला. अब लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी से उन्होंने साबित कर दिया है कि जमीनी विकास और जनता के हितों का ध्यान रखने पर बार-बार लोगों का भरोसा हासिल किया जा सकता है.