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राजनाथ सिंह का इंटरव्यू

२९ अप्रैल २०१४

लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह का कहना है कि उनकी पार्टी को लोगों ने विकल्प के तौर पर अपना लिया है. डॉयचे वेले से खास बातचीत.

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तस्वीर: Reuters

बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो फैशन शो पर प्रतिबंध लगा दिया. शिक्षा प्रणाली में भी आमूल चूल परिवर्तन करने लगे और आलोचनाओं में घिर गए. बीजेपी के दूसरी बार अध्यक्ष बने तो गाजियाबाद छोड़ लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे और मुस्लिम तथा ईसाई धर्मगुरुओं से मिलने पहुंच गए. पूर्वी यूपी के चंदौली जिले में पैदा हुए और मिर्जापुर में भौतिक शास्त्र के लेक्चरर रहे उदार छवि वाले राजनाथ ने नाजुक मिजाज लखनऊ को क्यों चुना और बीजेपी के भविष्य के प्लान पर उन्होंने चलते फिरते डीडब्ल्यू से बात की.

क्या आपको लगता है कि एनडीए पूर्ण बहुमत तक पहुंच पाएगा, आपका क्या अनुमान है और यूपी से बीजेपी को कितनी सीटें मिल सकती हैं.

देखिए 300 से ज्यादा सीटें एनडीए जीत रहा है. इसमें कोई संदेह अब नहीं रह गया है. जहां तक बात यूपी की है तो हम लोग यहां की 80 में से लगभग 60 सीटें जीतने की स्थिति में पहुंच गए हैं.

अक्सर लोगों का कहना है बीजेपी और कांग्रेस एक सी प्रतीत होती हैं और कभी कभी तो बीजेपी कांग्रेस की बी टीम नजर आने लगती है.

यह सब गलत और मनगढ़ंत है. बीजेपी में संगठन ही सर्वोपरि है जबकि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी है. जहां तक सरकार की बात है तो 1998 से 2004 तक के अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के सुशासन को अभी भी लोग याद करते हैं.

Indien Parlamenstwahlen 2014
राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदीतस्वीर: Reuters

बीजेपी हमेशा सामूहिक नेतृत्व की बात करती है, लेकिन यह चुनाव तो व्यक्ति आधारित यानि मोदी के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है.

नहीं ऐसा नहीं है, सारे फैसले केंद्रीय चुनाव समिति ने किए हैं. सभी कुछ सर्वसम्मति से तय किया गया है. कोई व्यक्तिगत फैसला नहीं है जैसा कांग्रेस और दूसरी पार्टियों में होता है. आप बताइए कि क्या कांग्रेस में सोनिया गांधी के खिलाफ कोई बोल सकता है. बीएसपी में मायावती और सपा में मुलायम सिंह का कोई विरोध कर सकता है.

सोनिया गांधी दिल्ली के इमाम से मिलती हैं तो आपकी पार्टी आलोचना करती है लेकिन आप स्वयं लखनऊ के मुस्लिम धर्मगुरुओं मौलाना कल्बे जव्वाद और मौलाना खालिद रशीद के अलावा ईसाई धर्मगुरुओं से मिलने पहुंच जाते हैं.

देखिए दोनों में फर्क है. सोनिया जी ने शाही इमाम से वोटों के लालच और पार्टी के प्रचार के लिए भेंट की जबकि हमने शिष्टाचार के नाते मुलाकात की क्योंकि हम लखनऊ से चुनाव लड़ रहे हैं. जिनसे मिला वे सब इसी क्षेत्र के वोटर हैं.

लखनऊ से अटल जी पांच बार जीते और दो बार यहीं से जीत कर प्रधानमंत्री बने. क्या आप यहां से इस बार इसीलिए लड़ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के विवादित व्यक्तित्व पर यदि एक राय नहीं बनी तो आपको पीएम पद के लिए आगे किया जा सकता है, ऐसे में अटल जी की विरासत आपके काम आएगी.

यह कपोर कल्पना है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बनेंगे.

लखनऊ को आपने क्यों चुना, आप अटल जी के क्षेत्र के प्रतिनिधित्व पर क्या सोचते हैं?

निश्चित रूप से लखनऊ का सांसद बनना गर्व की बात है और कौन नहीं चाहेगा अटल जी जैसे विशाल व्यक्तित्व की जरा सी छाया हासिल करना, जो किसी का भी कद बढ़ा देती है. हमें भी गर्व है कि हम अटल जी के क्षेत्र में उनके अधूरे सपनों को पूरा करेंगे. वैसे भी लखनऊ हमारी कर्मस्थली रही है. मुख्यमंत्री के रूप में भी हमने लखनऊ का विकास किया. वैसे भी लखनऊ वालों ने ही मेरी वह हैसियत बना दी है कि सरकार का कोई मंत्री हो या प्रधानमंत्री सुनेगा तो जरूर.

गाजियाबाद को छोड़ आपने लखनऊ को ही क्यों चुना, इसका कारण क्या अटल जी की विरासत वाला लालच है. कल्बे जव्वाद ने कहा आपमें अटल जी की छवि दिखती है.

लखनऊ हमारी कर्मस्थली है और जहां तक अटल जी की बात है तो उनके कद के बराबर होने की हम तो सोच तक नहीं सकते. उनका व्यक्तित्व विशालकाय है.

हमेशा पर्दे के पीछे से रणनीति तैयार करने वाली आरएसएस ने इस चुनाव में पहली बार खुलकर बीजेपी का प्रचार किया है, आपके क्षेत्र में भी प्रचारक इंद्रेश कुमार जलसे कर रहे हैं.

वैसे तो हम भी आरएसएस के स्वयं सेवक ही हैं. जहां तक बात सामने आने की है तो देश की स्वतंत्रता के 67 वर्षों बाद भी देश के सामने हर मोर्चे पर जबर्दस्त चुनौतियां मौजूद हैं. तो आरएसएस ही क्या कोई भी राष्ट्रवादी होगा वह उठ खड़ा होगा. दरअसल अब बीजेपी विकल्प के रूप में स्वीकार की जा रही है. क्योंकि कांग्रेस ने देश को गर्त में ढकेल दिया.

"अबकी बार मोदी सरकार" नारे से प्रतिध्वनि आती है कि आप समेत सभी ने नरेंद्र मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया.

बीजेपी में सब कुछ केंद्रीय चुनाव समिति में सर्वसम्मति से तय होता है.

क्या आप मानते हैं कि जसवंत सिंह के साथ अन्याय हुआ?

केंद्रीय चुनाव समिति ने निर्णय लिया, लेकिन जसवंत जी जैसे व्यक्तित्व के लिए यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि वह कहां से चुनाव लड़ेंगे. उनका आकलन टिकट से नहीं किया जाना चाहिए.

सुषमा स्वराज और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ लोग भी पार्टी पर नरेंद्र मोदी के बढ़ते वर्चस्व से आहत महसूस करते हैं.

ऐसा कुछ भी नहीं है, बीजेपी के सभी निर्णय केंद्रीय स्तर पर सामूहिक रूप से होते हैं. केंद्रीय चुनाव समिति के फैसलों पर किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए.

नरेंद्र मोदी को वाराणसी से चुनाव लड़ाने के पीछे भी आपकी रणनीति मानी जा रही है. प्राचीन हिन्दू धार्मिक नगरी होने के कारण इसे चुना गया, बीजेपी अध्यक्ष होने के नाते आपकी भी इसमें कोई भूमिका रही है?

मैंने पहले ही कहा सारे फैसले केंद्रीय चुनाव समिति ने किए हैं.

मुसलमानों के बारे में क्या सोचते हैं, बीजेपी की सरकार बनी तो उनकी क्या स्थिति रहेगी?

पूर्वी यूपी के चंदौली जिले के भभौरा गांव में मेरा पड़ोस मुस्लिम है. मेरी शादी भी एक मुस्लिम परिवार ने तय कराई क्योंकि मेरे पिताजी के वे अभिन्न मित्र थे. उनके हां कहने के बाद ही पिताजी ने हां किया. अभी भी वे सब हमारे परिवार का हिस्सा हैं. और क्या बताऊं.

इंटरव्यूः सुहैल वहीद, लखनऊ

संपादनः अनवर जे अशरफ